बेबाक: कचरा के दुर्गंध से आक्रोषित जनमानस
हमारे कोटा शहर में पिछले कुछ दिनों से थेगडा कचरा ट्रांसफर स्टेशन से उत्पन्न दुर्गंध को लेकर वहां का जनमानस आक्रोषित है। पहले भी जहां-जहां डंपिंग यार्ड और कचरा पॉइंट है वहां पर यह समस्या हमेशा मुंह बाएं खड़ी रहती है। शहर के निकट नांता डंपिंग यार्ड जहां पर कचरे के पहाड़ बने हुए हैं उनके निस्तारण की कोई योजना सफल होती नहीं दिख रही। हां प्रतीकात्मक कार्य जरूर समय-समय पर किए जाते हैं लेकिन इसका व्यापक असर सफाई प्रणाली और जनजीवन पर नहीं दिख रहा। डंपिंग यार्ड और कचरा पॉइंट शहर के नागरिकों के स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बने हुए हैं इनमें समय-समय पर लगने वाली आग से जहरीली गैसें प्रदूषण फैला रही हैं। इसी प्रकार चम्बल नदी में सैकड़ों नाले बिना शोधित किए डाले जा रहे हैं। चंबल का प्रदूषण तो राष्ट्रीय मुद्दा बन रहा है। माननीय न्यायालय बार-बार चेता रहे हैं एवं जुर्माना भी कर रहे हैं फिर भी हमारे नगर निकायें सुधरने को तैयार नहीं है।
इसके लिए एकमात्र नगर पालिकाओं और निगम की नीतियों में परिवर्तन करना आवश्यक है। हमारा मानना है कि भारत के जितने भी शहरों में कचरे की समस्या से थोड़ी सी राहत मिली है वहां पर पृथक्कीकरण (सेग्रीगेशन) और पुनर्चक्रण( रिसाइक्लिंग) की व्यवस्था को सुदृढ किया गया है। राजस्थान में भी राज्य सरकार चाहे तो ऐसा कर सकती है यह बहुत कठिन काम नहीं है। इसके लिए हमें हमारी सफाई प्रणाली को पुनर्गठित करना होगा और प्रशिक्षित कर्मचारियों को इस काम में लगाना होगा। अभी हो क्या रहा है कि सफाई के नाम पर कि हम कचरे को एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर पटक रहे हैं इसके अलावा और कोई काम हो नहीं रहा। सरकार का काम कचरे का परिवहन मात्र नहीं है, समस्या का निराकरण होना चाहिए। हमारा तो यह भी कहना है कि नगर पालिकाओं को अपना ध्यान केवल सफाई की समस्या के समाधान पर ही होना चाहिए, निर्माण आदि कार्य अन्य विभागों को दे दिया जाए तो ज्यादा बेहतर होगा। नगर निगम तभी सफाई व्यवस्था पर फोकस कर सकेगा। बढ़ती आबादी और बढ़ता शहरीकरण और इसी अनुपात में कचरे की समस्या विकराल रूप ले रही है। पॉलीथिन प्लास्टिक जैविक ,अजैविक कचरे को अलग-अलग करना ही इसका समाधान है। ऐसा कतई नहीं है कि हमारी नगर पालिकाएं और नगर निगम कचरे की व्यवस्था के लिए कुछ नहीं कर रही निश्चित रूप से बहुत कुछ कर रही है, लेकिन यह भी सत्य है कि यह सही ढंग से नहीं हो रहा है।
घर घर कचरा संग्रहण से 20% लाभ तो यह हुआ कि अब जन सामान्य कचरे को सीधा सड़क पर नहीं फेंक रहा। कचरा संग्रहण की गाड़ियों में कचरे को अलग-अलग करने क्षेत्र बने हुए हैं लेकिन अभी मिश्रित कचरा ही एकत्रित किया जा रहा है। यदि नगर पालिका प्रशासन मिश्रित कचरे को लेना बंद कर दे तो आमजन में कचरे को पृथक करने की आदत विकसित हो सकती है। ठोस- तरल- संसाधन- प्रबंधन (एस एल आर एम) ही एकमात्र सफाई का आधुनिक और वैज्ञानिक मॉडल है इसको अपनाऐ बिना समस्या का समाधान नहीं हो सकता।
हम अक्सर एक गलती कर जाते हैं कि महानगरों की नकल करने लगते हैं कि दिल्ली मुंबई में ही कचरे का समाधान नहीं हुआ तो हम क्या कर लेंगे? यदि अच्छा उदाहरण छत्तीसगढ़ की रायपुर नगर पालिका प्रस्तुत कर सकती है। मध्य प्रदेश में इंदौर और उज्जैन उदाहरण प्रस्तुत कर सकते हैं तो राजस्थान में कोटा क्यों नहीं कर सकता?
सफाई अभियान एक दो दिन के लिए ही क्यों ये तो निरंतर होना चाहिए। जब कचरा प्रतिदिन ब रहा है तो उसका निस्तारण भी प्रतिदिन होना चाहिए। केवल 2 अक्टूबर को अभियान चलाने से इस समस्या का समाधान नहीं हो सकता। सफाई संबंधी जितने भी नियम और कानून बने हैं उनका ईमानदारी से पालन करना भी इस व्यवस्था का अंग होना चाहिए। कोटा नगर निगम के पास तो अपने ना तो पूरे संसाधन है और नहीं कर्मचारी और अधिकारी। कई बड़े-बड़े पदों पर वर्षों से नियुक्तियां ही नहीं हो रही। इस काम को तो सरकार गंभीरता से करें।
अच्छा काम कहीं से भी शुरू हो तो देश ही नहीं विश्व के अन्य नगर भी उसका अनुसरण करने में चूकेंगे नहीं। स्वायत्त शासन निकायों को सिर्फ और सिर्फ सफाई की व्यवस्था पर ही ध्यान केंद्रित करना चाहिए ,इस प्रकार की नीतियां बनानी चाहिए और उसी में दक्ष लोगों को सफाई जैसे महत्वपूर्ण कार्य में लगाना चाहिए अब जमाना अकुशल श्रमिकों का नहीं है। इसमें दक्ष एवं प्रशिक्षित कर्मचारियों को ही नियुक्त करना चाहिए जो आम जनता के साथ समन्वय कायम कर सकें। मौजूदा झाड़ू लगाने की सफाई प्रणाली का जमाना अब लद गया है। इसमें नवाचार की बहुत आवश्यकता है ।यदि हमने समय रहते इस समस्या का समाधान नहीं किया तो आने वाले समय में कोरोना जैसी महामारी भी फैल सकती है ,और प्रदूषण के कारण जो हालत हमारी राजधानी के बन रहे हैं वो हमारे शहर के भी बन सकते हैं।
*स्वतंत्र पत्रकार