दो टूक
– ज्ञानेन्द्र रावत*
देश और समाज के हित को दृष्टिगत रखते हुए सेवा की भावना से काम करने से ही कुछ बदलाव की उम्मीद की जा सकती है। इसी से हम राजनीतिक दलों के कुप्रचार से जनता के दिलोदिमाग में जड़ जमा चुकी भ्रांतियों को निकाल पाने में समर्थ होंगे, ऐसा मेरा विश्वास है। पौराणिक काल से लेकर महाभारत काल व उसके उपरांत लोकनीति के महत्व, उसकी प्रासांगिकता व चाणक्य नीति के दृष्टांत के साथ शासक वर्ग के जनता के हित में किये गये कार्यों पर प्रकाश डालना भी आवश्यक है ।
लोकनीति का उद्देश्य समाज के लोगों के जीवन में उत्तरोत्तर विकास व समृद्धि लाना होता है। इसके माध्यम से जन समस्याओं का समाधान करने का प्रयास किया जाता है। इसके बिना देश के सामाजिक-आर्थिक विकास की कल्पना ही बेमानी है। लोकनीति वास्तव में नियम आधारित होती है। इसको कानूनी स्वीकृति भी होती है। सच तो यह भी है कि यह नागरिकों पर बाध्यकारी भी होती है।
हमारे समक्ष असंख्य राजनीतिक दलों जो जाति, धर्म, संप्रदाय, अगडे़-पिछडे़, ऊंच-नीच, घपले-घोटालों, बेईमानी, आयाराम-गयाराम आदि विकृतियों में आकंठ डूबे हैं।असलियत में ये बुराइयां जनता के दिलोदिमाग में अपनी जडे़ं जमा चुकी हैं। इनसे जनता को सचेत ही नहीं, वरन मुक्ति भी दिलानी है।
लेकिन इसके लिए जरूरी है कि लोकसेवकों व राजनीतिज्ञों जो देश की नीति निर्धारण में अहम भूमिका का निर्वहन करते हैं, में व्यवस्था व समाज की गहरी समझ हो। जहां तक सरकारों का सवाल है, उनका दायित्व है कि वह उसके अनुसार कार्य करें। इसमें जनता की दैनंदिन जीवन व सेवाओं से जुडी़ समस्याओं-सेवाओं यथा स्वास्थ्य, शिक्षा, अर्थ, गृह, निर्माण, कर, विज्ञान, तकनीक, सुरक्षा, प्रतिरक्षा, मंहगाई से राहत सहित यानी जन्म से लेकर मृत्यु तक घरेलू व वाह्य पक्ष शामिल हैं, सभी समाहित होते हैं।
ये चुनौतियां बहुत ही बडी़ हैं जो मुंह बाये खडी़ हैं और जिनका सामना करना है। यह काम आसान नहीं है। इसके लिए एकजुटता, दृढ़ संकल्प, ईमानदारी, आपसी सहयोग और संघर्ष की जिजीविषा बहुत जरूरी है। इस काम में देर लग सकती है लेकिन निराश न होना और लक्ष्य प्राप्ति की दिशा में आगे बढ़ते रहना। एक न एक दिन विजय ज़रूर कदम चूमेगी।
*वरिष्ठ पत्रकार, लेखक, राजनीतिक मामलों के जानकार एवं पर्यावरणविद। उपरोक्त विचार उन्होंने नयी दिल्ली स्थित मालवीय स्मृति भवन में आयोजित राष्ट्रीय लोकनीति पार्टी के स्थापना दिवस पर विशिष्ठ अतिथि के रूप में अपने सम्बोधन में व्यक्त किये।