कोटा: चम्बल नदी को मरने से बचाने की जरूरत है। हाडोती संभाग में बहने वाली चंबलचम्बल नदी जो कि राजस्थान और मध्य प्रदेश की जीवन रेखा कहलाती है सबसे ज्यादा प्रदूषित आधुनिक कहे जाने वाले कोटा शहर में ही हो रही है।
जलवायु परिवर्तन की पीड़ा भोगते हुए आम लोगों की आंखों में पानी दिखने लगा है। कहने को तो यहां पर रिवर फंड के नाम पर ट्रीटमेंट प्लांट भी बने हैं लेकिन उनकी कैपेसिटी प्रदूषण के मुकाबले ना के बराबर है। जिस रिवर फ्रंट को चंबल पर्यटन विकास का आयाम बताया गया है इसी शहर में चम्बल नदी का दूसरा प्रमुख अप स्ट्रीम भाग सीवर फ्रंट बनकर रह गया।
अब समय है केंद्र और राज्य में नई सरकार का इन सरकारों को चाहिए कि चम्बल को पूर्णता प्रदूषण मुक्त बनाया जाए। प्रदूषण मुक्त चंबल ही लोगों के पेयजल की गारंटी होगी।नल में जल तभी आएगा जब नदियां सदा नीरा रहेगी।
गंगा और चम्बल जैसी बड़ी नदियों को जिंदा रहने के लिए आवश्यक है कि क्षेत्र में बहने वाली सहायक नदियां भी जीवित रहे। जंगलों की कटाई और अवैध खनन रत बजरी माफिया ने इन नदियों को लगभग मृतप्राय:कर दिया है। अब नदियां पानी के लिए नहीं रेत बजरी के लिए जानी जाती हैं।
विकास की इंजीनियरिंग ने नदियों का मूल स्वरूप ही परिवर्तित कर दिया है।
कल गंगा अवतरण दिवस यानी गंगा दशहरा था। इसी दिन पृथ्वी पर लोक कल्याण के लिए गंगा का अवतरण हुआ जो भागीरथ जी की कड़ी तपस्या का परिणाम था।
देश में सभी नदियां लोक कल्याण के लिए ही प्रवाहित हुई लेकिन जो स्थान गंगा का है उसे देखते हुए हम कह सकते हैं कि सभी नदियां – यमुना नदी, चम्बल नदी उसी परंपरा की वाहक ही हैं।
गंगा का प्रवाह इतना तेज था कि उसे थामने के लिए महादेव जी को अपनी जटा में गंगा को समाना पड़ा। शिव जी की जटाओं को ही जंगल कहा गया है। धरती पर पेड़ पौधे ही वर्षा के जल को धरती के पेट में पहुंचाते हैं जिसे भूगर्भ जल कहा जाता है।
आधुनिक विकास के दौर में चम्बल समेत सभी नदियों के प्रवाह को थामने के लिए पेड़ों को काटकर अनियोजित और अनियंत्रित विकास की योजनाएं संचालित की गई हैं जो अंततोगत्वा विनाश का पर्याय बन कर मुंह चिढ़ा रही है।
शायद उसी का परिणाम है कि आज धरती तेजी से गर्मा रही है और जमीन के अंदर का पानी भी सूख रहा है। देश की शायद एक भी नदी ऐसी नहीं रही जिसे प्रदूषण मुक्त कहा जा सकता हो।
देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी ने गंगा एक्शन प्लान बनाया था। वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 1914 में यह कहकर वाराणसी गए कि मां गंगा ने बुलाया है। इन प्रधानमंत्रियों के एजेंडे में गंगा रही है लेकिन दुर्भाग्य से प्रदूषण मुक्त नहीं हो सकी।
नई सरकार के जल संसाधन मंत्रालय को देश की गंगा, चम्बल समेत सभी नदियों को अपनी संपदा मानते हुए कार्य योजना बनाई जानी चाहिए।
विश्व के कई देशों में विकास की धारा के साथ नदियों की धारा भी स्वच्छ बह रही है। हमारे यहां ऐसा क्यों नहीं हो पा रहा इसकी समीक्षा संसद और विधानसभाओं को करनी चाहिए।कहते हैं कि जिस देश की नदियां मर जाती है वहां की सभ्यताएं भी नष्ट हो जाती है। अब हमें नदियों को भी जीवित रखना है और सभ्यताओं को भी। गंगा अवतरण दिवस पर नए भागीरथों की बहुत आवश्यकता है जो देश में नदियों को मरने से बचाए।
*वरिष्ठ पत्रकार एवं संयोजक चम्बल संसद।