आज के समय में, बुंदेलखंड में 2000 से अधिक चंदेल कालीन तालाबों का अस्तित्व है, लेकिन इनमें से सिर्फ 500 तालाब ही उपयोगी हैं और लोगों की जरूरतों को पूरा कर रहे हैं। ये तालाब मुख्यतः टीकमगढ़, निवाड़ी, छतरपुर और महोबा जिलों में पाए जाते हैं। इन तालाबों की प्रमुख समस्या यह है कि वे सदियों पहले बनाए गए थे और अब उनकी बांध संरचनाएं कमजोर हो गई हैं, जिससे जल संरक्षण की प्रक्रिया प्रभावित हो रही है।
बुंदेलखंड क्षेत्र में चंदेल कालीन तालाबों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इस क्षेत्र का जलवायु विशेषत: शुष्क और गर्म है, और यहां पानी की गंभीर कमी का सामना करना पड़ता है। ये तालाब न केवल जल संरक्षण के साधन थे, बल्कि इनका निर्माण चंदेल राजाओं द्वारा 9वीं शताब्दी से 12वीं शताब्दी के बीच बुंदेलखंड में जल संकट को दूर करने के उद्देश्य से किया गया था। चंदेल राजाओं ने अपनी राजधानी महोबा को बनाया था। उन्होंने 9 हजार से अधिक तालाबों का निर्माण किया, जो आज भी बुंदेलखंड के विभिन्न जिलों में पाए जाते हैं।
इन तालाबों का निर्माण विशेष रूप से उस समय के वास्तुशास्त्र और जल प्रबंधन के सिद्धांतों के अनुसार किया गया था। चंदेल राजाओं ने इन तालाबों को ऐसे स्थानों पर बनाया, जहां जल का संरक्षण हो सके। इन तालाबों के चारों ओर पहाड़, मिट्टी के टीले या प्राकृतिक चट्टानों का सहारा लिया गया, जिससे पानी को तीन दिशाओं से रोका जा सके।
तालाबों का निर्माण जलागम क्षेत्र (वाटरशेड) के सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए किया गया था। यह तरीका पानी के संरक्षण के लिए अत्यंत प्रभावी था। चंदेल कालीन तालाबों का उद्देश्य सतही जल को संग्रहित करना और भूजल को रिचार्ज करना था। इन तालाबों का इस्तेमाल न केवल कृषि उद्देश्यों के लिए, बल्कि पीने के पानी के स्रोत के रूप में भी किया जाता था।
समय के साथ, जैसे-जैसे बुंदेलखंड में जनसंख्या बढ़ी और औद्योगिकीकरण हुआ, तालाबों की स्थिति खराब होने लगी। पहले जहां लोग इन तालाबों का सही तरीके से उपयोग करते थे, वहीं अब जल संरक्षण के प्रति उदासीनता और मानव लालच के कारण इन तालाबों की स्थिति बिगड़ी। कई तालाबों में गाद और सिल्ट जमा हो गया, जिससे पानी का भंडारण और जल संरक्षण प्रभावित हुआ। इसके अलावा, तालाबों के आसपास की भूमि पर अतिक्रमण होने से तालाबों की जल धारा अवरुद्ध हो गई।
हालाँकि हाल के वर्षों में तालाबों का महत्व समझते हुए इन की स्थिति को सुधारने के लिए जल संरक्षण के क्षेत्र में सक्रिय रूप से कार्य कर रही कई सामाजिक संस्थाएं आगे आयी हैं। इनमें से एक प्रमुख संस्था ‘परमार्थ’ ने इन तालाबों का गहन अध्ययन किया और बुंदेलखंड के 721 गाँवों का निरीक्षण करने पर पाया कि 688 गाँवों में तालाब, चैकडेम, कच्चे अवरोध बांध, झरने, झीलें और नदियाँ पाई गईं। इन तालाबों में से 241 चंदेली और बुंदेली तालाब थे, जबकि 670 नए तालाब, 401 चैकडेम और 187 कच्चे अवरोध बांध हैं। इस अध्ययन में यह भी पाया गया कि 94 तालाब अतिक्रमित हो गए हैं, जबकि 173 तालाबों को छोटे-मोटे सुधार की आवश्यकता है। 606 तालाबों में प्रमुख सुधार की आवश्यकता है, ताकि ये तालाब जल संरक्षण का कार्य ठीक से कर सकें और लोगों के लिए उपयोगी बन सकें।
