नयी दिल्ली: दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी के अनुसार आयुष्मान भारत स्वास्थ्य योजना लागू करने में कुछ समस्या है। दिल्ली सरकार जो दिल्ली के नागरिकों को जो स्वास्थ्य सुविधाएं देती है और आयुष्मान भारत योजना में जो केन्द्र सरकार द्वारा स्वास्थ्य सुविधाएं मिलती हैं, उसमें कुछ विरोधाभास है। आयुष्मान योजना में कुछ शर्तें और श्रेणियां हैं। उसमें कुल 10-12 श्रेणी में इसका फायदा लोगों को मिलता है। मगर उसमें शर्त यह है कि आपके पास फ्रिज, दोपहिया और पक्का मकान है तो आपको आयुष्मान भारत योजना का लाभ नहीं मिलेगा। दूसरा आयुष्मान भारत योजना में एक परिवार के लिए प्रति साल पांच लाख रुपये इलाज की सीमा निर्धारित है। यदि एक परिवार में दो व्यक्ति बीमार हो जायें तो उसे पांच लाख रुपये अपनी जेब से अतिरिक्त देना होगा। यही नहीं यदि व्यक्ति के इलाज में दस लाख रुपये का खर्च होता है तो आयुष्मान योजना के तहत उसे पांच लाख का स्वयं अतिरिक्त भुगतान करना होगा। वहीं उसके उलट दिल्ली सरकार की स्वास्थ्य योजना में खर्च की कोई सीमा निर्धारित नहीं है।
इस मसले पर केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्ढा ने दुख के साथ आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि दिल्ली सरकार जानबूझ कर दिल्ली में 6.5 लाख से अधिक पात्र परिवारों और 70 वर्ष से अधिक आयु के सभी नागरिकों को केन्द्र की आयुष्मान भारत योजना से वंचित कर रही है। वहीं इसके विपरीत दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी का दावा है कि हम तो पहले से ही दिल्ली के लोगों को मुफ्त इलाज दे रहे हैं। दिल्ली के लोगों को स्वास्थ्य सुविधा मुहैया कराना हमारी प्राथमिकता है। वर्तमान में दिल्ली सरकार के किसी भी अस्पताल में सारा इलाज मुफ्त में होता है। हमें आयुष्मान योजना लागू करने में कोई दिक्कत नहीं है लेकिन हम इसके लिए दिल्ली सरकार की बेहतर योजनाओं को बंद नहीं करेंगे।
केन्द्र सरकार की आयुष्मान भारत योजना पर केन्द्र और दिल्ली की आम आदमी पार्टी (आप) सरकार में रस्साकशी जगजाहिर है। वैसे तो यह रस्साकशी स्वास्थ्य संबंधी लाभदायक योजना को लेकर ही नहीं है, दिल्ली की आप सरकार और केन्द्र की भाजपा सरकार ऐसी कोई भी जनहितकारी योजना नहीं है जिस पर दोनों के बीच तलवारें न खिंची हों। बीता दशक इसका जीता जागता सबूत है। विडम्बना यह है कि दिल्ली की आप सरकार पर आरोप है कि वह अपनी हठधर्मी के चलते आयुष्मान योजना लागू न कर दिल्ली के लाखों लोगों को स्वास्थ्य सुविधा से वंचित कर रही है।
वैसे तो यह रस्साकशी काफी पुरानी है लेकिन बीते दिनों दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली के भाजपा सांसदों की ओर से दायर जनहित याचिका पर संज्ञान लेते हुए दिल्ली की आप पार्टी की सरकार को आडे़ हाथ लेते हुए सख्त टिप्पणी की। मुख्य न्यायाधीश मनमोहन ने दिल्ली सरकार से कहा कि आप एक ओर तो दिवालिया हो चुके हो, स्वास्थ्य सचिव और स्वास्थ्य मंत्री एक दूसरे से बात तक नहीं कर रहे हैं, देश की राजधानी में