दिल्ली: प्रदूषण से संक्रमण के मामले में हमारा देश और देश की राजधानी दिल्ली दुनिया में कीर्तिमान स्थापित कर चुकी है। दिल्ली दुनिया में सबसे सबसे प्रदूषित राजधानियों में शीर्ष पर है। देश के केन्द्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने स्वीकार किया है कि उनको देश की राजधानी दिल्ली में रहना पसंद नहीं है। इसकी अहम वजह यह है कि यहां प्रदूषण की वजह से उन्हें संक्रमण हो जाता है। यहां हर बार आते हुए लगता है कि उन्हें यहां आना चाहिए कि नहीं।
इतना भयंकर प्रदूषण है कि दिल्ली का AQI जो 8 जनवरी 2025 को 297 दर्ज किया गया था, उसमें तेज वृद्धि की प्रवृत्ति देखी गई और शांत हवाओं और कोहरे की स्थिति के कारण 9 जनवरी 2025 को शाम 4:00 बजे 357 दर्ज किया गया। इस वजह से ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (ग्रेप) पर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और निकटवर्ती क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग की उप-समिति ने आज फिर से क्षेत्र में वायु गुणवत्ता परिदृश्य की समीक्षा की और संशोधित ग्रेप के चरण-III के तहत परिकल्पित सभी कार्रवाइयों को लागू करने का आह्वान किया है। इस वजह से कई और गतिविधियों के साथ साथ दिल्ली नेशनल कैपिटल रीजन में बीएस 3 की पेट्रोल और बीएस 4 की डीजल गाड़ियों के आवाजाही पर भी फिर से पाबन्दी लग गयी है।
परन्तु हमारे यहां अक्सर खतरनाक स्तर पर पहुंच चुके वायु प्रदूषण पर अंकुश के लिए किये जाने वाले ग्रेप जैसे उपाय केवल प्रदूषण के बढ़ते स्तर को कम कर सकते हैं। जरूरत है प्रदूषण को बढ़ाने वाले कारणों पर अंकुश लगाया जाये। इस दिशा में चीन का उदाहरण प्रशंसनीय है। लेकिन चीन का अनुसरण कर पाना आसान नहीं है। इसमें वित्तीय संसाधनों की कमी और राजनीतिक दलों के आपसी टकराव तथा राज्य सरकारों के बीच समन्वय की कमी प्रमुख बाधा है जिसके चलते चीन का अनुसरण कर पाना असंभव है।
यहां दिल्ली में तो सुबह-शाम सैर करने वाले लोगों ने दमघोंटू हवा से बचने के लिए सैर करने जाना भी छोड़ दिया है। हालात इतने खराब हैं कि अगर उस माहौल में आपने सांस भी ले ली तो निश्चित मानिए कि आप गंभीर प्रदूषण से श्वांस,फेफडो़ं के कमजोर होने, फेफड़े के कैंसर, हृदय, धमकियों में खून का थक्का जमने, काला दमा, ब्रेन स्ट्रोक, विटामिन डी के घटते स्तर से हृदय सम्बन्धी रोगों में हो रही बढ़ोतरी, आंखों व त्वचा के संक्रमण, समय पूर्व प्रसव और कम वजन के बच्चों के जन्म होने जैसी बीमारियों के चलते होने वाले जान के जोखिम से बच नहीं सकते।
यह जहरीली हवा का ही नतीजा है कि अस्पतालों में सांस के रोगियों की तादाद में 30 फीसदी से ज्यादा की बढ़ोतरी दर्ज हुयी है। इसमें उम्र की कोई सीमा नहीं है। नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के फारेंसिक विभाग के अध्यक्ष डा० सुधीर गुप्ता के मुताबिक 22 फीसदी मौतों की मुख्य वजह श्वसन तंत्र में अवरोध है। सबसे जरूरी तो यह है कि लोगों को भी इस बात को लेकर सचेत रहना चाहिए कि वह किस तरह की हवा में सांस ले रहे हैं और वाहनों के धुंए जैसे नुकसानदायक वायु प्रदूषकों को कम करने के क्या उपाय किये जा रहे हैं या नहीं। इस बाबत जागरूकता बेहद जरूरी है। साथ ही लोगों को इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि वह मोटर साईकिल से या पैदल जाते समय कम व्यस्त सड़क पर ही चलें। यह सावधानी हमें काफी हद तक राहत दिलाने में मददगार हो सकती है।
देश में प्रदूषण का कहर थमने का नाम नहीं ले रहा है। दरअसल प्रदूषण के कारणों के बारे में माडलिंग अर्थ सिस्टम एण्ड इनवायरमेंट नामक पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में दावा किया गया है, खासकर उत्तर भारत के शहरों में आवासीय इलाकों और परिवहन से सबसे अधिक प्रदूषण फैल रहा है ,जबकि पश्चिमी भारत में उद्योग और ऊर्जा क्षेत्र प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है।
