हरिद्वार/बड़कोट: ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा कि जो पुण्य लाभ यात्रियों को ग्रीष्मकाल में चार धाम के दर्शन से मिलता है, उससे अधिक लाभ शीतकालीन पूजा स्थलों में पूजा-अर्चना एवं दर्शन से श्रद्धालुओं को प्राप्त होता है। शंकराचार्य ने कहा कि उत्तराखंड चार धाम शीतकालीन यात्रा का फल ग्रीष्मकालीन यात्रा के फल से कई गुना अधिक है।
उत्तराखंड स्थित चार धाम यमुनोत्री, गंगोत्री,केदारेश्वर महादेव और भगवान बदरी विशाल के मंदिरों के कपाट स्थानीय भौगोलिक स्थितियों को देखते हुए केवल पूजा स्थलों में परिवर्तन होता है।
शंकराचार्य ने कहा कि उत्तराखंड चार धाम यात्रा वर्ष भर चलती है, यहां धामों में कभी पूजा बंद नहीं होती है। चारधाम के पट बंद होने का मतलब यात्रा का बंद होना नहीं है, भगवान की पूजा बारह महीने होती है, छह माह ग्रीष्म कालीन स्थलों पर तो छह माह शीतकालीन गद्दी स्थलों पर। लोगों में भ्रम की स्थिति हो जाती है की चार धाम के कपाट बंद होने पर यात्रा बंद हो जाती है।
उत्तराखंड चार धाम यात्रा यहां के लोगों की आर्थिक स्थिति व उन्नति से जुड़ी हुई है। शंकराचार्य ने कहा कि जन सामान्य में ऐसी धारणा बन गई कि चारों धामों के कपाट बंद होने के बाद शीतकाल में श्रद्धालु दर्शन लाभ नहीं ले सकते हैं। इसी धारणा को तोड़ने के लिए उनके द्वारा विगत वर्ष लगभग पांच शताब्दि बाद शीतकालीन चार धाम मंगल यात्रा का आयोजन किया गया था। उन्होंने कहा कि अच्छी बात है कि उत्तराखंड राज्य सरकार ने भी शीतकालीन यात्रा को बढ़ावा देने के लिए प्रयास किए हैं।
चार धाम शीतकालीन दर्शन यात्रा का शुभारंभ 16 दिसंबर 204 को हरिद्वार के चंडी घाट पर ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती के सानिध्य में गंगा की विधिवत पूजा अर्चना के साथ शुरू हुआ। इसके बाद काशी से आए आचार्यों द्वारा गंगा की दिव्य और भव्य आरती की गई। इस दर्शन यात्रा में देश के 10 से अधिक राज्यों के 150 से ज्यादा तीर्थ यात्री यात्रा दल में शामिल हैं।
यात्रा प्रभारी ब्रह्मचारी मुकुंदानंद ने बताया कि गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, झारखंड, बिहार, दिल्ली, उत्तराखंड आदि राज्यों से 150 से ज्यादा महिला एवं पुरुष तीर्थ यात्री इस यात्रा में शामिल हैं। यात्रा 16 दिसंबर से प्रारंभ होकर के 22 दिसंबर को हरिद्वार में संपन्न होगी। इस अवसर पर ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य जी ने यात्रा में आए सभी यात्रियों को चार धामों का माहात्म्य बताया और यात्रा की मंगल कामना की।
शंकराचार्य शाम बड़कोट पहुंचे जहां उन्होंने कहा कि उनकी बातों को अन्यथा लिया जाता है। “बोलने व समझने में बहुत बड़ा अंतर होता है,” उन्होंने कहा और चिपको आंदोलन की यादों को ताज़ा करते हुए पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया। 2008 में गंगा आंदोलन के बारे में कहा कि “हमने गंगा की धारा को अविरल बनाने के लिए आंदोलन चलाया, लेकिन लोगों ने उसका महत्व नहीं समझा और हम पर विकास विरोधी ठप्पा लगा दिया”। बड़कोट में यमुनोत्री प्रेस क्लब द्वारा आयोजित कार्यक्रम में उपस्थित जन समुदाय को संबोधित करते हुए कहा कि केंद्र व राज्य सरकार को समुदाय विशेष की घनीभूत बस्तियों के बसावट को रोकने के लिए क़ानून बनाना चाहिए,जिससे देवभूमि की डेमोग्राफी परिवर्तित न हो।
– ग्लोबल बिहारी ब्यूरो