स्वामी विवेकानंद जयंती पर विशेष
राष्ट्रभक्ति और भारतीयता से परिपूर्ण था स्वामी विवेकानंद का रोम रोम। स्वामी विवेकानंद ने अमेरिका के शिकागो में आयोजित सर्व धर्म सम्मेलन से लौटते समय रामेश्वरम के पावन तट पर कहा था कि ” मेरी चिर पुरातन भारत माता एक बार फिर जाग रही है। मैं न तो ज्योतिषी हूँ और न भविष्यवक्ता लेकिन मैं प्रत्यक्ष रूप से देख रहा हूँ कि आने वाली सदियां भारत की होगी।”
स्वामी विवेकानंद विशुद्ध रूप से आध्यात्मिक व्यक्ति थे और भारतीयता के क्रांतिकारी अग्रदूत भी। उनमें भारत की आध्यात्मिकता और भौतिक विकास की ललक थी। उन्होंने एक बार कहा था ” मुझे उस धर्म व राष्ट्र से संबंध रखने पर गर्व है जिसने दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौमिकता सिखाई है। हम न केवल सार्वभौमिक सहनशीलता में विश्वास रखते हैं बल्कि सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करते है। मुझे भारतीयता होने पर गर्व है, जिसमें विभिन्न राष्ट्रों के पीड़ितों और शरणार्थियों को आश्रय दिया है”।
भारत के प्रति अत्याधिक लगाव रखते थे स्वामी विवेकानंद । वे एक देशभक्त संन्यासी थे। उन्होंने अमेरिका स्थित शिकागो में सन् 1893 में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। शिकागो में दुनिया ने जब उन्हें सुना तब जाना कि भारत की धरती पर एक ऐसा व्यक्तित्व पैदा हुआ है जो दिशाहारा मानवता को सही दिशा देने में समर्थ है। शिकागो में विवेकानंद ने कहा था कि “मुझे गर्व है कि मैं उस धर्म से हूँ जिसने दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है। हम सिर्फ सार्वभौमिक सहिष्णुता पर ही विश्वास नहीं करते बल्कि हम सभी धर्मों को सच के रूप में स्वीकार करते हैं। मुझे गर्व है कि मैं उस देश से हूँ जिसने सभी धर्मों एवं देशों के सताए गए लोगों को अपने यहां शरण दिया”।
भारत का आध्यात्मिकता से परिपूर्ण वेदांत दर्शन अमेरिका और यूरोप के हर एक देश में स्वामी विवेकानंद के उद्बोधन के कारण हुआ। इस उद्बोधन में स्वामी विवेकानंद द्वारा सभी को “भाइयों एवं बहनों ” कहकर संबोधित किए जाने से सभी के मन पर गहरा प्रभाव डाला। उस भाषण को आज भी याद किया जाता है। जब वे चार साल बाद अमेरिका और ब्रिटेन की यात्रा कर भारत लौटे तो वे मातृभूमि को नमन कर पवित्र भूमि पर लेटकर लोट पोट हुए। यह मातृभूमि के प्रति उनके मन में अपार श्रद्धा और मां भारती के प्रति प्रेम था। उन्होंने कहा था मातृभूमि का कण कण पवित्र और प्रेरक है इसलिए इस धूलि में रमा हूँ। उन्होंने माना कि पश्चिम भोग लालसा में लिप्त है। इसके विपरीत आध्यात्मिक मूल्य और लोकाचार भारत के कण कण में रचा बसा है।
स्वामी विवेकानंद ने युवाओं के लिए कहा था ” उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाए”। उन्होंने कहा था कि युवाओं में लोहे जैसी मांशपेशियां और फौलादी नसे हैं, जिसका हृदय वज्र तुल्य संकल्पित है।
वास्तव में स्वामी विवेकानंद आधुनिक मानव के आदर्श प्रतिनिधि हैं। विशेषकर भारतीय युवाओं के लिए स्वामी विवेकानंद से बढ़कर दूसरा नेता नहीं हो सकता जिसने विश्व पटल पर अपनी अमिट छाप छोड़ी हो। उन्होने देशवासियों को जो स्वाभिमान दिया है वह उत्तराधिकार के रूप में प्राप्त कर हमारे अंदर आत्मसम्मान और अभिमान जगा देता है।
जब संयुक्त राष्ट्र संघ ने 1984 में अंतरराष्ट्रीय युवा वर्ष घोषित किया तब उस समय भारत सरकार ने उसकी महत्ता को समझते हुए सन 1984 में घोषणा किया स्वामी विवेकानंद जी के जन्मदिवस 12 जनवरी को ही राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाएगा।
भारत भूमि पर समय समय पर ऐसी दिव्य विभूतियां जन्म लेती रही हैं जिन्होंने सम्पूर्ण मानव जाति को अपनी प्रतिभा से आश्चर्यचकित किया है। 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में जन्में स्वामी विवेकानंद भी उन्हीं दिव्य विभूतियों में से एक हैं जिन्होंने महज 39 वर्ष की आयु में बेलूर मठ में 4 जुलाई 1902 को प्राण त्यागने से पहले भारतीय वांग्मय और भारतीय धर्म संस्कृति का ही विश्व को परिचय नहीं कराया बल्कि सार्वभौमिक सहिष्णुता के उस सिद्धांत को संसार के हर कोने तक पहुंचाने की कोशिश भी की और सदा के लिए अमर हो गए।