किसान परिवार से होने के कारण हमेशा से ही मुझे पेड़-पौधे से लगाव रहा है। बचपन में स्कूल के बाद हम अक्सर अपने दोस्तों के साथ खेतों और खलिहानों में खेलने के लिए निकल जाते थे। जब भी बारिश के मौसम में नीम, शीशम, बेर के पेड़ों के नीचे गिरे हुए सीड्स से नए पौधे फुट आते तो उन्हें भी मिट्टी सहित उठाकर अलग जगह लगा देते थे ताकि किसी के पैरों के नीचे दबकर वे कुचल न जाएँ ।
एक बार जब मैं आठवीं कक्षा मे पढ़ता था तो अपने घर के पास ही पड़ी एक खाली जगह में शीशम का पौधा लगाया। और उस पौधे को अपना दोस्त मानने लगा। जब वह पौधा थोड़ा बड़ा हुआ तो उसमें दीमक लग गईं। अपने दोस्त को बचाने के लिए मैंने उसकी जड़ों में कीटनाशक डाल दिया। पर उल्टा इसकी वजह से पौधा मुरझा गया। अपनी नादानी के चलते मैंने अपना दोस्त खो दिया। इस घटना से मुझे बहुत आघात पहुंचा और इसके बाद मेरा पेड़ों के साथ रिश्ता और भी गहरा हो गया।
पेड़ फूल-फल देने के साथ-साथ ऑक्सीजन और छाया भी देते हैं। पेड़ों पर पक्षी अपने घोंसले भी बनाते हैं। पर्यावरण के प्रति रुचि लग गई और तब से मेरी यह यात्रा शुरू हो गई।
अपनी दसवीं की पढ़ाई पूरी होने के बाद घर में कमाना वाला पापा के अलावा कोई नहीं था। तो घर के खर्चे पापा से निकलना मुशिकल हो गया था। उस समय कोई भी व्यक्ति सहायता की बात तो गई, सलाह भी नही दे सकता था। पढ़ाई लिखाई बहुत जरूरी है माता पिता दोनो अनपढ़ थे। तो उनको पढ़ाई के बारे में उतनी शिक्षा नहीं थी। परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नही थी, तो शिक्षा को पूरा करने के बजाय काम करना प्राथमिकता बन गई। पर फिर भी मैंने ट्रक लोडिंग और स्टोन और मार्बल ढोने के बाद अपनी रूचि और घर वालों के तानों के बीच पेड़-पौधे लगाने का निर्णय लिया। शुरुआत में, पौधे लगाने में काफी कठिनाई महसूस हो रही थी, लेकिन घर वालों के ताने और खुद की इच्छाओं ने मुझे प्रेरित किया।
मजदूरी करके घर आने के बाद अपने मिशन में जुट कर अपने घर के पास खाली सरकारी जमीन और स्कूल परिसर में पौधे लगाने शुरू कर दिए। छह महीने तक उन पौधों में लगातार पानी डालने जाता रहा। लेकिन बकरियाें द्वारा चट कर लिए जाने के कारण उनका लगाया एक भी पौधा नहीं बच पाया। मैंने हार नहीं मानी और अपनी कोशिश को बरकरार रखा। मैंने दोबारा और पौधे लगाए, जिनमें से आधे पौधे भी इस बार भी दीमक और बकरियों के चट करने से जल गए। पर बाकी तो अब पेड़ हो गए हैं।
मैने निर्णय लिया कि हर महीने एक हज़ार रुपए खर्च करके पौधे खरीदूंगा और उन्हें लगाऊंगा। लेकिन सरकारी नर्सरी से पौधे खरीदने में कई समस्याओं का सामना करना पड़ा। नर्सरी में पौधे की गुणवत्ता बहुत अच्छी नहीं होती थी, और पौधों का आकार भी छोटा होता था, जिससे उन्हें बढ़ने में समय लगता था। यह समस्या मुझे परेशान कर रही थी, क्योंकि मैं चाहता था कि मेरे लगाए गए पौधे जल्दी से बड़े हो जाएं और वातावरण को सुंदर और हरा-भरा बना सके।
