– रमेश चंद शर्मा*
आजादी के 75 वर्ष अमृत महोत्सव पर करोड़ों रुपए खर्च मगर गांव में विद्यालय का न होना। भावी पीढ़ी का भविष्य किधर। ऐसे अनेक गांव हैं जहां विद्यालय नहीं हैं। सांसद निधि, विधायक निधि से ऐसे स्थानों पर विद्यालय क्यों नहीं लगे? कितने वोट है यहां? क्षेत्र के लोगों के दिलों दिमाग में रोशनी है, प्रकृति का साथ है, कम साधनों में जीने की हिम्मत है।
डॉ एस एन सुब्बाराव शिक्षा संस्कारशाला, भादा वेरी , पंचायत मोरस, जिला सिरोही राजस्थान में 27 सितम्बर 2022 को कार्यक्रम संस्थापक, मार्गदर्शक भाई राजेन्द्र यादव के साथ पहुंचे। हरियाणा के जागरूक साथी ने यहां शिक्षण को प्रभावी बनाने के लिए पिछले डेढ साल से कार्य प्रारंभ किया है। इस क्षेत्र में साक्षरता दर बहुत कम है। साथियों के सहयोग से काम को आगे बढ़ा रहे हैं। साधन का अभाव है, मगर साधना भरपूर है। यहां पहुंचने के लिए पैदल चलना अनिवार्य है नदी नाले पार कर चढ़ाई चढ़ना, पगडंडी पर चल कर इस बिना दीवार की झोपड़ी की शाला में पहुंच सकते हैं।
खेत में मक्का पक रहा है। इस बार वर्षा अच्छी है। चारों ओर हरियाली की चद्दर बिछी हुई है, मगर यह मौसमी है, कुछ माह के लिए आसपास, दूर दूर तक हरियाली ही हरियाली नजर आ रही है। घास, झाड़ियां, बरसात में आए छोटे छोटे पौधे मन को भी हराभरा कर रहे हैं। चार दिन की चांदनी।
कुछ दूरी पर शानदार हाईवे, चार लाइन की सड़क, सरपट भागते वाहन, फिर छोटी सड़क गिने चुने वाहन, पैदल रास्ता, फिर पगडंडी चारों ओर जंगल, शांति का माहौल, कोई शोर शराबा नहीं। प्रकृति की गोद, नदी का संगीत, हरियाली की चद्दर, सिर पर गट्ठर उठाकर राह से गुजरती महिलाएं। एक दो मोटरसाइकिल की आवाज दूर दूर तक सुनाई पड़ती है। पगडंडी पर चलते चलते पहुंचते हैं डॉ एस एन सुब्बाराव शिक्षा संस्कारशाला, भादा वेरी में।
प्रारम्भिक शिक्षा की तैयारी से जुझते बच्चे कतार में बैठे शर्मीले से। हम पहुंचे कौतूहल के साथ खुशी, हंसी, मुस्कराहट का आदान प्रदान। बच्चे अभी और भी आ रहे हैं। प्रार्थना शुरू वंदेमातरम का गायन, मां शारदे का गीत, मंत्र जाप, जन गण मन राष्ट्रीय गान।
फिर सवाल जवाब में से निकले बच्चों की पसंद के काम खेल, गीत, खाना और इनका दौर समूह में चालू। अच्छा लगा कि इसके साथ ही खिलखिलाते, जोर जोर से हंसते, मुस्कराते, उछलते कूदते, समूह गीत गाते, नारे लगाते, उठक बैठक करते, खेलते सहजता सरलता से भरे बच्चे। अंत में राजेंद्र भाई ने सभी बच्चों और बड़ों को सचमुच जलपान कराया। अपन ने तो खेल में खिलाया था। इन्होंने सचमुच सबको खिलाया और बच्चे और बड़े सभी उत्साह से भरे अपने अपने निवास की ओर चल पड़े। हमें पिंडवाड़ा पहुंचना था।
सिरोही जिले के तहसील पिंडवाड़ा क्षेत्र में दूसरे दिन की बात।
डॉ एस एन सुब्बाराव शिक्षा संस्कारशाला, अरनुवा, पंचायत वालोरिया, तहसील पिंडवाड़ा , जिला सिरोही, राजस्थान में पेड़ की छाया में बने वन विभाग के एक चबूतरे पर शिक्षा संस्कारशाला में साथी कालूराम बच्चों को पढ़ा रहे हैं। बगल में ही एक पक्का कमरा यह भी वन विभाग का ही है, जिसका प्रयोग शिक्षा संस्कारशाला के लिए किया जाता है। बच्चों में विभिन्न आयु के बच्चे शामिल हैं।