कोई मशीनरी काम नहीं कर रही है। ऐसी गड़बड़ी की स्थिति में मैं हैरान हूं कि आप नागरिकों को पांच लाख तक के मुफ्त इलाज की केन्द्र सरकार की सुविधा देने से इंकार क्यों कर रहे हैं। मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायाधीश तुषार राव गेडेला की पीठ ने आगे कहा कि यह कितनी अजीब बात है कि राज्य सरकार केन्द्र की स्वास्थ्य सहायता स्वीकार नहीं कर रही है जबकि उसके पास अपनी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली के लिए कोई पैसा नहीं है। केन्द्रीय योजना केवल नागरिकों के एक विशेष वर्ग को दी जा रही सहायता है। सरकारी प्रणाली को काम करना चाहिए लेकिन हकीकत में आपकी कोई भी व्यवस्था काम ही नहीं कर रही है। जबकि दिल्ली प्रशासन के बीच व्याप्त मतभेदों को दूर करने के लिए सरकार को कदम उठाने चाहिए। हमें जनप्रतिनिधियों की ओर से बराबर हर रोज याचिकाएं मिल रही हैं लेकिन उनकी शिकायतों का समाधान ही नहीं किया जा रहा है। यह अच्छा संकेत नहीं है। जबकि सांसदों ने याचिका में तर्क दिया है कि दिल्ली के नागरिक स्वास्थ्य और बड़े चिकित्सा खर्च की गंभीर समस्या का सामना कर रहे हैं और बहुतेरे लोगों को आपात स्थिति में कर्ज लेने या संपत्ति बेचने का सहारा लेना पड़ रहा है।
कैसी विडम्बना है कि दिल्ली सरकार दिल्ली के निवासियों के कल्याण के हित को नजरंदाज कर राजनीतिक विचारधाराओं के टकराव का रास्ता अख्तियार कर रही है। भाजपा नेता रामवीर सिंह विधूडी़ ने इस बात पर दुख व्यक्त किया कि यह हास्यास्पद नहीं है कि दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया ने खुद विधान सभा में घोषणा की थी कि वे आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री आरोग्य योजना को खुद लागू करेंगे लेकिन आजतक उसे लागू नहीं किया गया। इसके पीछे आप पार्टी की संकीर्ण सोच है। इसके सिवाय कुछ भी नहीं।
आतिशी ने कहा कि दिल्ली में आयुष्मान भारत योजना के साथ दिल्ली सरकार की स्वास्थ्य सुविधाओं को कैसे लागू करें, इस पर काम किया जा रहा है। स्वास्थ्य अधिकारियों को इस बाबत निर्देश भी दिये गए हैं कि आयुष्मान भारत योजना भी लागू हो जाये और दिल्ली सरकार द्वारा दी जाने वाली स्वास्थ्य सुविधाएं भी नागरिकों को मिलती रहें। उसमें कोई व्यवधान पैदा न हो। असलियत यह है कि आयुष्मान भारत स्वास्थ्य योजना का लाभ लेने के लिए कुछ क्राइटेरिया की पूर्ति बेहद जरूरी है। लेकिन दिल्ली सरकार की स्वास्थ्य योजना के तहत सरकारी अस्पतालों में वह चाहे गरीब हो या अमीर वह कितने भी लाख के इलाज की सुविधा पा सकता है। उसमें इलाज हेतु व्यय की कोई सीमा निर्धारित नहीं है। भले उसके इलाज में कितना भी खर्च क्यों न हो। सभी का मुफ्त इलाज किया जाता है।
पर देखा जाये तो यदि दिल्ली सरकार की आयुष्मान भारत योजना लागू करने की मानसिकता होती, तो यह सालों पहले लागू कर दी जाती। इसमें ना नुकर का सवाल ही कहां पैदा होता है। दिल्ली की जनता को लाभ मिलता, वह चाहे केन्द्र की योजना हो या फिर राज्य की। लोकहितकारी नीति का तो यही तकाजा है। दिल्ली की मुख्यमंत्री का यह कहना कि हम आयुष्मान भारत योजना लागू करना चाहते हैं, गले नहीं उतरता।
