कॉप भी आरती-उत्सव बन गया है
दुबई: कॉप 28 में जो चर्चाएं हैं, वह अपने-अपने पक्ष को अपने-अपनी बातों को प्रतिष्ठित करने की हैं। अपने को स्थापित करने और प्रतिस्थापित करने में जुटे हैं। यह प्रतियोगिता की बातें करके, आगे निकलना चाहते हैं।कॉप 28 प्रतियोगिता का केंद्र बन गया है।
दुनिया की सारी सरकारें पार्टी बनकर, अपनी पार्टी की वकालत में लगी हैं। वो दुनिया को बचाने की चिंता नहीं कर रही हैं। जबकि कॉप सम्मेलन दुनिया को बचाने के नाम पर होता है। दुनिया में जो बिगाड़ करने वाले हैं, वह अपने बिगाड़ को स्वीकार करके, बिगाड़ करना बंद करें और दुनिया को प्रेम से पोषित करके हरा-भरा बनाकर सुखी और समृद्ध बनाने की दिशा में काम करें। लेकिन उस दिशा कोई भी प्रक्रिया पूरे कॉप में नहीं दिखाई दी है।
हम जानते हैं कि सरकार की अपनी अपनी सीमाएं हैं और छुपे एजेंडा होते हैं, नहीं तो कॉप की प्रक्रिया को शुरू हुए 52 वर्ष हो गए। इन सभी में प्रधानमंत्री, राष्ट्रीय अध्यक्षों के मिलने से पर्यावरण का सुधार हो जाएगा? यह कहना थोड़ा मुश्किल लगता है।
कॉप को सुधार के लिए जरूरी है कि प्रकृति की गति व तरीके से हम भी अपने आप को प्रकृतिमय बनाएं। तब ही यह प्रकृति हम सबको सक्षम बनाने में सबल होगी।यह व्यवहार और संस्कार हमारी परंपराओं और विद्या में निहित है। उसे शिक्षा ने तोड़ने और मिटाने का काम किया है, लेकिन विद्या ने उसे हमेशा जोड़ने के काम में आगे बढ़ाया। इसलिए हमें शिक्षा और विद्या के अंतर को समझना बहुत आवश्यक है।
यदि हम दुनिया को बेहतर बनाना चाहते हैं, तो हमें अपने जीवन को धरती व प्रकृति का संवर्धन करने वाली विद्या ग्रहण करके जीवन जीना शुरु करना होगा, तभी इस कोप की सार्थकता सिद्ध होगी। अभी तो पूरी दुनिया के लोग डीजल ,पेट्रोल, जलाकर हवाई जहाज में और अन्य वाहनों में बड़ी संख्या में एक जगह इकट्ठा होते हैं। ऐसा लगता है कि ,यह कॉप भी आरती -उत्सव बन गया है।
हम सभी को दुनिया को बेहतर बनाने का लिए संकल्प लेना चाहिए कि हम जितना प्रकृति से लेते हैं, उतना प्रकृति को अपने जीवन से पोषित करेंगे। पर्यावरण को क्षति करने वाले देश क्षति को स्वीकार करके, उस क्षति का मुआवजा दुनिया को दें। यह प्रकृति का नियम है। प्रकृति नियम के अनुरूप काम करना ही चाहिए। लेकिन कॉप के 50 साल पूरे होने पर भी पर्यावरण को क्षति पहुंचाने वालों ने क्षति पहुंचाने का काम और तेज कर दिया है।
50 साल पहले केवल पश्चिम के देश ही दुनिया को क्षति पहुंचाने का काम करते थे, अब तो पूरी दुनिया में क्षति पहुंचाने वाले लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। दुनिया का जीवन जीने का तरीका बदलता जा रहा है। जिसके पूरी दुनिया में बहुत जल्दी विनाश होगा। हम जितनी गति से विकास करते हैं, उतनी ही तेज गति से विनाश होता है। यदि इस लालची विकास को छोड़कर, मानवता और प्रकृति का पोषण व पुनर्जीवित बनाने वाला जीवन जिएंगे, तो यह दुनिया आनंद से ज्यादा दिन चलेगी।
भारत का मूल सिद्धांत सनातन है। हमारी भारतीय आस्था और पर्यावरण रक्षा के व्यवहार और संस्कार को बनाए रखने और बचाने की जरूरत है। हम अपनी भारतीय आस्था से दुनिया को सिखाने के लायक हैं लेकिन जिस तरह से दुनिया दिखावटी बन रही है, वैसे ही हम बन रहे है। इस दिखावे से निकलकर भारतीय आस्था और विद्या से जोड़ने का काम शुरू करें।सनातन का अर्थ होता है सदैव नित्य-नूतन निर्माण होते रहना। इसका ना आदि होता है और ना अंत होता है, यह तो सदैव चलता ही रहता है। हम ऐसे पुनर्जीवन का रास्ता पकड़े। कॉप में ऐसी चर्चा होनी चाहिए।
