कोटा: शहर के उपनगरीय क्षेत्र के नांता क्षेत्र में सगस धाम के पास स्थित जौहर बाई के ऐतिहासिक एवं पुरातत्व महत्व के तालाब के पुनरुद्धार की ज़रुरत है।यह कोटा शहर के निकट अद्भुत प्राकृतिक विरासत है जो कि वर्षा जल संरक्षण का मॉडल है। शासन एवं समाज के संयुक्त प्रयासों से इसे बचाया जाना चाहिए।
पूर्व में 80-90 के दशक में थर्मल की राख (फ्लाईऐश) को यहां डंप किये जाने के कारण यह तालाब गया था लेकिन अब राख का सदुपयोग होने लगा है और तालाब खाली हो गया तो इसमें वर्षा जल भी एकत्रित रहने लगा है। सरकार के मामूली प्रयासों से इस जल राशि को पुनर्जीवित किया जा सकता है। जो की कोटा में भूगर्भ जल संकट का भी निदान करने में मदद प्रदान करेगा।
इस महत्वपूर्ण तालाब को पुनर्जीवित करने के सरकार को गंभीर प्रयास करने चाहिए। अब यहां पर थर्मल की राख खाली नहीं हो रही है तो तालाब वापस अपने पुराने स्वरूप में हमारे सामने है तो थोड़े से प्रयासों के तहत थर्मल प्रशासन भी सामाजिक उत्तरदायित्व – (सीएसआर) के तहत इस काम को कर सकता है। सरकार को भी चाहिए कि प्राकृतिक संपदा के प्रति संवेदनशील व्यवहार अपनाये।
नांता क्षेत्र में 9 तालाब थे, जिनका निर्माण 17वीं शताब्दी में कराया गया था. इनमें से केवल 3 का ही अस्तित्व बचा है. जौहर बाई तालाब का निर्माण झाला जालिम सिंह ने कराया था। हमें प्राथमिकता तय करते हुए इस ऐतिहासिक विरासत को बहाल करने के लिए संयुक्त प्रयास करने चाहिए। कोटा की एक स्वयंसेवी संस्था भारतीय राष्ट्रीय कला एवं सांस्कृतिक निधि -इंटेक ने आगे आकर आज कहा है कि यदि सरकार नहीं सुनी तो इंटेक को समाज के सहयोग से इस काम को अपने हाथ में लेना चाहिए। इंटेक के सदस्य अनिल शर्मा ने सगस जी धाम पर स्थित तालाब के महत्व की जानकारी दी एवं बचाने के प्रयासों के तहत थर्मल प्रशासन से हुई बातचीत का ब्यौरा दिया।संस्था के को कन्वीनर बहादुर सिंह हाडा ने बताया कि इंटेक का प्रतिनिधिमंडल शीघ्र ही जन प्रतिनिधियों, जिला कलेक्टर, थर्मल प्रशासन सन से बैठकर इस प्रस्ताव को क्रियान्वित करने में मदद का आग्रह करेगा।
बारां जिले के शाहाबाद में हाइड्रो पावर प्लांट के लिए पेड़ों को काटना भी उचित नहीं है। पावर प्लांट को अन्यत्र जहां पेड़ न काटना पड़े वहां स्थानांतरित किया जाना चाहिए।
प्राकृतिक विरासत शाहाबाद के जंगलों को बचाने के लिए सरकार को अपने स्तर पर पहल करने की ज़रुरत है। यहाँ पर्यटन विकास के लिए मुकुंदरा टाइगर रिजर्व के गांवों को विस्थापित करना चाहिए । इसी के साथ मुकुंदरा की व्यवस्था को चुस्त और दुरुस्त करनी चाहिए। बाघों को बचाने के पहले मुकुंदरा की सुरक्षा व्यवस्था एवं स्टाफ में कमी को दूर करने की सुनिश्चित व्यवस्था भी करने की ज़रुरत है।
गत दिवस ऐतिहासिक सगस धाम पर आयोजित इंटेक की बैठक में निखिलेश सेठी, इतिहासविज्ञ डाक्टर सुषमा आहूजा,ए एच ज़ैदी, मेघराज सिंह,अभय सिंह तंवरान, डा आरके जैन, कृष्णेन्द्र सिंह, डा किरण चौधरी, यज्ञ दत्त हाडा, पीयूष जैन, अमित कुमार आदि ने संरक्षण के सुझाव दिए।
*स्वतंत्र पत्रकार