गौरतलब है कि अक्टूबर 2024 तक केन्द्र शासित प्रदेश सहित देश के अन्य 36 राज्यों में से 33 में इस योजना को लागू किया जा चुका है। दिल्ली में इस योजना को लागू करने में आप पार्टी ना-नुकर करती रही है। इसके पीछे उसके कुछ तर्क हैं जिसके परिणामस्वरूप करीब 5 लाख लक्षित लाभार्थी इस स्वास्थ्य कवर से वंचित हैं जो उन्हें पंजीकृत सार्वजनिक और निजी अस्पतालों के विशाल नेटवर्क में देखभाल में होने वाले भारी खर्चे से बचायेगा। दर असल इसमें सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि आयुष्मान भारत योजना के संचालन में 60-40 का अनुपात है। यानी इसमें 60 फीसदी हिस्सा केन्द्र सरकार और 40 फीसदी राज्य सरकार वहन करेगी। दिल्ली में यदि यह योजना लागू होती है तो केन्द्र 47 करोड़ दिल्ली को देता। जबकि दिल्ली सरकार दिल्ली के लोगों को मुफ्त इलाज की सुविधा पहले से ही प्रदान कर रही है। उस दशा में वह आयुष्मान योजना के तहत वह 40 फीसदी अंशदान क्यों दे। यह भी जान लें कि आयुष्मान योजना के तहत एपेंडिस्क, मलेरिया, हार्निया, पाइल्स, हाइड्रोसिल, पुरुष नसबंदी, हैजा, दस्त, एच आई वी कांपलीकेशन, बच्चेदानी का आपरेशन, हाथ-पांव काटने की सर्जरी, मोतियाबिन्द, प्लास्टर, गांठ से सम्बन्धित, आंतों का बुखार, पेशाब आदि के संक्रमण जैसी बीमारियों का इलाज किया जाता है जबकि दिल्ली सरकार के दावे के तहत रोग की किसी भी किस्म के इलाज की कोई बाध्यता नहीं है। सच तो यह है कि आयुष्मान योजना का मुख्य उद्देश्य आर्थिक रूप से कमजोर तबके के लोगों यानी बीपीएल धारकों को स्वास्थ्य बीमा मुहैया कराना है। भाजपा सांसदों की मानें तो दिल्ली में इस योजना को लागू न करना संविधान के अनुच्छेद 14 ( समता का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (जीने का अधिकार) के तहत मूल अधिकारों का उल्लंघन है जबकि दिल्ली सरकार का दावा है कि दिल्ली वासियों के लिए आयुष्मान योजना किसी भी दृष्टि से लाभदायक है ही नहीं।
बहरहाल यह मसला दोनों दलों के लिए प्रतिष्ठा का मुद्दा बन गया है जब दिल्ली में चुनाव की तैयारियां शुरू हो गयी हैं। इसे यदि यूं कहें कि यह मुद्दा पूरी तरह राजनीति प्रेरित है और चुनावी लाभ लेने की कोशिश तो कुछ गलत नहीं होगा। जनता के हित की बात का दावा तो राजनीति का एक मोहरा है और कुछ नहीं। हां अदालत का दृष्टिकोण जरूर जनहित से जुड़ा होता है लेकिन उसे अपने स्वार्थ के लिए राजनीति का मोहरा बनाना किसी भी दृष्टि से न्यायोचित नहीं कहा जा सकता। इसमें दो राय नहीं। इसमें इतना जरूर है कि यदि किसी योजना में जनता का भला होता है तो उसमें बाधक नहीं बनना चाहिए। जनता का हित किसी भी तरह, कैसे भी हो और वह किसी भी योजना के तहत हो, सरकारों को उसे शिरोधार्य करना यानी स्वीकार करना चाहिए। उसमें बाधक बनना, उसे रोकना या उसमें अड़ंगे डालना किसी भी दृष्टि से न्यायोचित नहीं कहा जा सकता।
*लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद हैं।