– रमेश चंद शर्मा*
गांधी जी ने ग्राम समाज, ग्राम पंचायत, पंचायती राज, ग्राम रचना, ग्राम सफाई, ग्राम निर्माण, ग्राम राज, ग्राम स्वराज, ग्राम स्वास्थ्य, ग्राम शिक्षा, ग्राम सुरक्षा, ग्राम सुधार, ग्राम स्वावलंबन, कृषि, पशुपालन, अहिंसक चर्म, चमड़ा उद्योग, ग्रामोद्योग, ग्राम रोजगार, कुटीर उद्योग, अंत्योदय, अंतिम जन के बारे में प्राथमिकता से विचार करने, मेरे सपनों का भारत के बारे में विस्तार से चर्चा की, लिखा। बारम्बार याद दिलाया।
हम इसे पूरी तरह से धरती पर नहीं उतार सके। यह सच है। कुछ प्रयास हुए भी तो आधे अधूरे मन से। फिर भी कुछ ऐसे कदम उठाए गए हैं, जिन्हें नकारा नहीं जा सकता है। जिन्हें देखकर, जानकर, पढ़कर, सुनकर मन को सुकून मिलता है। बा बापू की याद आती है। गांधी की झलक, सोच साफ नजर आती है।
ऐसे ही एक प्रयास के बारे में आज एक हल्की सी झलक संक्षिप्त में प्रस्तुत की जा रही है। इसका नाम है अंत्योदय चेतना मंडल। उड़ीसा के रंगमटिया, रसगोबिंदपुर, जिला मयूरभंज में स्थित। जो स्वास्थ्य, शिक्षण प्रशिक्षण, ग्राम सुधार कार्य अंतिम जन तक पहुंचाने की साधना में लगा हुआ है। महात्मा गांधी आंखों का अस्पताल एवं शोध संस्थान, गांधी विद्या निकेतन, गांधी गुरुकुल, गांधी वोकेशनल प्रशिक्षण केन्द्र के माध्यम से सपने को साकार करने में दल बल के साथ जुटे हैं।
द्वितीय महायुद्ध के समय उड़ीसा में सैन्य प्रयोग के लिए एक हवाई अड्डे का निर्माण किया गया था। जिसके अवशेष आज भी आप रंगमटिया, रसगोबिंदपुर, जिला मयूरभंज में देख सकते है। यहां से हवाई जहाज उड़ान भरते थे। सैन्य कार्रवाई के लिए। यह आवाज भयभीत करती थी, दहशत फैलाती थी। 28 दिसम्बर, 2000 को इस क्षेत्र में हवाई जहाज, हेलिकॉप्टर के काफिले की आवाज तेजी से गूंजी। इसे सुनकर लोगों में उत्साह,जोश, खुशी की लहर दौड़ गई। इस काफिले की उड़ान ने अंधेरे से उजाले का संदेश देने का उद्घाटन किया। इस क्षेत्र में दृष्टि संभालने का बीड़ा उठाने वालों का उत्साह बढ़ाया। श्रृंखलाबद्ध ढंग से आगे बढ़ती हुई यह उड़ान अंत्योदय चेतना मंडल की ओर से महात्मा गांधी आई अस्पताल एवं शोध संस्थान के रूप में प्रारंभ हुई। जिसका उद्घाटन तत्कालीन उपराष्ट्रपति कृष्णकांत ने किया। साथ में उपस्थित रहे उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक एवं अनेक गणमान्य लोग। साथी आदित्य पटनायक का सपना साकार हो उठा।
जीवन में, विचार में, शरीर में दृष्टि का महत्वपूर्ण स्थान है। दृष्टिहीन के दृष्टिकोण को समझने, संभालने, बदलने का कार्यक्रम शुरू हुआ। आंखों को ज्योति मिली। आंखों के रोगों का ईलाज हुआ। अभी तक लगभग छ: लाख लोग इस अस्पताल से लाभान्वित हुए है।
दूरदराज के गांव में रहने वाले अंतिम जन तक यह सुविधा पहुंच रही है। अस्पताल के साथी सुदूर गांवों में जाकर लोगों से संपर्क, संवाद स्थापित कर। संभावित लोगों को चयनित करके निश्चित समय पर अपनी बस, वाहन द्वारा उन्हें अस्पताल लाने और आपरेशन हो जाने के बाद गांव वापिस पहुंचाने की जिम्मेदारी निभाते है। इस प्रक्रिया में उनके भोजन, निवास, ईलाज, वाहन आदि की व्यवस्था निशुल्क की जाती है।
14 मई, 2023 को अस्पताल की सेवा रविवार होने के कारण बंद थी। दोपहर में आदित्य भाई के साथ मैं, आस-पड़ोस के गांव में जाने के लिए निकले। रास्ते में हमें दो महिला, दो पुरुष एक छोटे बच्चे को गोद में लिए मिले जो लोधा आदिम आदिवासी समुदाय से है और बहुत दूर गांव से बच्चे की आंख के ईलाज के लिए आए है। आदित्य भाई ने छुट्टी होने के बावजूद अपने सहयोगी साथी को फोन पर संदेश दिया कि तुरंत अस्पताल पहुंचकर इस बच्चे को देखें। जब हम गांव से लौट रहे थे तब रास्ते में पुनः यह समूह मिला। अब इनके चेहरे पर हंसी, सहजता, खुशी, संतोष का जो भाव देखा और उन्होंने प्रकट भी किया। उसे देखकर मन आनंदित होना स्वाभाविक सहज बात है। दुःख निवारण। अंतिम जन तक पहुंचती ऐसी सेवा किसी साधना से कम नहीं है। जिसमें नियम, कानून, व्यवस्था की पाबंदी आड़े नहीं आती अगर सेवा निष्ठा, भावना से प्रेरित है।
अंत्योदय चेतना मंडल गांधी विद्या निकेतन, गांधी गुरुकुल, गांधी वोकेशनल प्रशिक्षण केन्द्र के माध्यम से शिक्षण-प्रशिक्षण के काम में लगा है। जागरुक नागरिक बनाने का प्रयास जारी है।
जब यह प्रक्रिया प्रारंभ हुई तो कुछ साथियों को लगता था इस जंगल बियाबान में जहां ढ़ंग का रास्ता भी नहीं है कौन आएगा यहां। आज देखते है तो जंगल में मंगल नजर आता है। त्याग और प्रेम के पथ पर चलकर मूल ना कोई हारा, हिम्मत से पतवार संभालों फिर क्या दूर किनारा को सार्थक करता यह प्रयास प्रेरक, अनुकरणीय है।
भारत ग्राम प्रधान देश है। भारत माता ग्रामवासनी है। कृषि प्रधान देश है हमारा। देश का विकास, समृद्धि गांवों पर आधारित है। गांव विकास ही सच्चा देश विकास है। गांव बचेगा देश बचेगा। गांव बढ़ेगा देश बढ़ेगा।
*लेखक प्रख्यात गाँधी साधक हैं।