दो टूक: किसानों से जमीन क्यों छीनी जाए?
किसानों से जमीन क्यों छीनी जाए? शहरों के अनियोजित विस्तारीकरण के लिए किसान जमीन क्यों दें? इस प्रश्न का जवाब यदि सरकार के पास है तो फिर खेत व किसानों पर व्यर्थ चिंता क्यों? कृषि विकास, खाद्यान्न उत्पादन, किसान हितैषी होने के दावों का क्या?
राजस्थान में हाल ही में पदच्युत हुई कांग्रेस सरकार के अंतिम समय में विधानसभा में बिना किसी चर्चा या विचार विमर्श के मात्र 14 मिनट में कोटा विकास प्राधिकरण का यह काला कानून पास किया गया। नगरीय विकास विभाग के प्रस्ताव पर कोटा विकास प्राधिकरण बिल गत अगस्त में तत्कालीन राजस्थान सरकार ने कोटा शहर के कथित विकास के नाम पर कोटा व बूंदी जिले के 189 गांवों को शामिल किया और बिल विधानसभा में बिना किसी चर्चा या विचार विमर्श के जल्दबाजी में 14 मिनट में पारित कर दिया। तब भी किसानों और पर्यावरण प्रेमियों समेत कई पक्ष विपक्ष के जन प्रतिनिधियों ने इसका विरोध किया और भू माफिया द्वारा तैयार किया गया बताया।
अब राज्य में नई सरकार का दायित्व बनता है कि गांव और खेतों के विकास के लिए शहरों को बेतरतीब बढ़ाने वाले इस काले कानून को निरस्त कर किसान और खेती के व्यापक हित में पुनर्विचार करना चाहिए। उस समय भी हाडोती में कई माननीय जन प्रतिनिधियों एवं पर्यावरणविदों ने इस काले कानून का विरोध किया था और बूंदी व कोटा में इसके खिलाफ आवाज उठी थी। प्रसिद्ध विचारक योगेंद्र यादव और कई किसान नेता, पर्यावरण के जानकार लोग भी इस विधेयक का विरोध कर चुके हैं।
उल्लेखनीय है कि जिस महानगर के विस्तारीकरण के लिए विकास प्राधिकरण बने वहां के आसपास के सैकड़ो गांव समाप्त हो गए केवल गांव ही नहीं उन की खेती, किसानी पर्यावरण, पेड़, पौधे, नदी, जल, तालाब, पहाड़, पशु, पक्षी, वन्य जीव, सभी को पलायन करना पड़ा।
किसानों को आज की परिस्थिति में अपनी कृषि भूमि पर संकट दिखाई दे रहा है तो आम नागरिकों को खेती की भूमि नष्ट होने से भविष्य में खाद्यान्न का संकट तथा बेरोजगारी बढ़ने की आशंकाएं हैं। पर्यावरणविद् नदी, तालाबों, वन्यजीव, पशु पक्षियों और जैव विविधता के खत्म होने से चिंतित हैं।
खेतों में खाद्यान्न उगाने वाले किसानों को अपनी ही जमीन से बेदखल करने वाले कानूनों को कोई भी जनहित में बर्दाश्त नहीं कर सकता। जहां पर विकास प्राधिकरण के नाम पर बहु मंजिला इमारत और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के लिए खेतों को कंक्रीट के जंगलों में तब्दील कर किसानों को अपनी ही जमीन पर मजदूरी करने के लिए मजबूर किया गया या उन्हें शहरों की चकाचौंध की और पलायन करने के लिए भी विवश किया गया।
यदि किसी को विकास प्राधिकरण का यह खेल देखना है तो जयपुर विकास प्राधिकरण या दिल्ली विकास प्राधिकरण के बाद राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में बदले नोएडा और ग्रेटर नोएडा के अवशेष बचे गांव की और भी दृष्टि डाल लेनी चाहिए।
महाराष्ट्र का सबसे खूबसूरत शहर पुणे आज आबादी के बढ़ने से बदहाल हो रहा है। देश की राजधानी दिल्ली सांस लेने लायक नहीं रही। अब तो सरकार को सोचना ही पड़ेगा अन्यथा भावी पीढ़ियां कभी माफ नहीं करेगी।
*स्वतंत्र पत्रकार। प्रस्तुत लेख लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं।