– प्रशांत सिन्हा
भारत की आज़ादी के 75वें वर्ष यानि अमृत काल में महत्वपूर्ण बजट वित्त मंत्री निर्मला सीतारामन् ने पेश किया जिसमें पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए घोषणा किया गया कि 2030 तक 50 लाख टन ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन के लक्षय पर सरकार काम करेगी। केन्द्र सरकार ने केन्द्रीय बजट में 2023 के हिस्से के रूप में पर्यावरण, वन, और जीव मंत्रालय को 3079.40 रुपए दिए गए हैं।
इस बजट से सरकार की मंशा स्पष्ट होता है। पिछले साल 2022 में वर्ष 2021के अपेक्षा 5.6 फीसदी की वृद्धि की गई थी। 2021 में 2,870 करोड़ और 2022 में 3,030 करोड़ पर्यावरण मंत्रालय को आवंटित किया गया था। लेकिन प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए आवंटन में 10 करोड़ रुपए की कटौती कर दी गईं थी। पिछले वर्ष 2022 में राष्ट्रीय हरित भारत मिशन के बजट को 2021 वर्ष के 290 करोड़ रुपए से बढ़ाकर 361.69 करोड़ रुपए किया गया था तथा राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम के लिए 300 करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे जो 2021 वर्ष 235 करोड़ रुपए थे।
बजट की प्राथमिकताओं में हरित विकास बड़ी प्राथमिकताओं के तौर पर शामिल किया गया है। अपने बजटीय भाषण में वित्त मंत्री ने देश में प्रदूषण कम करने और कृषि को और ज्यादा संधारणीय बनाने के लिए घोषणा की।
इस बजट में कई अहम बातें हैं। इनमें से एक है पर्यावरण का ध्यान रखने वाली जीवन शैली का इरादा। पेरिस समझौता के बाद भारत उन कुछेक विकासशील देशों में से एक है जो अपने “पर्यावरण संरक्षण ” संबंधी लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अधिक प्रयास कर रहे हैं। भारत साल 2070 तक ” पंचामृत” ” और नेट जीरो कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करने का संकल्प ले चुका है। इससे उद्योग और अर्थव्यवस्था में पर्यावरण संरक्षण पर जोर रहेगा।
वित्त मंत्री ने बताया कि लद्दाख से 13 गीगावाट नवीनीकरण ऊर्जा और ग्रिड एकीकरण के लिए अंतर राज्य पारेसाण प्रणाली के लिए 20, 700 करोड़ रुपए के निवेश किया जाएगा। इसमें 8300 करोड़ रुपए की केन्द्रीय सहायता भी शामिल है। सरकार ने देश को ऊर्जा स्वतंत्र राष्ट्र बनाने और कार्बन उत्सर्जन कम करने के दृष्टिकोण के तहत 4 जनवरी 2023 को 19,744 करोड़ रुपए के शुरुआती परिव्यय के साथ राष्ट्रीय मिशन हाइड्रोजन को भी स्वीकृति दी है।
इस बजट ने ग्रीन ग्रोथ के बारे में हमारे संकल्प को मजबूत किया है। वित्त मंत्री ने यह कहा है कि बजट में ऊर्जा संक्रमण और शुद्ध शून्य उत्सर्जन प्रणाली जैसे उद्देश्यों के लिए 35000 करोड़ रूपए के प्राथमिकता वाले पूंजी निवेश का प्रावधान किया गया है। वित्त मंत्री का कहना है कि सरकार 4000 मेगावाट क्षमता की बैटरी ऊर्जा की स्थापना का समर्थन करेगी। इलेक्ट्रिक वाहनों में इस्तेमाल होने वाली लीथियम बैटरियों पर लगने वाले सीमा शुल्क को 21 से कम करके 13 फीसदी कर दिया गया है। इससे इलेक्ट्रिक वाहन सस्ते होंगे। पेट्रोल – डीजल की महंगाई से परेशान जनता ई वाहनों की ओर आकर्षित होगी। पेट्रोल – डीजल की महंगाई पर निर्भरता घटने से पर्यावरण को लाभ होगा।
सरकार ने भविष्य में पर्यावरण को स्वच्छ बनाए रखने की दिशा में और भी कई घोषणाएं की हैं। सरकार ” ग्रीन ग्रोथ ” को ध्यान में रख कर कई कार्यक्रम को कार्यान्वित कर रही है । देश के अलग अलग आर्थिक क्षेत्रों में ऊर्जा का बेहतर ऊर्जा को बेहतर इस्तेमाल के लिए ग्रीन फ्यूल, ग्रीन एनर्जी, ग्रीन फार्मिंग, ग्रीन मोबिलिटी, ग्रीन बिल्डिंग , ग्रीन इक्विपमेंट के लिए कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। वित्त मंत्री ने बजट में “हरित ऋण” कार्यक्रम को भी “पर्यावरण संरक्षण अधिनियम” के तहत अधिसूचित करने की बात कही। उनका कहना था कि पर्यावरण के प्रति संवेदनशील व्यवहार को बढ़ावा देने के लिए पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम के तहत ग्रीन क्रेडिट कार्यक्रम को अधिसूचित किया जाएगा। इससे कंपनियों, व्यक्तियों और स्थानीय निकायों को पर्यावरण के लिहाज से संवेदनशील और ज़िम्मेदार बनाने और काम करने के लिए प्रोत्साहन दिया जाएगा। ये पहल हमारी भलाई के लिए है क्योंकि भारत उन देशों में से एक है जो जलवायु परिर्वतन से सबसे अधिक प्रभावित है।
हम यह जानते हैं कि हमें अभी एक लंबा रास्ता तय करना है। हमारे प्रयासों से कुछ लाभ मिल रहा है। शताब्दी के शुरु से अभी तक में भारत का कार्बन उत्सर्जन मात्रा में कमी आई है। अगले दशक के अंत तक हम इसमें 30 से 35 फीसदी और भी अधिक कमी की उम्मीद कर रहे हैं।
इस बजट से स्पष्ट होता है कि भारत विश्व को समावेशी विकास के मार्ग पर चलने के लिए अनुप्रेरित कर रहा है। यह बजट दर्शाता है कि भारत पेरिस समझौते की अपनी प्रतिबद्धता से भी अधिक कार्य कर रहा हैं और जलवायु परिर्वतन पर अपनी सोच रखने और यथोचित कार्रवाई करने में अग्रणी भूमिका निभाने की अपनी आकांक्षाओं को पूरा करने की राह पर अग्रसर हो रहा है। आज भारत पर्यावरण संरक्षण के लिए आवश्यक वैश्विक भागीदारी के केंद्र में है।अब ज़रुरत है बजट में की गयी घोषणाओं को ज़मीनी तौर पर अंजाम देने का।