नदी की बात आती है तो हमें गंगा, यमुना, नर्मदा नदियों का जल्दी ध्यान आता है पर आज हम जिस नदी की बात कर रहे हैं उस सई नदीके बारे में शायद बहुत कम ही लोगों को पता है।
सई नदी आज प्रदूषित हो अपने अस्तित्व के लिए जूझ रही है और भले ही ज्यादातर लोग इसके अस्तित्व से अनजान हों पर न सिर्फ इस नदी का पौराणिक महत्व है बल्कि इसका उल्लेख श्रीरामचरितमानस में दो बार मिलता है।
पूरे विश्व के हिंदू समाज के लिए गौरव का विषय है की भगवान श्रीराम अयोध्या जी में इस वर्ष २२ जनवरी को अपने गृह में विराजमान होने जा रहे हैं लेकिन सई नदी का उल्लेख नहीं दिख रहा है।
सबसे पहले इस नदी का ज़िक्र अयोध्या काण्ड में है जब वनवास से लौटते समय श्रीराम ने अयोध्या में प्रवेश से पहले सई नदी को पार कर गोमती में स्नान किया था: “सई उतरि गोमतीं नहाए। चौथें दिवस अवधपुर आए॥”
श्रीरामचारितमानस के अयोध्या कांड में ही वर्णित है सई नदी के बारे में यह चौपाई :
सई तीर बसि चले बिहाने। सृंगबेरपुर सब निअराने॥
समाचार सब सुने निषादा। हृदयँ बिचार करइ सबिषादा॥1॥
भावार्थ:- रात भर सई नदी के तीर पर निवास करके सबेरे वहाँ से चल दिए और सब श्रृंगवेरपुर के समीप जा पहुँचे। निषादराज ने सब समाचार सुने, तो वह दुःखी होकर हृदय में विचार करने लगा-॥1॥
यह नदी हरदोई के भिजवान झील से निकलकर हरदोई , लखनऊ , उन्नाव , रायबरेली , प्रतापगढ़ होते हुए जौनपुर में गोमती नदी में विलीन हो जाती है। सई-गोमती का यह संगम तट जौनपुर जिले के सिरकोनी ब्लॉक में राजेपुर के पास है, जहां हर वर्ष भव्य मेला भी लगता है।
ऐसे में विदित है यह नदी 6 जनपदों से होते हुए कई गाँवों, कस्बों और शहरों की यात्रा करती है। इस नदी के किनारे अनेकों घाट एवं पौराणिक अति प्राचीन मंदिर भी दिखाई पड़ते हैं। दो पौराणिक स्थल जिनका ज़िक्र धार्मिक ग्रंथों में भी देखने को मिलता है – माँ बेल्हा देवी जिसके नाम से प्रतापगढ़ को लोग जानते है कुछ लोग प्रतापगढ़ को बेल्ह भी बोलते है, और दूसरा बाबा बालेश्वर भरत देवघाट मोहनगंज। दोनों प्रतापगढ़ की सीमा में आते हैं ।
इस नदी की धारा पर चलते हुए 60 से 70 किलो मीटर के बाद भाषा का अन्तर देखा जा सकता हैं साथ ही साथ में इसके तट पर प्राचीन काल से ही अलग अलग कला का प्रचलन रहा है – कठपुतली नृत्य, धोबीया नृत्य, और अनेक प्रकार के गायन एवं वादन।
आज के समय में इनका संरक्षण ना होने के कारण इस नदी के साथ ही ये कला भी विलुप्त होते जा रहे हैं।
आज सई नदी की सभ्यता की दुर्दशा एक पौराणिक दस्तावेज़ की दुर्दशा है। सबसे बड़ा दुख तब होता है जब आस पास के लोग इस नदी के बारे में नहीं जानते। पिछले महीने सई का विषय लोक सभा में उठा था और केंद्रीय मंत्री ने राज्य सरकार से जानकारी मांग आश्वासन दिया था कि इस पौराणिक नदी पर कार्य किया जाएगा। अब जब देश श्रीराम मंदिर के उद्घाटन के जश्न में डूबा हुआ है और सब अपने अपने तरीक़े से उत्सव मना रहे है ज़रूरी है कि सई का विषय समाज में ले जा कर सई को जन जन से जोड़ने का प्रयास हो। ऐसी पौराणिक नदी को जन जन तक पहुँचने को लेकर और इस पौराणिक नदी को बचाने को लेकर लोगों को सई बचाओ अभियान से जुड़ना होगा।
*पर्यावरण यात्री जो पर्यावरण के प्रति चेतना जगाने के लिए 2021 से देश भर में साइकिल से यात्रा कर रहे हैं और सई नदी को बचाने को लेकर पिछले 5 महीनों से से सई बचाओ अभियान पर हस्ताक्षर अभियान चला रहे हैं ।