कोइलख, मधुबनी: कवि कोकिल विद्यापति पर पंडित शिव नंदन ठाकुर द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘महाकवि विद्यापति” का पहली बार प्रकाशन 1941 में हुआ था। दुर्भाग्यवश वह अपनी इस रचना के प्रकाशित स्वरूप को अपनी आंखों से नहीं देख पाए थे, क्योंकि 1939 में ही पंडित जी परलोक सिधार गए थे। हालांकि, उन्होंने पुस्तक की पांडुलिपि तैयार कर ली थी और पंडित हरिनाथ मिश्र के छोटे भाई पंडित जयदेव मिश्र के अथक प्रयास से इस पुस्तक का प्रकाशन संभव हुआ था। उस समय इस पुस्तक की कम प्रतियां छपने कारण कालांतर में पुस्तक की अनुपलब्धता पाई गई।
‘महाकवि विद्यापति‘ के पुनर्मुद्रित संस्करण का कोइलख स्थित भद्रकाली मंदिर के प्रांगण में 6 दिसंबर 2023 को लोकार्पण किया गया। पुस्तक लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता मैथिली के लब्धप्रतिष्ठित कवि अरुण कुमार झा ने की। कार्यक्रम में भटसिमर निवासी परमेश्वर ठाकुर एवं घोघरडीहा के राजकुमार झा ने बतौर अति विशिष्ट अतिथि शिरकत की।
आर्यावर्त के संपादक रहे श्रीकांत ठाकुर विद्यालंकार और पटना विश्वविद्यालय में मैथिली विभाग के अध्यक्ष आनंद मिश्र एवं आनंद मोहन भारद्वाज की प्रेरणा से पंडित शिवनंदन ठाकुर के पुत्र विद्यापति ठाकुर इसका मैथिली में अनुवाद किया, जिसका प्रकाशन मैथिली अकादमी, पटना द्वारा किया गया है। आज यह पुस्तक बीपीएससी के परीक्षार्थियों के लिए सहायक पुस्तक के रूप में अनुमोदित है।
इस पुस्तक ‘महाकवि विद्यापति’ का संदर्भ सिनेट हॉल पटना में पटना विश्वविद्यालय के तत्कालीन उपकुलपति सच्चिदानंद सिंह की अध्यक्षता में कलकत्ता से आए प्रख्यात बहुभाषाविद एवं भाषा विज्ञान के आचार्य नगेंद्रनाथ गुप्त द्वारा दिए गए वक्तव्य से है। उन्होंने कहा, ‘‘विद्यापति पर जितनी भी समालोचनाएं हुई हैं और जो भी अनुसंधान हुए हैं और विद्यापति की पदावलियों के जो अनेक संस्करण निकले हैं उन सबका का श्रेय बंगाली विद्वानों को जाता है। विद्यापति की जन्मभूमि मिथिला ने उनको आज तक उचित सम्मान नहीं दिया। मिथिला ने आज तक विद्यापति पर अनुसंधान में हाथ नहीं बटाया।’’ इस वक्तव्य का संस्कृत, अंग्रेजी, हिंदी और मैथिली के अध्यवसायी और अपने जमाने के विद्वान पंडित शिवनंदन ठाकुर पर इतना असर पड़ा कि वे घर आकर विद्यापति के ग्रंथों का अध्ययन करने लगे और वह विद्यापति पर अनुसंधान में जुट गए। यह पुस्तक उनके पांच साल के अथक प्रयास का फल है। पंडित शिवनंदन ठाकुर ने अनुसंधान वृत्ति से विद्यापति की मूल पदावलि को रामभद्र पुर गांव से खोज निकाला और उसपर अपनी विद्वतापूर्ण टिप्पणी दी।
यह पुस्तक तीन भाग में विभक्त है। पहले भाग में विद्यापति की जीवनी और साहित्य सौष्ठव की विवेचना है। दूसरे भाग में उकनी भाषा की भाषा वैज्ञानिक विवेचना है और तीसरे भाग में रामभद्र पुर से प्राप्त 86 पद या पदावली और उसपर टीका-टिप्पणी है। जीवनी वाले भाग में विद्यापति के जन्म, कुल, एवं निधन की तिथियों का उल्लेख है। विद्यापति की रचना एवं उनके बारे में प्रचलित किंवदंतियों को साक्ष्यों व तथ्यों के आलोक में देखने का यह एक प्रयास है।
इस मौके पर सिजौल निवासी एवं प्रख्यात भाषा वैज्ञानिक और लेखक डॉ. बीरबल झा ने महाकवि विद्यापति के जीवन पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि कवि कोकिल विद्यापति बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे, इसलिए साहित्य की विभिन्न विधाओं में उनकी रचनाएं देखने को मिलती हैं। उन्होंने कहा कि महाकवि की रचनाओं में राजनीति, धर्म, दर्शन, सौंदर्य एवं देसी भाषा और प्रांजल भाषा के शब्दों का जो मणिकांचन प्रयोग है वह अन्यत्र विरले ही मिलता है। डॉ. झा ने विद्यापति को पर्यावरणविद बताते हुए उनकी गंगास्तुति का जिक्र किया, जिसमें महाकवि ने पांव से गंगा के स्पर्श होने से गंगाजल के दूषित होने के अपराध के लिए क्षमा याचना की है।
समारोह में धीरेंद्र ठाकुर, नवीन ठाकुर, आशुतोष ठाकुर, सुनील चैधरी, देवन झा, विपिन कुमार, सोनू झा, श्यामनाथ मिश्र व अन्य लोगों ने भी अपने विचार रखे। कार्यक्रम का संचालन पंडित ठाकुर के पौत्र नलिनी ठाकुर ने किया और उनके ही दूसरे पौत्र रचनीकांत ने धन्यवाद ज्ञापन किया।
– ग्लोबल बिहारी ब्यूरो