झांसी: बुंदेलखंड में पानी के संरक्षण में ‘जल सहेली’ बन आज महिलाएं अग्रणी भूमिका निभा रहीं हैं।। इसके कारण बुंदेलखंड, जो अपनी सूखा-प्रवणता और जल संकट के लिए जाना जाता है, अब एक नई दिशा की ओर बढ़ रहा है।
यहां की महिलाएं, जिन्हें पहले सामाजिक और पारंपरिक बंदिशों में बांधकर रखा गया था, अब पानी के संकट से निपटने के लिए नेतृत्व कर रही हैं। यह नेतृत्व जल सहेली के रूप में सामने आया है, जो न केवल जल संरक्षण की दिशा में काम कर रही हैं, बल्कि समाज में महिलाओं के सशक्तिकरण का भी प्रतीक बन चुकी हैं।
जल सहेलियों का काम सिर्फ जल प्रबंधन तक सीमित नहीं है, वे अब पंचायत बैठकों में भी सक्रिय रूप से भाग ले रही हैं, जहां वे पानी, शिक्षा और रोजगार जैसे मुद्दों पर सरकारी अधिकारियों से संवाद करती हैं। इसके साथ ही, इन महिलाओं ने 1000 से अधिक ज्ञापनों के माध्यम से सरकारी योजनाओं में सुधार की मांग की है।
जल सहेलियों की मेहनत और समर्पण का नतीजा यह हुआ है कि अब बुंदेलखंड के 300 से अधिक गांवों में 2000 से ज्यादा महिलाएं जल सहेली के रूप में काम कर रही हैं। इन महिलाओं ने जल संरक्षण के लिए विभिन्न कार्यक्रमों की शुरुआत की है, जिनमें जलाशयों का निर्माण, हैंडपंप की मरम्मत और जल पुनर्चक्रण जैसी गतिविधियां शामिल हैं। इसके परिणामस्वरूप, 100 से अधिक गांवों में जल स्तर में सुधार हुआ है और जल संकट पर काबू पाने में मदद मिली है।
जल सहेलियों के काम को न केवल स्थानीय स्तर पर, बल्कि राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी मान्यता मिली है। जल सहेली गंगा राजपूत और गीता देवी को वाटर वारियर्स अवार्ड 2023 से सम्मानित किया गया है, जिसे भारत के राष्ट्रपति द्वारा प्रदान किया गया। इसके अलावा, जल सहेली शारदा बंशकर को जल शक्ति अभियान “कैच द रेन अवार्ड” 2023 से सम्मानित किया गया। अभी हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने ‘मन की बात’ के 114वें एपिसोड में झांसी की ‘जल सहेलियों’ का जिक्र किया, जिन्होंने घुरारी नदी को पुनर्जीवित किया। इसके अलावा पहाड़ को चीरकर पानी निकालने वाली 18 साल कि जल सहेली बबीता राजपूत के बारे में भी प्रधानमंत्री ने ‘मन की बात’ में सराहना की थी।
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जल सहेली का मॉडल विशेष रूप से इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह महिलाओं को जल प्रबंधन के निर्णयों में शामिल करता है। बुंदेलखंड जैसे इलाके में जहां महिलाओं की सामाजिक स्थिति कमजोर रही है और वे अपने अधिकारों के लिए आवाज नहीं उठा पाती थीं, जल सहेलियों ने उस परंपरा को बदलने का काम किया है। जल सहेलियां अब केवल जल के अधिकार के लिए संघर्ष नहीं कर रही हैं, बल्कि वे राजनीतिक और सामाजिक निर्णय प्रक्रियाओं में भी सक्रिय रूप से भाग ले रही हैं।
जल सहेली का आंदोलन बुंदेलखंड में एक नई सामाजिक क्रांति की तरह उभरा है। यह न केवल पानी के संकट का समाधान कर रहा है, बल्कि महिलाओं को सशक्त बना रहा है और उन्हें निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल कर रहा है। जल सहेलियों की यह पहल आज न केवल बुंदेलखंड, बल्कि पूरे देश के लिए एक प्रेरणा का स्रोत बन चुकी है। उनके अथक प्रयासों से न केवल पानी की समस्या का समाधान हो रहा है, बल्कि समाज में महिलाओं की स्थिति भी सशक्त हो रही है।
जल सहेली की अवधारणा को 2011 में परमार्थ समाज सेवी संस्थान द्वारा शुरू किया गया था। इसका मुख्य उद्देश्य बुंदेलखंड के गांवों में महिलाओं को जल प्रबंधन और जल संरक्षण से जुड़ी समस्याओं पर जागरूक करना था। इसके तहत महिलाओं ने अपने-अपने गांवों में पानी पंचायतों की स्थापना की है, जो जल संरक्षण और जल प्रबंधन से संबंधित निर्णय लेने के लिए एक मंच प्रदान करती हैं। इन पंचायतों के माध्यम से महिलाएं अब जल संबंधी मुद्दों पर अपनी आवाज उठाती हैं और समाज में बदलाव की दिशा में काम कर रही हैं।
– ग्लोबल बिहारी ब्यूरो