– सुरेश भाई*
गंगा घाटों को प्रदूषण मुक्त करने के लिए करोड़ों खर्च करने के बावजूद भी पटना के गांधी घाट और गुलाबी घाट पर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के द्वारा जनवरी 2023 में कराए गए एक अध्ययन से पता चला कि 100 मिलीलीटर गंगाजल में टोटल कॉलीफॉर्म यानी खतरनाक जीवाणुओं की संख्या1.60 लाख तक पहुंच गयी है। जबकि यहां वर्ष 2021 में कॉलीफॉर्म की संख्या 16000 थी। यह स्थिति शहर में बढ़ते अंधाधुंध सीवरेज के कारण हैं। गंगा में इस भीषण प्रदूषण के बाद अब स्थिति ऐसी नहीं है कि यदि इसको फिल्टर भी किया जाय तो तब भी स्वच्छ नहीं हो सकती है।
वैसे बिहार में गंगा की यह स्थिति बक्सर से लेकर कहलगांव तक है। उत्तर प्रदेश में भी मेरठ, कानपुर, प्रयागराज, वाराणसी में जल शोधन के लिए जो 35 एसटीपी बनाए गए हैं उसमें से 27 की क्षमता मानक के अनुसार नहीं है यानी कि इन शहरों की जितनी गंदगी गंगा में जा रही है वह पूरी तरह साफ नहीं कर पा रही है। यहां गंगा के किनारे के शहरों से लगभग 230 गंदे नाले बह रहे हैं जो प्रतिदिन 2450 एमएलडी गंदा पानी गंगा में उड़ेल देते हैं। यहां यदि 35 एसटीपी प्लांट काम करने लग जाए तो उनसे 1493 एमएलडी गंदा पानी का शोधन होना चाहिए था। लेकिन इसमें से केवल 8-9 एसटीपी भी पूरी तरह काम नहीं कर पा रहे हैं।
इस विषय पर पिछले दिनों इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश राजेश विंदल की खंडपीठ ने कहा है कि नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा का काम बहुत धोखा देने वाला है। यह पैसे बांटने की मशीन बन गई है। उच्च अदालत ने कहा कि जमीन पर काम नहीं दिखाई दे रहा है। और पर्यावरण इंजीनियरों की कार्यशैली पर भी सवाल उठाया गया है।
दूसरी ओर जहां गंगा का उद्गम है वहां की हालत दिन-प्रतिदिन बहुत चौंकाने वाली है। गंगोत्री और यमुनोत्री में आ रहे लाखों पर्यटकों द्वारा जमा हो रहे प्लास्टिक कचरे के ढेरों का निस्तारण नहीं हो पा रहा है आजकल फिर उत्तरकाशी प्रशासन के माध्यम से प्रयास है कि पर्यटकों द्वारा इधर-उधर फेंकी जा रही कोल्ड ड्रिंक्स और पानी की प्लास्टिक बोतलों को एक जगह एकत्रित किया जाए जो पर्यटक अपनी खाली बोतल को कलेक्शन सेंटर में जमा करेगा उसे 5 रूपए भी दिया जाएगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब 2014 में बनारस से पहला लोकसभा का चुनाव जीता तो, उन्होंने कहा की गंगा ने उन्हें यहां बुलाया है। लोग उनकी यह बात सुनकर बहुत भावुक भी हुए। अनेकों को उनकी यह आवाज किसी आकाशवाणी से कम महसूस नहीं हुई। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के समय गंगा सरंक्षण परियोजना की अनेकों खामियों को गिनाकर देश के सामने गंगा की अविरलता और निर्मलता के लिए नए सपने देखे गए हैं। जिसके फलस्वरूप नमामि गंगे परियोजना प्रारंभ की गई। जिसके लिए ‘नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा’ का गठन किया गया। गंगा की सफाई के लिए 20 हजार करोड़ का बजट निर्धारित किया। 2019 तक गंगा को पूरी तरह निर्मल करने का आश्वासन भी दिया गया था। जिसके अंतर्गत गंगोत्री से गंगासागर के बीच में अनेकों सीवर ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) लगाए जा रहे हैं।
परन्तु इसके बावजूद हाल के दिनों में भारतीय वन्य जीव वैज्ञानिकों की एक टीम के द्वारा किए गए शोध से पता चल रहा है कि गंगाजल को शुद्ध रखने वाले मित्र जीवाणु (माइक्रो इनवर्टीब्रेट्स) प्रदूषण के कारण तेजी से विलुप्त हो रहे हैं जिसमें कहा जा रहा है कि भागीरथी नदी में गोमुख से लेकर देवप्रयाग तक कई स्थानों पर मित्र जीवाणुओं की संख्या बेहद कम हो गई है। यही स्थिति अलकनंदा नदी में माणा से लेकर देवप्रयाग तक बताई जा रही है। वैज्ञानिकों के अनुसार दोनों नदियों में जल को साफ रखने वाले जीवाणुओं का कम पाया जाना इस बात का संकेत है कि यहां की जल की गुणवत्ता फिलहाल ठीक नहीं है।
