कोटा: कल जयपुर-अजमेर राष्ट्रीय राजमार्ग पर गैस टैंकर-ट्रैक्टर हादसे में एक दर्जन से अधिक लोगों के मरने के बाद हमारे यातायात एवं सड़क निर्माण के सामुहिक तंत्र पर उंगलियां उतनी स्वाभाविक है। इस हादसे में अब तक 12 लोगों की जान गई है। हादसे में 35 लोग झुलसे हैं जिनमें नौ की हालत गंभीर बताई जा रही है। आग की चपेट में आने से लगभग 40 वाहन भी जल गए हैं। सरकार हमेशा की तरह हो सकता है इस हादसे को भी भुला दे और किसी बड़े हादसे का इंतजार करे। यही हमारी प्रशासनिक परिपाटी बन गई है। जयपुर के पास हुए इस हादसे ने समूचे तंत्र को हिला कर रख दिया है।
अब जरूरत है हादसों पर नियंत्रण के लिए संवेदनशील प्रशासनिक व्यवस्था की। और यह तय भी है कि इस सड़क हादसे में किसी की जिम्मेदारी तय नहीं होगी, सरकार में कोई एक व्यक्ति या विभाग दोषी नहीं होता और इस पेचीदगी में दोषी बच के निकल जाते हैं।
तो कैसे करेगी सरकार सड़क सुरक्षा तंत्र की ढीलम पोल व्यवस्था को चुस्त दुरुस्त? सिर्फ मृतकों को मुआवजा देने से पीड़ित परिजनों को थोड़ी सी राहत मिल सकती है इसके अलावा और कुछ नहीं होता। शासन तंत्र में बैठे लोगों को दूर दृष्टि से काम लेते हुए सुरक्षित सड़क यात्रा की व्यवस्थाएं बनानी पड़ेगी।
गत दिनों केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री नितिन गडकरी सड़क दुर्घटनाओं को गंभीरता से लेते हुए ब्लैक स्पॉट ठीक करने के लिए 40000 करोड़ रुपयों का प्रावधान किया है। ।इसके पूर्व नितिन गडकरी ने सड़क हादसों पर अफसोस व्यक्त करते हुए बताया था कि उच्च तकनीकी सड़कों के बावजूद हादसे होना चिंता जनक है।
इन सड़क हादसों में प्रतिदिन हजारों लोगों की मौत होती है। भारत में पौने दो लाख लोग हर साल बैमौत मारे जाते हैं। राजस्थान सर्वाधिक हादसों वाला प्रदेश भी है भले ही एक नम्बर पर न हो। यह मौत का आंकड़ा किसी भी महामारी और दंगों की विभिषिका से भी ज्यादा है।
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ऐसा नहीं है कि सरकार सड़क हादसों को रोकने के लिए कुछ नहीं कर रही , लेकिन स्थिति इतनी भयावह हो गई है कि सरकार को अभी बहुत कुछ करना होगा।
पहला तो यह कि टोल नाकों पर इस बात की भी जांच हो जाए कि ड्राइवर ने शराब पी रखी है या नहीं। दिसंबर 2016 में लगाया गया था राष्ट्रीय और राज्य राजमार्गों के बाहरी किनारे के 500 मीटर के भीतर शराब की बिक्री पर प्रतिबंध हालाँकि हाल में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि इस प्रतिबंध को नगरपालिका क्षेत्रों तक नहीं बढ़ाया जाएगा। पर क्या राष्ट्रीय और राज्य के मेगा राजमार्गों के आसपास शराब और अन्य नशीले पदार्थों की दुकानों को खोलने पर सख्ती से पाबंदी लगाई गयी है? नशे के आदि लोग नशा करके ही वाहन चलाते है।अधिकांश हादसों में यह सामने आया है कि वाहन चालक नशे में धुत्त रहते हैं।
आप जब भारी भरकम टोल वसूल कर रहे हैं तो सरकार को यह भी करना चाहिए कि सभी टोल नाकों को इस बात की भी जिम्मेदारी दी जाए की सड़कों पर आवारा जानवर विचरण न करें।
राष्ट्रीय राजमार्ग एवं मेगा हाईवे पर ओवरलोडेड वाहनों को सड़कों पर चलने से रोकने की जिम्मेदारी क्या जिला परिवहन अधिकारी या फिर पीडब्ल्यूडी विभाग के पास होती है। वे कहाँ चूक जाते हैं? क्या सरकार को इन विभागों में पर्याप्त मात्रा में स्टाफ अधिकारी और कर्मचारी तैनात करने की ज़रुरत है या फिर ये विभाग ढंग से काम नहीं कर रहे हैं इसकी जांच तो होनी ही चाहिए । अभी तो परिवहन विभाग के जिम्मेदार अधिकारी कहते हैं कि हमारे पास पर्याप्त स्टाफ नहीं है।
साथ ही यदि सरकार इस दिशा में प्रयास करना चाहती है तो उसे सड़कों पर अतिक्रमण हटाने की जवाबदेही भी तय करनी चाहिए क्योंकि अभी कोई भी एक विभाग इस जवाबदेही लेने को तैयार नहीं होता। निर्माण कार्य में लगी एजेंसियों को भी सड़क मार्ग बंद करने से पहले सावधानियों के इंतजाम करने चाहिए। लंबे और बड़े काम के लिए 1 किलोमीटर से ज्यादा के एरिया को बंद करने से लोग भी परेशान हो जाते हैं और भारी वाहनों के रुक जाने की वजह से जाम भी लग जाता है। हालांकि दिल्ली और कुछ शहरों में कैमरा लगने से हालत कुछ तो सुधरी है पर गति सीमा को नियंत्रित करने के लिए मॉनिटरिंग सिस्टम को चुस्त बनाने की आवश्यकता है अभी मॉनिटरिंग सिस्टम सख्त नहीं है।
यह भी अक्सर देखा गया है कि कई जगहों पर साइन बोर्ड ही नहीं होते और भ्रम पूर्ण स्थिति बनी रहती है। उदाहरण के तौर पर कोटा में ही बारां के पास शाहबाद मार्ग पर एक सर्किल का नाम ही भूलभुलैया रख दिया गया है। जो कि सड़क सुरक्षा तंत्र का बहुत बड़ा मजाक है।
सरकार के अलावा वाहन चालकों एवं मालिकों को इस बात का ध्यान रखना होगा कि रात्रि के समय अनावश्यक यात्रा न करी जाए जहां तक कि बहुत आवश्यक ना हो। आम तौर पर देखा गया है अधिकांश हादसे मध्य रात्रि के बाद प्रातः की बेला में ही होते हैं जब वाहन चालकों को नींद के झोंके आने लगते हैं। इसके लिए खुद वाहन चालकों को जागरूक रहना होगा।
क्या जिस प्रकार रेलवे ट्रैक की सुरक्षा के लिए सक्षम पॉइंट्स मेन तैनात होते हैं उसी प्रकार सड़क सुरक्षा के लिए भी पॉइंट्स मैन तैनात नहीं होना चाहिए जो यह निगरानी रखें कि यातायात के प्रवाह में कोई बाधा तो नहीं है? इस व्यवस्था को करने से देश भर में लाखों लोगों को रोजगार भी मिलेगा और बेशकीमती जानें भी बचेंगी।
– स्वतंत्र पत्रकार