ज्यों ही हम विद्यालय पहुंचे बच्चों ने एक साथ खड़े होकर तेज आवाज में नमस्ते कहा। आज इन बच्चों का उत्साह, ऊर्जा, जोश कल के शिक्षा संस्कारशाला भादा वेरी के बच्चों से ज्यादा दिखाई दिया। बच्चे बेझिझक होकर बोल रहे हैं। हमने सबको अपना अपना नाम बताने को कहा। परिचय के बाद बच्चों से पूछा कि वे क्या करना चाहते हैं। एक साथ आवाज आई खेल खेलना, गाना गाना, नाचना चाहते हैं।
हमने नाच से ही कार्यक्रम की शुरुआत की। फिर अलग अलग खेल खेलें , और इसके बाद गाना। अंत में जो भी बच्चे बड़े वहां विद्यालय में उपस्थित थे उनके साथ जलपान की सामग्री का वितरण किया गया।
पिंडवाड़ा से मोरस होते हुए हाईवे से हम छोटी सड़क और फिर कच्चे उबड़ खाबड़ रास्तों से जंगल, नदी नाले पार करते हुए अरनुवा पहुंचे थे। रास्ते में कई बार जल की बुझरी नदी को पार किया। जो मोरस बांध के बाद कल कल करती, साफ सुथरे पानी के साथ कुछ माह बहती है। यह नदी सहज ही अपनी ओर ध्यान आकर्षित कर लेती है। एक स्थान पर हम रुके जहां बच्चे नदी में स्नान करते हुए, तैरने का प्रयास कर रहे थे। हमारे रुकने पर पहले वे झिझके और नदी से बाहर निकल कर दूर जाने को दौड़े, मगर हमारे आश्वस्त करने पर वापस नदी में उतरे।
आज इस ओर ज्यादा पेड़ पौधे हरियाली, बड़े बड़े पेड़ देखने को मिलें। घर एक दूसरे से दूर दूर हैं। गांव का क्षेत्रफल फैला हुआ है। आसपास में शिक्षा की व्यवस्था उपलब्ध नहीं है।
शिक्षा संस्कारशाला में हरियाणा निवासी सहयोग सहकार स्नेह दे रहे हैं, उनको साधुवाद शुभकामनाएं मुबारक कहना तो बनता ही है। आभार धन्यवाद शुक्रिया साथियों दूर रहकर भी आप बड़ा अच्छा योगदान इस साधना में कर रहे हैं। यह जानकार अच्छा लगा।
किसी भी नदी नाले, झरने झील, पानी के स्रोत को जानना, पहचानना समझना है तो उसके परिवार, आसपड़ोस, रिश्ते नाते, वंश को जानना पहचानना समझना जरूरी है। हरियाली और पानी के संबंध जोड़ को भी समझना जरूरी है। प्रकृति के अनुकूल रहकर ही हम प्राकृतिक सौंदर्य, हरियाली, जल, जंगल, जमीन, जीवन को सुखी सुंदर बढ़िया संपन्न बना सकते हैं।
आओ मिलकर सोचें और इस तरफ चिंतन मनन, विचार विमर्श, सोचना समझना, जानना पहचानना समझना तो प्रारंभ करें।
*लेखक प्रख्यात गाँधी साधक हैं।
आपने बहुत अच्छा लिखा कि साधन नहीं है लेकिन साधक है। बस यही एक तरीका है जिसके बल पर देश के अंतिम आदमी तक पहुंचा जा सकता है । यहां संस्कार शालाओं का आपने भ्रमण किया और इसके बारे में जिस तरह धाराप्रवाह से लिखा गया है वह मेरे लिए प्रेरणादायक है। इतनी सुंदर हिंदी है और कम शब्दों में सारी बातें दिखती है ,जो लोग इस में काम कर रहे हैं उनको धन्यवाद देता हूं कि वह बहुत तत्परता से काम कर रहे हैं । उनके परिश्रम का फल साफ दिखाई दे रहा है ।सरकार हर जगह नहीं पहुंच पा रही है लेकिन लोग जहां रहते हैं वह अपने लिए जगह तो बनाते ही है।