कॉप में स्थायित्व तकनीक विषय पर आयोजित सभा में मैंने दुनिया के वैज्ञानिक और व्यापार करने वाले लोगों से कहा कि आधुनिक तकनीक और इंजीनियरिंग को हम अपने सुख और समृद्धि के लिए उपयोग करते हैं। तकनीक का जितना जरूरी होता है,उतना उपयोग करना तो बुरा नहीं है लेकिन जब हम अपनी लालच को पूरा करने के लिए उपयोग करते हैं तो यह तकनीक दुनिया का बिगाड़ शुरू कर देती है। यहां जो भी तकनीक बताई गई हैं, उनकी खोज सिर्फ कंपनी लाभ के लिए हुआ है, उसमे प्रकृति का सुख नहीं है। यदि इस तकनीक का प्रकृति के पोषण के लिए उपयोग होता तो हमारे जीवन में जमीर के साथ जीने का व्यवहार और संस्कार बढ़ता जाता। इसलिए कंपनी के लाभ की चिंता छोड़कर, प्रकृति के शुभ के लिए तकनीक की खोज करने की जरूरत है ।
10 दिसंबर 2023 को दुबई में समुद्र के किनारे दुनिया के हजारों लोग जुटे । यहां समुद्र के किनारे साधारण पट्टी पर समुद्र यात्रा की गई। इस समुद्र यात्रा का संदेश था कि समुद्र इस दुनिया को जीने के लायक वातावरण बनाता है और दुनिया का जहर अपने अंदर घोलकर बहुत सारे जीवन को भी बचाता रहता है।
जहरीले जल का यह सागर पूरे जीव जगत का संतुलन बनाने में मददगार है । लेकिन हम समुद्र की गति और महानता को भूल रहे हैं। इस बात की बहुत जरूरत है कि, हम समुद्र को सृष्टि का निर्माता व पोषक माने। हिंदू संस्कृति में ब्रह्मा, विष्णु और महेश को हमारे जीवन के निर्माता ,पोषक, रक्षक, संरक्षक और संघारक माना जाता है, वह समुद्र ही है। लेकिन समुद्र को हमारे मानवीय लालची व्यवहार तिरस्त कर रहा है, उससे हमें बचाने की आवश्यकता है। हमें समुद्र को अपना महत्वपूर्ण अंग मानकर प्यार से जीना शुरु करना होगा। यही सृष्टि को जीवन के अनुकूल बनाए रखने में मदद करेगा। कॉप में समुद्र के विषय पर भी इसी तरह की चिंता होनी चाहिए।
मैने कॉप 28 में रिजीलियंस हब के वैलिडिटी सेशन में कहा कि, रेजिलियंस हमारे व्यवहार में लाने की जरूरत है। जब यह व्यवहार में आएगा तो फिर प्रकृति में अपने आप व्यवहार में विकसित होने लगेगा। फिर व्यवहार लचीला होकर प्रकृति के प्यार – सम्मान का संस्कार लाने लगता है। तब हमारी प्रकृति और हम दोनों एक साथ समृद्ध बनने लगते हैं। हमारा लचीलापन हमारी समृद्धि लाता है। इसलिए हमे समझना होगा कि, प्रकृति में बहुत लचीलापन है, बल्कि हमने अपने जीवन को रासायनिक और भौतिक पदार्थ से बिगाड़ दिया है। इस बिगाड़ को ठीक करने के लिए सबको एक साथ आना होगा।
11 दिसंबर 2023 को कॉप 28 में मैंने बीजों, धरती, पानी, जंगल और पर्यावरण के संरक्षण के लिए दुनिया में चल रहे आंदोलन के आंदोलनकारियों के साथ मिलकर मार्च किया। इसमें भारत के बहुत लोग शामिल थे।
मार्च में प्रकृति के रक्षण – संरक्षण हेतु सरकारों को काम करने के लिए निवेदन किए जाते हैं कि सरकारें इन मुद्दों को समझे और जुड़े। आंदोलन में दुनिया भर भारत, नेपाल, अमेरिका, यूरोप के सब देशों से लोग जुड़े थे। इन सभी ने अपने बैनर के माध्यम से सरकार को ध्यान दिलाया कि, बिगाड़ने वालों को हर्जाना देना चाहिए। इस मार्च में मुख्य नारे प्रकृति-पर्यावरण को बचाने व जल ही जलवायु है- जलवायु ही जल है, आदि अलग अलग संगठन अपने अपने मुद्दों के नारे लगा रहे थे।
इस बार जल ही जलवायु है और जलवायु ही जल है इस नारे के लिए कॉप 21,पेरिस जैसी एकजुटता नही थी।इस मार्च से संयुक्त राष्ट्र संघ को प्रभावी करके पर्यावरण के कुछ अच्छे काम हो पाएंगे, इसकी संभावना बहुत कम ही है।
ग्रीन जॉन में तरुण भारत संघ के कामों पर बनी फिल्म विश्व शांति हेतु दिखाई गई । यहां विश्व शांति के प्रयास का भी विमोचन हुआ। पुस्तक का विमोचन करते हुए साउथ अफ्रीका की रिटेंडो ने कहा कि उसने तरूण भारत संघ काम भारत में देखा है। इस काम से उसे बड़ा परिवर्तन देखने को मिला है। जो लोग लाचार होकर बंदूके उठा रहे थे, वो लोग जब घायल हुए तो उनको जल उपलब्ध कराकर शांति और समृद्धि लाने का काम तरुण भारत संघ ने करके दिखाया। इस वर्ष संयुक्त संघ ने जल शांति वर्ष घोषित किया है, इस अवसर पर तरुण भारत संघ के कामों के प्रयोग को आगे बढ़ाने की जरूरत है।
*जलपुरुष के नाम से विख्यात जल संरक्षक