काठमांडू: हम जलवायु आपदा से गुजर रहे हैं जिसकी जड़ें एक अस्थिर आर्थिक मॉडल में निहित हैं। पूंजीवाद के कारण असमानता बढ़ी है, जिसमें कुछ लोग अधिकांश संसाधनों पर कब्ज़ा कर, अधिकांश लोगों को गरीब बनाकर लाभ कमाते हैं। यही वजह है कि सिर्फ कुछ लोग केवल पृथ्वी का शोषण करके लाभ दे रहे हैं। कुछ चंद लोगों के लाभ के लिए पूरे ब्रह्मांड के कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर बढ़ गया है जिसके कारण मिट्टी का क्षरण, जैव-विविधता व जल संसाधनों की हानि, समुद्र का बढ़ता स्तर, तेजी से बढ़ती मौसम की घटनाओं के परिणामस्वरूप पृथ्वी पर रहने वाले सभी जीव-जगत के जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है।
गरीब देशों के वैश्विक अन्यायपूर्ण ऋण ने संरचनात्मक समायोजन आवश्यकताओं के माध्यम से ऋणग्रस्त देशों के बाजारों और संसाधनों को खोलने की मांग करके, जलवायु आपदा में योगदान दिया है। इसका मतलब है कि दुनिया में गरीब लोगों को जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा नुकसान का सामना करना पड़ रहा है, जबकि अमीर अपने आपको अपने बंकरों वा नौकाओं में अलग कर ले रहे हैं।
इस बीच, जलवायु शरणार्थियों के रूप में संसाधनों पर बढ़ती हिंसा और संघर्ष के कारण कई लाखों लोग अपनी पारंपरिक मातृभूमि को छोड़कर, विस्थापित हो रहे है। संसाधनों की प्रतिस्पर्धा ने स्थानीय, क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर संघर्ष को जन्म दिया है, जिसके परिणामस्वरूप हिंसा, सैन्यीकरण और युद्ध में वृद्धि हुई है। आज ऐसा लगता है कि, जलवायु परिवर्तन से हुए विस्थापन द्वारा तीसरा विश्व युद्ध आरंभ हो रहा है।
जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने या इसके मूल कारणों को जानकर उचित परिवर्तनों की आवश्यकता है। जलवायु परिवर्तन, पानी और भोजन के बीच एक संबंध है। इसलिए जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है। जलवायु परिवर्तन वैश्विक आपदा है, जिसके कारण जल, वायु व भोजन की असुरक्षा बढ़ गई है। इसका प्रभाव ब्रह्मांड पर कमजोर समुदायों, विशेष रूप से महिलाओं, बच्चों और सीमांत समुदायों से संबंधित लोगों पर सबसे ज्यादा पड़ रहा है। साथ ही इससे गैर-मानवीय जीवन को भी खतरा बना है।
हम आह्वान करते हैं एक ऐसे आर्थिक मॉडल की जिसके मूल में सबसे कमजोर लोगों की देखभाल और चिंता हो। कुछ लोगों के लाभ के बजाय पहले उनकी जरूरतों को पूरा करने की ओर निर्देशित करे। जलवायु परिवर्तन वैश्विक संकट है इसलिए इसका समाधान करने वाली वैश्विक नीति बनानी होगी। जिसमें सामुदायिक विकेंद्रित प्रबंधन की स्वतंत्रता समुदायों को अपनी पहचान बनाए रखते हुए वैश्विक नीति द्वारा मिलना चाहिए ।
वैश्विक जलवायु परिवर्तन के संकट का समाधान सामुदायिक विकेंद्रित समतामूलक मालिकाना व प्रबंधन है। मूल समुदाय-आधारित ज्ञान को पुनर्जीवित करना होगा। जल और मिट्टी संसाधनों के पुनरुद्धार के लिए उनकी भागीदारी ज़रूरी है।केवल कराधान जो अमीरों पर कर लगाता है (पिकेटी कॉल के अनुसार) और वैश्विक कर बचाव तंत्र को समाप्त करना होगा। प्रदूषण के वित्तीयकरण से बचने का प्रयास करते हुए एक अंतरिम तंत्र के रूप में ‘प्रदूषक भुगतान’ नीति का कार्यान्वयन करना होगा।ऋण का निवारण करना होगा।
जलवायु न्याय के लिए वैश्विक संगठनों और आंदोलनों को एक साथ मिलकर इस संकट को कम करने के लिए काम करना है। महिलाओं और मूल लोगों सहित जलवायु आपदा से सबसे अधिक प्रभावित लोगों के ज्ञान को सुनना और उनसे सीखना है। सतत विकास और वैकल्पिक आर्थिक मॉडल के लिए संगठन और जन-लामबंदी की ज़रुरत है।
विश्व सामाजिक मंच की छत्रछाया सहित कई संभावित मंचो पर न्याय के परिप्रेक्ष्य के साथ इस गठजोड़ के लिए हमारे संयुक्त संघर्ष में संलग्न रहना जारी रहेगा। हम आज इस घोषणा के द्वारा अपने को प्रकृति और मानवता दोनों को बराबर सम्मान देकर, इनके संरक्षण और संवर्धन के काम में संलग्न रहेंगे। जिस तरह राजस्थान में हमने जल, जंगल, जमीन और जलवासियों के साथ संरक्षण का काम करके जलवायु परिवर्तन अनुकूलन उन्मूलन में सफलता पाई है, वैसे ही काम पूरी दुनिया में हो सकते हैं। हम सुखाड़ बाढ़ विश्व जन आयोग द्वारा ऐसा करने के लिए संकल्पित है।
*लेखक जलपुरुष के नाम से विख्यात जल संरक्षक हैं औरसुखाड़ बाढ़ विश्व जन आयोग के चेयरमैन हैं। प्रस्तुत लेख उनके निजी विचार हैं।