सान जोसे दे अपर्तादो: दक्षिण अमेरिका में कोलंबिया का सान जोसे दे अपर्तादो क्षेत्र अभी अहिंसक बदलाव के रास्ते पर है। यह क्षेत्र दक्षिण अमेरिका के बिल्कुल सीमा पर है। यहां का शांति समुदाय (कौमूनीदाद दे पाज़) 27 छोटे-छोटे गांव और 27 समुदायों के साथ सान जोसे दे अपर्तादो क्षेत्र में बसा है। यह पूरा क्षेत्र तीन पहाड़ी श्रृंखलाओं के बीच में स्थित है। समुदाय के इन 27 गांवों में एक जैसे ही सिद्धांत की पालना होती है। इनका सिद्धांत है कि, कोई भी व्यक्ति हथियार नहीं रखेगा। कोई भी हिंसक युद्ध का समर्थन नहीं करेगा। हिंसक हमले का साथ नहीं देगा। हिंसक गतिविधियों में शामिल नहीं होगा। कोई भी गोरिल्ला लोगों को किसी भी तरह खाने-पीने, रहने आदि का सहयोग नहीं करेगा। जिन-जिन लोगों ने इस सिद्धांत को माना, उन सभी लोगों को इस शांति समुदाय में शामिल किया और उनका विधिवत पंजीकरण होता है।
शांति समुदाय ने अहिंसक रास्ता 27 साल पहले महात्मा गांधी से सीखकर अपनाया था। महात्मा गांधी के सिद्धांतों से चलने वाले यहां के पादरी खब्येर इरालदो की उम्र 72 वर्ष है लेकिन यह रात – दिन सक्रिय युवा की तरह काम करते हैं। इन्होंने महात्मा गांधी का रास्ता अपनाया है। यह विश्वविद्यालय में आयोजित वार्षिक उत्सव समारोह में शांति समुदाय के विचार संरक्षकों और सिद्धांत को माननेवाले आदि लोगों बुलाते हैं। इसीलिए ही भारत से मुझे यहां बुलाया गया है।
पादरी खब्येर यहां गांव में आए तो उन्होंने कहा था कि यदि आपके यहां रहना और जीना सीखना है, तो महात्मा गांधी का रास्ता ही हमें यहां सत्य के आग्रह पर टिका सकता है।यहां के सब लोग तो महात्मा गांधी को नहीं जानते थे, पर पादरी खब्येर इरालदो महात्मा गांधी को जानते थे।
खब्येर इरालदो यहां रहकर लोगों को हिंसा मुक्त जीवन जीने का रास्ता सिखा रहे हैं। इनके साथ अब बहुत सारे अंतरराष्ट्रीय लोग नैतिक शक्ति के साथ जुड़े हैं। यहां शांति समुदाय की बहुत सक्रिय टीम काम कर रही है।इस समुदाय के सिद्धांत ही इनकी शक्ति है।
यह पूरा क्षेत्र बापू की उपस्थिति दर्ज कराता है। मुझे अभी इनके बीच आए हफ्ता भर हुए हैं। मैंने अपने पिछले 50 सालों के सामाजिक काम की प्रेरणा महात्मा गांधी, विनोबा भावे, जयप्रकाश नारायण से ली है। जिस ग्राम स्वराज की कल्पना बापू ने हमें कराई थी, वो कल्पना संपूर्ण रूप से यहां दिखती है। यह समुदाय अपने खाने का सामान खुद पैदा करते हैं, जीवन जीने की सभी जरुरी चीज यह खुद बना लेते हैं। खुद जीवन के लिए पैदा करना और जीवन को चलाने के लिए खुद बनाना, इनके जीवन का हिस्सा हो गया है।इसलिए इस दक्षिण अमेरिका क्षेत्र में महात्मा गांधी की जीवन उपस्थित नजर आती है। महात्मा गांधी क एक जीवंत रूप यहां देखा जा सकता है।
यहां मैं जो कुछ देख रहा हूँ उससे आनंदित भी हूँ और दुखी भी हूँ । बापू का जिस देश में जन्म हुआ, उस देश में हम बापू के विचारों को क्रियान्वित नहीं कर पाए, जबकि हम अपने आपको बापू को तीसरी पीढ़ी मानते हैं। यह तीन पीढ़ी जाने के बाद बापू के रास्ते पर चलने वाले आज भी भारत में लाखों लोग हैं, लाखों जगह पर अच्छे काम भी हो रहे हैं। टुकड़ों-टुकड़ों में बापू का काम भारत में भी बहुत अच्छा है; लेकिन यहां शांति समुदाय में गांधी का संपूर्ण दर्शन होता है। ऐसा ही लगता है कि गांधी अंग्रेजों से जिस काल में लड़ रहे थे और जिस काल में वहां हिंसा थी तब यहां के लोग पैरामिलिट्री और गोरिल्ला सेना दोनों से संघर्ष करते रहे थे। अभी इस क्षेत्र से गोरिल्ला सेना जरूर खत्म हो गई हैं लेकिन पैरामिलिट्री का दबाव लोगों के ऊपर बहुत है। ऐसे हालात में भी यह अपने गांवों में अहिंसक सिद्धांत अपनाते हैं।
यह भी पढ़ें: कौमूनीदाद दे पाज़ – प्रकृति का रक्षण करने वाला अनोखा समुदाय
5 नवंबर 2024 को शांति समुदाय (कौमूनीदाद दे पाज़), सान जोसे दे अपर्तादो, कोलंबिया, दक्षिण अमेरिका के आदिवासी विश्वविद्यालय में अपने अनुभवों को रखा और कौमूनीदाद दे पाज़ समुदाय के सभी लोगों के साथ नदी यात्रा की। इस नदी यात्रा में जल संरक्षण के कामों की संभावनाओं को तलाशा। इस अवसर पर शांति समुदाय को नदी के अंग, प्रत्यंग और सम्पूर्ण नदी दर्शन समझाया – नदी जंगल में कैसे बनती और चलती है? नदी को बनाने का काम प्रकृति कैसे करती है? नदी कैसे जीवन देती है? नदी का प्रवाह और हमारे जीवन का प्रवाह कैसे जुड़ा है? जब नदियां सूखती है तो सभ्यताएं भी कैसे मर जाती हैं? इत्यादी।