वाराणसी: ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगदगुरु शंकराचार्य का सन्यास समज्या आज काशी के श्रीविद्यामठ में सन्तों व भक्तों द्वारा महोत्सव के रूप में मनाया गया। आज प्रातः काल से श्रीविद्यामठ में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन शुरू हो गया था।कल से देश के विभिन्न हिस्सों से सन्त व भक्त शंकराचार्य के सन्यास समज्या में सम्मलित होने हेतु पहुंचना शुरू हो गए थे।
सन्यास समज्या महोत्सव के प्रथम सत्र में आज प्रातः काल विरक्त दीक्षा लेकर चार ब्रह्मचारी शंकराचार्य परम्परा को समर्पित हुए। सपाद लक्षेश्वर धाम सलधा के ब्रह्मचारी ज्योतिर्मयानंद ने ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगदगुरु शंकराचार्य से दंड सन्यास की दीक्षा ग्रहण की और अब से वे अपने नए नाम सृज्योतिर्मयानंद: सरस्वती के नाम से जाने जाएंगे।तीन अन्य ने भी विरक्त दीक्षा ग्रहण की जिसमे गुजरात के पण्ड्या नैषध जी अब से केश्वेश्वरानंद ब्रम्ह्चारी के रूप में, बंगाल के वैराग्य जी अब साधु सर्वशरण दास के रूप में और तीसरे ब्रम्ह्चारी को पुरुषोत्तमानंद ब्रम्ह्चारी के रूप में जाना जाएगा। सन्यास दीक्षा का कार्यक्रम आचार्य पंडित अवधराम पाण्डेय के सान्निध्य में सम्पन्न हुआ।सहयोगी आचार्य के रूप में पंडित दीपेश दुबे,पं करुणाशंकर मिश्र, प्रवीण गर्ग उपस्थित थे। साथ ही सैकड़ों दंडी सन्यासियों का गंगापार षोडशोपचार पूजन कर उपहार समर्पित किया गया।
सन्यास समज्या का सायंकाल का द्वितीय सत्र वेद के विभिन्न शाखोंओं के विद्यार्थियों के मंगलाचरण से प्रारम्भ हुआ।जिसके अनन्तर आज दंड सन्यास दीक्षा ग्रहण कर शंकराचार्य परम्परा को समर्पित हुए श्रीमद ज्योतिर्मयानंद: सरस्वती जी व ब्रम्हचर्य सन्यास की दीक्षा ग्रहण करने वाले पुरुषोत्तमानंद ब्रम्ह्चारी,केश्वेश्वरानंद ब्रह्चारी,साधु सर्वशरण दास जी ने परमधर्माधीश ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगदगुरु शंकराचार्य जी महाराज के चरण पादुका का संयुक्त रूप से वैदिक मंत्रोच्चार के मध्य सविधि पूजन सम्पन्न किया।
सन्यास समज्या में अपना उद्बोधन व्यक्त करते हुए स्वामी इंदुभवानंद ने कहा कि आज शंकराचार्य परम्परा को चार सन्यासी समर्पित हुए हैं जिससे अपार हर्ष का अनुभव हो रहा है।नर दंड ग्रहण करने मात्र से नारायण हो जाता है।उन्होंने के कहा कि दंड सन्यास ग्रहण करने वाले सन्यासी वाणी,शरीर व चित्त में से भी दंड ग्रहण करता है। सन्यासी को कामनाओं से मुक्त होना चाहिए।
काशी के वरिष्ठ विद्वान परमेश्वरदत्त शुक्ल ने अपने उद्बोधन में कहा कि परमधर्माधीश शंकराचार्य सूर्य के समान हैं सूर्य का तेज सबको समान रूप से मिलता है। कुछ लोग जिसे सह पाते हैं कुछ लोग सह नही पाते हैं।शंकराचार्य की कृपा सबपर समान रूप से होती है।शिष्य के दुर्गुणों के संहारकर्ता व सद्गुणों के सृजनकर्ता दोनो हैं पूज्य शंकराचार्य महाराजश्री।गौमाता के रक्षार्थ शंकराचार्य जी महाराज अवर्णनीय कष्ट सहकर हम सबके सोए हुए चेतना को जागृत कर रहे हैं।अगर अब भी हमलोग गौरक्षार्थ आगे नही आए तो परमात्मा के कोप का भाजन बनेंगे।
सन्यास समज्या के अवसर पर अमेरिका निवासी व बेस्ट सेलर एवार्ड से पुरस्कृत लेखक अनंतरमन विश्वनाथन की शंकराचार्य और गौमाता से सन्दर्भित पुस्तक का लोकार्पण हुआ।साथ ही यतीन्द्रनाथ चतुर्वेदी द्वारा सम्पादित स्वामिश्री के 21वें दंड ग्रहण की स्वामिश्री: सन्यास समज्या स्मारिका का लोकार्पण भी हुआ। भारत धर्म महामंडल के श्रीप्रकाश पाण्डेय ने शंकराचार्य के व्यक्तित्व व कृतित्व पर स्वरचित अपनी रचना हे कल्प पुरुष कल्पान्त पुरुष प्रस्तुत किया।
काशी के प्रसिद्ध भजन गायक कृष्ण कुमार तिवारी ने सुमधुर भजन की प्रस्तुति कर उपस्थित भक्त समुदाय का सराहना अर्जित किया।
– ग्लोबल बिहारी ब्यूरो