माना जा रहा हैं कि ‘ऑल वेदर रोड’ के निर्माण का मलवा सीधा नदियों में डाला जा रहा है। नदियों के किनारे बसे गांव व शहरों से निकलने वाला गंदा पानी भी बगैर ट्रीटमेंट के ही नदियों में सीधे प्रवाहित हो रहा है। वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ बीपी उनियाल और डॉ निखिल सिंह के शोध से यह बात सामने आयी है कि बैटिरयाफोस बैक्टीरिया गंगाजल के अंदर उत्पन्न होने वाले अवांछनीय पदार्थ को खाते रहते है, जिससे गंगा जल की शुद्धता बनी रहती है। देश की अन्य नदियां 15 से लेकर 20 किलोमीटर के बहाव के बाद ही खुद को साफ कर पाती है और गंदगी नदियों की तलहटी में जमा हो जाती है। जबकि गंगा एक किलोमीटर के बहाव में खुद को साफ कर देती है। लेकिन यह तभी संभव है जब उसमें अंधाधुंध गंदगी न जा रही हो।
दूसरी ओर देखें तो वन्यजीव संस्थान के पूर्व डीन डॉ जीएस रावत के मुताबिक गोमुख ग्लेशियर पर ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव को लेकर एक अध्ययन में कहा जा रहा है कि जहां से बर्फ का इलाका सिमट रहा है वहां पर 50 हजार तरह के ऐसे बैक्टीरिया पैदा हो गए हैं जो बर्फ विहीन इलाके को हरियाली में बदल रहे हैं। अतः गंगा को जन्म देने वाला यह ग्लेशियर 200 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है जहां बर्फ से खाली हुए क्षेत्र को हरियाली में बदलने की ताकत इन बैक्टीरिया प्रजाति में मिली है। लेकिन इसका प्रभाव जीव धारियों पर क्या पड़ेगा यह भविष्य ही बताएगा।
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक विष्णुप्रयाग से लेकर हरिद्वार तक गंगाजल पीने लायक नहीं है हरिद्वार में तो केवल गंगा में नहा ही सकते हैं। ‘नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा’ ने अब तक बद्रीनाथ से लेकर हरिद्वार तक 31 सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट लगा दिये हैं जो अभी पूरी तरह से गंगा में पहुंच रही गंदगी को नहीं रोक पाये है। उत्तराखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के विशेषज्ञों की ओर से भी यह बात सामने आ रही है कि गंगा और यमुना में घुलनशील ऑक्सीजन की मात्रा निर्धारित मानकों के अनुरूप नहीं है।वैज्ञानिकों के मुताबिक रुद्रप्रयाग में अलकनंदा नदी में जहां घुलनशील ऑक्सीजन की मात्रा 10 पायी गई वहीं उत्तरकाशी में यमुना नदी में इसकी मात्रा 10, 8 मापी गई है जो निर्धारित मानक 5 से बहुत अधिक है। पिछले वर्ष गौमुख ग्लेश्यिर के पास भी यात्रा सीजन में 10 हजार किग्रा से अधिक कचरा इकट्ठा हुआ। नदियों में निरंतर घट रही जल राशि के कारण भी प्रदूषण बढ़ रहा है। नदियों के उद्गम में अब बर्फ पड़ना बहुत कम हो गया है।
दिनोंदिन गंगा में प्रदूषण इतना बढ़ गया है कि उसने ऑक्सीजन को भी निगल दिया है। गंगा बन गई है मैला ढोने वाली गाड़ी! प्रदूषण के कारण गंगा को जितना बुखार चढ गया है उससे कहीं अधिक उसके जल का सेवन करने वाले लोग तरह-तरह की बीमारियों से पीड़ित हैं।
अतः वैज्ञानिक शोध तो चिंतित है ही, साथ ही पर्यावरण संरक्षण के काम में लगे संघर्षशील लोग भी सवाल उठा रहे हैं कि गंगा के उद्गम से लेकर गंगासागर के बीच में प्रतिदिन लाखों हरे पेड़ क्यों काटे जा रहे हैं? कब उद्योगों के कचरे को गंगा में जाने से रोकेंगे? गंगोत्री में काटे जाने वाले लाखों देवदार के पेड़ों की चिंता से भी देशवासियों को अवगत करा रहे हैं।
*लेखक सामाजिक कार्यकर्ता हैं।
I recall being taken to various cities on the Ganga – Patna, Allahabad and Varanasi in press parties when Maneka Gandhi was Environment Minister to show how Ganga was being cleaned. But sad that nothing has changed after almost three decades.