गदग: मृत्युप्राय: इच्चन हल्ला नदी को हमने समाज के साथ मिलकर वर्ष 2007 में पुनर्जीवित किया था। आज कर्नाटक में भयानक सुखाड़ के वक़्त यह नदी बारह गाँवों की जीवनदायिनी बनी है।
दिनांक 4 नवंबर 2023 को गदग जिले के सुखाड़ ग्रस्त गाँवों का मैंने गहराई से अध्ययन के लिए कर्नाटक जल बिरादरी अध्यक्ष डी.आर. पाटिल के साथ दौरा किया। यह इस भयानक अकाल का जवाब ढूंढने और समाज को समझने-समझाने की आज बड़ी कोशिश थी। दिन भर यहाँ के किसानों के साथ जगह-जगह पर बैठकें हुई।
मोटे तौर पर कर्नाटक में अकाल मुक्ति के जो उपाय हुए हैं, उनके परिणाम से इच्चन हल्ला नदी क्षेत्र के 12 गाँव पूर्णतः पानीदार बने हुए हैं। गांव के पानीदार बनने की कहानी बहुत प्रेरक और गहरी है।
उत्तरी कर्नाटक की नदी इच्चन हल्ला को पुनर्जीवित करने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र कर्नाटक, जियोलॉजिकल सोसायटी ऑफ इंडिया, जल संसाधन विभाग, कर्नाटक सरकार, जलबिरादरी और जिला पंचायत गदग ने मेरी प्रेरणा से और मेरे मार्गदर्शन में कर्नाटक जल बिरादरी अध्यक्ष डी.आर. पाटिल, और कर्नाटक सरकार के मंत्री एच.के. पाटिल के नेतृत्व में इस पर काम शुरू किया था।
यहाँ के लोगों के साथ मेरी सबसे पहली बैठक सन 2002 में हर्टी गाँव में 3700 हेक्टेयर क्षेत्र को पानीदार बनाने के लिए हुई थी। जिसमें नागवी, मल्लसमुद्र, असुंदी, हुलकोटी और हिरेहंडीगोल गाँव आते हैं। यहां किसानों के साथ कई बैठकें करके और मिट्टी पर नक्शे बनाकर लोगों को समझाया था।
उस वक्त मेरे मार्गदर्शन में 13 जागरूकता शिविर आयोजित हुए थे, जिनमें 1685 लोग भागीदार हुए, चार सेमिनार में 1150 गाँव के लोग भागीदार हुए थे, 38 वर्षा जल संचयन प्रशिक्षण शिविर में 1336 लोग और 15 एक्सपोजर विजिट में 453 लोगों ने भाग लिया था। इस तरह से इस इलाके के 12 गाँवों को पुनर्जीवित करने की योजना बनाई गई थी। इन कार्यक्रमों ने वर्षा जल संचयन के प्रति किसानों को जागरूक किया और महत्व को समझाया। इसके परिणाम स्वरूप आसुंडी और हर्टी गाँव में किसानों ने स्वैच्छिक रूप से परकोलेशन टैंक के निर्माण के लिए तैयार हुए थे।
यहाँ वाटरशेड डिपार्टमेंट, जियोलॉजिकल सोसायटी, जिला पंचायत गदग, जल संसाधन विभाग के साथ जल बिरादरी ने इस काम का नेतृत्व किया था। यहाँ के वाटरशेड विभाग ने सिर्फ नागवी गांव में टैंक बनाने में मदद की थी। इसमें जल संसाधन विभाग कर्नाटक सरकार द्वारा वित्तीय मदद की गई थी।
इस क्षेत्र की 3700 हेक्टेयर भूमि पर मेड़बंदी, 985 अपशिष्ट बांधो का निर्माण, 160 खेत तालाब का निर्माण, 137 बोल्डर चेक, 18 रबर चेक, 56 गली चैक डैम, 27 हेक्टेयर भूमि पर ढीली बोल्डर संरचना निर्माण, 18 चैक डैम, ड्रेजिंग, अर्थेन बांध निर्माण और पानी की टंकियों का निर्माण किया गया।
आज इन सभी कामों का परिणाम है कि कर्नाटक के इस भयानक सुखाड़ में भी यह 12 के 12 गांव बिल्कुल हरे-भरे और पानीदार बने हुए हैं। इनके कुओं और बोरवेल में पानी आ गया। अभी 33 में से 31 बोरवेल में पानी है और 34 में से 32 खुले कुएं भरे हुए हैं। इससे सिंचाई क्षेत्र में वृद्धि हुई है, जो 2003 में 67.84 हेक्टेयर भूमि सिंचाई युक्त थी, अब 2023 में बढ़कर 293.69 हेक्टेयर हो गई है। बाढ़ प्रभावित क्षेत्र भी 1258 हेक्टेयर कम हो गया है और पानी की गुणवत्ता में सुधार हुआ है।
यहाँ के किसानों ने अपनी फसलों के चक्र को भी बदला है। अब मक्का, मूंगफली, केला, मिर्च, प्याज ,ज्वार, हरा चना, सब्जियां, फूलों की अच्छी फसलें ली जा रही है। लोग दलहन, तिलहन और बागवानी बढ़ने से किसानों की आय में वृद्धि हुई है। यहां मूंग की उत्पादकता 5.0 से बढ़कर 7.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, मूंगफली की उत्पादकता 14.25 से बढ़कर 20.50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और ज्वार में चार गुना वृद्धि हुई है। कर्नाटक में भयानक सूखे के वर्ष में भी इस क्षेत्र में पूरे वर्ष सिंचाई और पीने के पानी की उपलब्धता है। यह इच्चनहल्ला नदी के पुनर्जीवित होने का परिणाम है।
यह तरुण भारत संघ, राजस्थान के कामों से सीख लेकर किए गए सुखाड़-बाढ़ मुक्ति के काम का प्रत्यक्ष उदाहरण है। इस प्रकार के कामों को आज पूरे देश में करने की जरूरत है, तभी हम सुखाड़-बाढ़ से मुक्ति बन पायेंगे।
*जल पुरुष के नाम से विख्यात जल संरक्षक