‘परमार्थ’ ने बुंदेलखंड में जल संकट से निपटने के लिए चंदेल कालीन तालाबों के पुनर्जीवन का एक सामुदायिक प्रयास शुरू किया है। संस्था ने स्थानीय ग्रामीण समुदाय, जिसमें आस-पास के किसान, महिलाएं, युवा एवं अन्य ग्रामीण शामिल हैं, को जल संरक्षण के महत्व को समझाने और उनमें जागरूकता बढ़ाने के लिए विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया है। इन कार्यक्रमों में जल स्रोतों के पुनर्जीवन, वर्षा जल संचयन, पानी की बर्बादी रोकने और सतत खेती जैसे विषयों पर चर्चा की गई। इसके अलावा, संस्था ने स्थानीय समुदायों को जागरूक करने के लिए विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए हैं, ताकि लोग इन तालाबों का सही उपयोग कर सकें और जल संरक्षण के महत्व को समझ सकें। कार्यशालाएं, रैलियां, नुक्कड़ नाटक, और सूचना, शिक्षा एवं संचार सामग्री के माध्यम से जल संरक्षण के प्रति लोगों को प्रोत्साहित किया गया है।
इस संस्था ने इन तालाबों को पुनर्जीवित करने के लिए विभिन्न उपायों पर काम किया है। इनमें तालाबों की सफाई, गाद निकालने, जलाशयों की मरम्मत, जल संचयन के लिए जलागम क्षेत्रों को ठीक करने और तालाबों के आसपास के क्षेत्रों में वृक्षारोपण शामिल हैं। इस प्रयास के तहत, संस्था ने 100 से अधिक चंदेली तालाबों को पुनर्जीवित करने का कार्य किया, जिसमें से एक प्रमुख तालाब ‘लहरठाकुरपुरा’ गाँव स्थित है, जो झाँसी जिले में है।
इन तालाबों के पुनर्जीवन से न केवल पानी की समस्या हल हो रही है, बल्कि कृषि क्षेत्र में भी सुधार हो रहा है। पानी की उपलब्धता बढ़ने से किसानों को कृषि में राहत मिल रही है और जलस्तर में वृद्धि हो रही है, जिससे भूजल की कमी की समस्या भी कम हो रही है।
चंदेल कालीन तालाब बुंदेलखंड के इतिहास और जल संरक्षण के महत्वपूर्ण प्रतीक हैं। हालांकि समय के साथ इन तालाबों की स्थिति बिगड़ी है, लेकिन संगठनों और सामुदायिक के प्रयासों से इन तालाबों को पुनर्जीवित किया जा रहा है। जन सहयोग, दाता संस्थाओं और कॉर्पोरेट संगठनों के सहयोग से जल संरचनाओं के पुनर्जीवन और जल संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण प्रयास किए जा रहे हैं। इन प्रयासों में पुराने तालाबों, कुंडों, झीलों, और नहरों की सफाई एवं पुनर्निर्माण, जलग्रहण क्षेत्रों का विकास, चेक डैम निर्माण, और वर्षा जल संचयन की तकनीकों को बढ़ावा देना शामिल है। इसके साथ ही, समुदाय को जल संरक्षण की तकनीकों और पारंपरिक जल प्रबंधन विधियों के प्रति जागरूक करने के लिए प्रशिक्षण और कार्यशालाओं का भी आयोजन किया गया है।
परमार्थ जैसी संस्था ने इतो न कार्यों में तकनीकी विशेषज्ञों, स्थानीय नेतृत्व और ग्रामीण समुदाय को जोड़कर सामूहिक भागीदारी सुनिश्चित की है। इसके अलावा, दाता संस्थाओं और कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व के अंतर्गत जल संरक्षण परियोजनाओं को लागू कर, ग्रामीण क्षेत्रों में पानी की उपलब्धता बढ़ाने और पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने के प्रयास भी किए गए हैं।
यदि इन तालाबों का पुनर्निर्माण और रखरखाव ठीक से किया जाए, तो ये तालाब न केवल बुंदेलखंड की जल समस्या को हल कर सकते हैं, बल्कि पूरे भारत में जल संकट से निपटने के लिए एक प्रभावी समाधान बन सकते हैं। यह हमें यह सिखाता है कि जल संरक्षण और जल प्रबंधन के पुराने तरीके आज भी हमारी मदद कर सकते हैं, अगर हम उनका सही तरीके से उपयोग करें।