– अनिल शर्मा*
प्रयागराज: कुख्यात डॉन अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की पुलिस बल के संरक्षण और मीडिया कर्मियों की उपस्थिति में 15 अप्रैल 2023 को अदालत द्वारा अनिवार्य चिकित्सा जाँच के लिए अस्पताल ले जाते समय प्रयागराज के कॉल्विन अस्पताल के पास हुयी हत्या ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। उसकी हत्या के ठीक दो दिन पहले उसके फरार बेटे असद और उसके सहयोगी को झांसी में पुलिस ने एक एनकाउंटर में ढेर किया था। एक डॉन, उसके भाई और बेटे की मौत ने न सिर्फ उत्तर प्रदेश की पुलिस को कठघरे में खड़ा कर दिया है बल्कि वह एक चरमराते कानून व्यवस्था को भी बयां कर रही हैं। उनकी मौत को एक सांप्रदायिक रूप देने की भी भरसक कोशिश हो रही है ऐसे समय में जब लोक सभा चुनाव सिर्फ एक साल दूर हैं और कर्नाटक में भी राज्य विधान सभा चुनाव के प्रचार ज़ोरों पर है।ज्ञात हो कि अतीक समाजवादी पार्टी से सांसद और उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य रह चुका था।
अतीक पर संगीन धाराओं में 100 से अधिक आपराधिक मामले दर्ज थे। वह जेल के अंदर से ही अपनी अपराधिक गतिविधियों को संभाला करता था। उस पर आतंकवादी संगठन लश्कर ए तैय्यबा, पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी इंटर स्टेट इंटेलिजेंस और अंडरवर्ल्ड से संबंध होने के भी आरोप लगे।उमेश पाल हत्याकांड के बाद इनका का नाम उससे जोड़ा जा रहा था।
इलाहाबाद – अब जिसका नाम बदलकर उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ की भारतीय जनता पार्टी सरकार ने प्रयागराज कर दिया है – में माफिया डॉन अतीक का खौफ जनसामान्य से लेकर अमीरों तथा जजों तक का कायम था। न्यायिक सूत्र बताते है कि अतीक के मुकदमों में लगभग दस जजों ने सुनवाई से अपने को अतीक के केसों से अलग कर लिया था। इलाहाबाद पदस्थ रहे एक सेवा निवृत्त पुलिस उच्चाधिकारी ने बताया कि हम लोग अतीक के सामने बेबस हो जाते थे। अगर उसके खिलाफ कार्रवाही करने की कोशिश करते थे तो बड़े बड़े नेता आड़े आ जाते थे। यहां तक कि हाईकोर्ट से भी अतीक को फौरन राहत मिल जाती थी।
अतीक की हत्या से जहां एक ओर राजनीतिक माहौल गरमा गया है और उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह लग रहे हैं, वहीँ लोगों की इस डॉन की शख्सियत के प्रति एक रूचि जाएगी है। ऐसे में एक संस्मरण है जो अतीक के अतीत पर प्रकाश डालता तो है ही साथ ही यह भी दर्शाता है कि यदि सरकार और पुलिस चाहे तो ऐसे कुख्यात अपराधियों को भी काबू में किया जा सकता है।
बात वर्ष 1994 की है जब इलाहाबाद में सतीशचन्द्र यादव वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक (एसएसपी) थे ।उसी दौरान वरिष्ठ पत्रकार केपी सिंह उनसे भेंट करने इलाहाबाद पहुंचे। चूँकि यादव इसके पूर्व में जालौन जिले के एसएसपी रह चुके थे इस कारण केपी सिंह सहित जालौन के कुछ पत्रकारों से उनकी घनिष्ठता हो गयी थी। उस दिन शाम को यादव ने अपने सरकारी आवास पर केपी सिंह के साथ बातचीत के दौरान माफिया डॉन अतीक से कहा कि अतीक भाई मेम साहब बाहर गयी है और फालोअर बेअकल है। तुम्ही हम लोगों के लिए पकौड़ियां तल दो क्योंकि तुम्हारी बनाई पकौड़ियां बहुत जायकेदार होती है। अतीक ने बड़ी खुशी खुशी कहा जरूर साहब सिर्फ बीस मिनट में बनाकर लाया। अतीक पकौड़ियाँ और चाय फालोअरके साथ लेकर आया। उसने भी हम लोगों के साथ पकौड़ियां खाई और अपने अपराधी जीवन के कई किस्से सुनाये। वर्ष1994 में भी अतीक आंतक का पर्याय ही था। दूसरी ओर सतीष चन्द्र यादव अपने किस्म के अलग दबंग आईपीएस अधिकारी थे। उनकी इलाहाबाद के पोस्टिंग की अलग कहानी है। हुआ यूं कि हाईकोर्ट पर अचानक आरक्षण विरोधी छात्रों ने धावा बोल दिया था। जिन्हें वहां तैनात मुठ्ठी भर पुलिसकर्मी रोक नहीं पाये तब हाईकोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस इस घटना से इतना नाराज हुये कि उन्होंने इलाहाबाद के उस समय एसएसपी ए पी महेश्वरीको आनन फानन में निलम्बित कर दिया और गृह विभाग के तीन सीनियर अधिकारियों को हाईकोर्ट में तलब कर लिया। इससे उस समय उत्तर प्रदेश की
मुलायम सिंह सरकार में खलबली मच गई। मुख्यमंत्री ने ऐसे में इलाहाबाद की कमान के लिए एक ही नाम सूझा आईपीएस सतीशचन्द्र यादव। उन्हें सहारनपुर से जहां वह एसएसपी के रूप में तैनात थे, आनन फानन में हेलीकाप्टर से इलाहाबाद लैण्ड कराया गया। छात्रों के सामने दुम दबाये बैठी इलाहाबाद की पुलिस एकदम से शेर बन गई, और मात्र कुछ दिनों में छात्रों का आंदोलन काबू कर लिया गया।
इसके बाद ही सतीष चन्द्र यादव ने इलाहाबाद अण्डरवल्र्ड की भी चूलें हिला डाली। अच्छे अच्छे माफिया पुलिस के पालतू बन गये। अतीक को भी मजबूरन एसएसपी सतीशचन्द्र यादव के रहने तक जीवन शराफत के साथ बसर करने की कसम खानी पड़ी। और हर रोज सेवा के लिए एसएसपी की डयोढ़ी पर हाजरी देना उसके लिये जरूरी हो गया।
*वरिष्ठ पत्रकार