लोग मुझे बेवकूफ समझते। पौधों को पानी देने के लिए जब मैं दोपहर–शाम में बाल्टी में पानी लेकर घर से बाहर निकलता, तो लोग हंसी उड़ाते। फिर भी मैंने हार नहीं मानी। विभिन्न स्रोतों से पौधे खरीदने शुरू किए, जैसे कि निजी नर्सरी और ऑनलाइन साइट्स से। धीरे-धीरे मुझे अच्छी गुणवत्ता वाले पौधे मिलना शुरू हुए, और अब मेरे पास कई सुंदर और स्वस्थ पौधे थे। धीरे-धीरे उसने अपने आस-पास के इलाके को हरा-भरा बना लिया और खुद को एक सफल पौधारोपणकर्ता महसूस किया।
पानी का संकट और हर साल अकाल झेलने वाले राजस्थान के लिए पेड़ों, पौधों और पशु-पक्षियों को जिंदा रखना बहुत बड़ा चुनौती भरा सफर रहा है। वन विभाग और प्राइवेट नर्सरी वालों से काफी तर्क-वितर्क करना पड़ता है। लोग सोचते हैं कि मुझे पेड़ लगाने के लिए पैसे मिलते होंगे। इसलिए वे पूछते भी हैं कि आपको पेड़ों को लगाने से क्या फायदा मिलता है? ये आत्मिक खुशी के लिए करता हूँ। यह काम मुश्किल नही है। पर लोगों को समझाना कठिन है। इसके अलावा भी वन्य जीव संरक्षण और अभी तक 8 बार रक्तदान कर चुका हूँ।
अब तक मैंने पुलिस चौकी, खेल स्टेडियम, बस स्टैंड, मन्दिर सड़क – तालाब के किनारे, ऑफिस, सरकारी और प्राइवेट स्कूलों, कॉलेज, अस्पताल यहां तक कि लोगों के घरों में कुल 2 हजार पौधें लगाएं हैं। इनमें से 1 हजार से अधिक पौधे अब छायादार, फलदार वृक्ष बन चुके हैं। जिसमें बरगद, पीपल, गूलर, खेजड़ी, कुमट, सहजन, बेर, नीम, अर्जुन, गुलमोहर, अनार, अमरुद, आंवला, सदाबहार,गुड़हल, बेलपत्र, सीताफल आदि जैसे पेड़ों को लगाया है। इन पेड़ों ने हवा में ताजगी भर दी, जिससे ऑक्सीजन का स्तर बढ़ा। गांव और आसपास के लोग अब प्रदूषण से बचने के लिए इन पेड़ों की छांव में समय बिताने लगे। धीरे-धीरे सारा क्षेत्र हरा-भरा और जीवंत हो गया। कई पेड़ों ने फल देना शुरू कर दिया, और लोग इन फलों का सेवन करने लगे।
मानवता को संदेश देते हुए सभी से आग्रह करता हूँ कि अपने आसपास पेड़ जरूर लगाएं। पेड़ ही वातावरण को शुद्ध रख सकते हैं। पर्यावरण तो हर जीव का मुद्दा है, लेकिन सिर्फ मनुष्य ही इसके लिए काम कर सकता है। पेड़ काटे जाने की वजह से पानी की कमी हो गई है। पेड़ तो जीवन भर मनुष्य को देते ही रहते हैं। शुरुआत में बस डेढ-दो साल उनकी देखभाल करनी चाहिए। सड़क-तालाब के किनारे बरगद के पेड़ लगाने चाहिए, जो कम से कम पांच सौ साल जीता है और ऑक्सीजन देता रहता है।
जैसे समाज की मूलभूत इकाई परिवार होता है, उसी तरह परिवार में पेड़ भी महत्वपूर्ण सदस्य होना चाहिए। ऐसा करने से समाज के बच्चे-बूढ़े सभी में पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता बढ़ेगी।
*मूल रूप से राजस्थान के जोधपुर जिले के एक किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले अनोप भाम्बु ने मेट्रिक तक अपनी पढ़ाई की और मजदूरी कर अपना जीवन यापन करते हैं।
पर्यावरण को बचाने के लिए आज ऐसे ही ‘वेवकूफ’ लोगों की आवश्यकता है। अनोप भाम्बू जी के जज़्बे को सलाम।