वायु प्रदूषण देश में हर घंटे 240 लोगों और 20 बच्चों की जान ले रहा है। यूनिसेफ़ और हैल्थ इफैक्ट्स इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट ‘स्टेट आफ ग्लोबल एयर-2024‘ ने इसे साबित कर दिया है। लैंसेट प्लेनेटरी हैल्थ में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक प्रदूषित शहरों में औसतन हर दिन होने वाली मौतों में से 7.2 फीसदी का संबंध हवा में मौजूद धूल के कण पी एम 2.5 से है। रिपोर्ट ने चेतावनी देते हुए कहा है कि भारत को अपने नागरिकों को प्रदूषित हवा के खतरों से बचाने हेतु विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशा निर्देशों के अनुरूप लाने के लिए काफी गंभीर प्रयास करने होंगे। भारत के राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानकों को और कडा़ करने के लिए जुट जाना चाहिए। सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि प्रत्येक क्यूबिक मीटर हवा में पी एम 2.5 में हर 10 माइक्रोग्राम की बढ़ोतरी से रोजाना मृत्यु दर में 1.42 फीसदी की वृद्धि हो रही है।
चाहे पहाड़ हो या मैदानी इलाका, तराई का इलाका हो या फिर देश का समुद्री तटीय इलाका,कोई भी प्रदूषण की मार से अछूता नहीं रहा है। देश की शीर्ष अदालत ने भी इस बाबत गंभीर चिंता व्यक्त की है। अध्ययन में पाया गया कि वायु प्रदूषण से मरने वालों में देश की राजधानी दिल्ली सर्वोच्च स्थान पर है। यहां हर साल 12,000, मुंबई दूसरे स्थान पर जहां 5091 मौतें हो रही हैं जबकि कोलकाता तीसरे तथा चेन्नई चौथे स्थान पर है। दिल्ली, बंगलूरू, मुंबई सहित 10 बड़े शहरों यानी अहमदाबाद, चेन्नई, हैदराबाद, कोलकाता, पुणे, शिमला और वाराणसी का जायजा लें तो पाते हैं कि इन शहरों में हर साल तकरीबन 34,000 मौतें वायु प्रदूषण के चलते होती हैं।
वायु प्रदूषण अब नासूर बन गया है। यह अब किसी खास मौसम की नहीं, बल्कि साल भर रहने वाली स्थायी समस्या बन चुकी है। यह तो अब लोगों की उम्र पर भी बुरा असर डाल रहा है। इससे जहां देश भर में रहने वाले लोगों की उम्र में 5.3 वर्ष की कमी आई है, वहीं राजधानी दिल्ली के लोगों की उम्र में 11.9 वर्ष की औसतन कमी आई है।
आई क्यू एयर की रिपोर्ट इस तथ्य को प्रमाणित करती है कि हमारा देश दुनिया के सबसे प्रदूषित देशों में शुमार है और वह दुनिया में तीसरे पायदान पर है। शिकागो यूनीवर्सिटी के अध्ययन के अनुसार पूरे भारत में एक भी जगह ऐसी नहीं है जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों पर खरी उतरती हो। यह भी कि हृदय संबंधी बीमारियों से औसत जीवन प्रत्याशा लगभग 4.05 वर्ष कम हो जाती है। जबकि बाल और मातृ कुपोषण से जीवन प्रत्याशा 1.8 वर्ष कम हो जाती है। देश के सबसे प्रदूषित उत्तरी क्षेत्र में 52.2 करोड़ यानी 38.9 फीसदी आबादी वास करती है। यदि प्रदूषण का वर्तमान स्तर बरकरार रहता है तो इस आबादी की जीवन प्रत्याशा में ड्ब्ल्यू एच ओ के दिशा निर्देश के सापेक्ष औसतन आठ वर्ष व राष्ट्रीय मानक के सापेक्ष 4.5 वर्ष की कमी का खतरा है। भारत में 67.4 फीसदी आबादी ऐसी जगहों पर रहती है जो भारत के खुद के बनाये मानक 40 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से भी ज्यादा प्रदूषण को झेल रही है।
बढ़ता प्रदूषण जहां पर्यावरणीय चुनौतियों को और भयावह बना रहा है, वहीं आबादी के लिए स्वास्थ्य संबंधी जोखिम बढा़ने में भी अहम भूमिका निबाह रहा है जिससे अनचाहे होने वाली मौतों में बेतहाशा बढो़तरी दर्ज हो रही है। इसके पीछे पी एम 2.5 कणों की महत्वपूर्ण भूमिका है जिसका आकार 2.5 माइक्रोन के करीब होता है। इसके बढ़ने से धुंध छाने, साफ न दिखाई देने, सांस के रोगों, गले में खराश होने, जलन और फेफडो़ं की गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है जो जानलेवा साबित होती हैं। अपने छोटे आकार के कारण पार्टीकुलेट मैटर फेफडो़ं में आसानी से गहराई तक पहुंच जाते हैं जो पी एम 10 से भी ज्यादा नुकसानदेह होता है।
यह भी कड़वा सच है कि ऊर्जा के परंपरागत स्रोत पर्यावरण में प्रदूषण का जहर तो घोल ही रहे हैं, वे मानव स्वास्थ्य के भी दुश्मन साबित हो रहे हैं। फिलहाल हकीकत यह है कि भारत लगातार वायु गुणवत्ता की खराब होती समस्या से जूझ रहा है जिसमें पी एम 2.5 की सांद्रता विश्व स्वास्थ्य संगठन के सालाना स्तर से भी 10 गुणा ज्यादा है। इसका दुष्परिणाम यह है कि हमारे देश के तकरीब 1.36 अरब लोग पी एम 2.5 की उच्च सांद्रता की चपेट में हैं।
निष्कर्ष यह कि वायु प्रदूषण मानव स्वास्थ्य के लिए अब सबसे बडा़ पर्यावरणीय खतरा बन चुका है। फिर दिनोंदिन न्यूरोकाग्निटिव विकृतियां बढ़ने की घटनाओं को देखते हुए नीति निर्माताओं द्वारा इस मामले पर व्यापक स्तर पर विचार करना बेहद जरूरी है तभी कुछ बदलाव की उम्मीद संभव है।
*वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद।