रविवारीय: डबल डेकर बस
– मनीश वर्मा ‘मनु’
मुंबई के सड़कों पर अब सन 1937 से अनवरत चली आ रही मुंबई की आन बान और शान और साथ ही साथ मुंबई की पहचान डीज़ल से चलने वाली डबल डेकर बस अब वहां की सड़कों पर नहीं चलेगी। कई मर्तबा हमने फ़िल्मों में डबल डेकर बस को देखा है। फ़िल्मों के निर्माता निर्देशक मुंबई को दिखाने के लिए ऐसा किया करते थे। पर, अब पंद्रह सितंबर की सुबह मुंबई के मरोल डिपो से सज-धजकर कर खुलने वाली यह अंतिम डबल डेकर बस थी।
कल रात जैसे ही खाने के दौरान हमने टीवी ऑन किया, उस वक्त यह जो खबर चल रही थी, वो मुझे क्या मेरे जैसे कई लोगों के लिए एक झटके के सामान थी।
मुंबई की डबल डेकर बस एक कौतूहल पैदा करती है। जब तक आप मुंबई नहीं गए डबल डेकर पर नहीं चढ़े तब तक वास्तव में आपके लिए एक अजूबा है मुंबई की डबल डेकर बस। डबल डेकर के ऊपरी डेक पर बिल्कुल सामने की सीट पर बैठकर, सड़क से चौदह फीट की ऊंचाई से सफ़र करना किसी भी व्यक्ति के लिए एक अविस्मरणीय अनुभव है। कितनों की प्रेम कहानियां जुड़ी हुई हैं इस लाल रंग की डबल डेकर बस से।
एक आकर्षण सा हुआ करता था इस बस के ऊपरी डेक के सबसे आगे सामने की सीट पर बैठकर मुंबई शहर की सड़कों पर सफ़र करना।
कितनों की डेटिंग की गवाह है यह डबल डेकर।
एक बार कहीं मैंने पढ़ा था जब मुकेश अंबानी और नीता अंबानी शादी के रिश्ते में बंधने जा रहे थे तो नीता अंबानी जो एक मध्यम वर्गीय परिवार से आती थीं उन्होंने मुकेश अंबानी के साथ इसी डबल डेकर बस के ऊपरी डेक पर सामने की सीट पर बैठ मुंबई की सड़कों पर सफ़र किया था। उद्देश्य उनका सिर्फ़ और सिर्फ़ इतना सा था कि मुकेश अंबानी में एक आम इंसान जैसी अनुभूति आए। वाकई डबल डेकर बस पर सफ़र एक आम आदमी ही तो करता है।
जब पहली बार मैं मुंबई गया तो लोकल ट्रेन के साथ ही साथ इसने भी मुझे बहुत आकर्षित किया। लोकल ट्रेन का सफ़र और वो भी पीक आवर्स में, मेरे लिए बड़ा ही दुरूह था। मैं अपने मित्रों के बीच कहा करता था मुंबई बहुत ही अच्छा शहर है बस्स लोकल ट्रेन से मुझे निजात दिला दो , पर धीरे धीरे मुझे मज़ा आने लगा। मुंबई की जीवन रेखा है लोकल ट्रेन।
उसी तरह जब कभी भी मेरे पास वक्त होता या मुझे गंतव्य पर पहुंचने की जल्दी नहीं होती थी तब मैं बस डिपो से लंबी दूरी की डबल डेकर बस पकड़ और फिर ऊपरी डेक के सामने वाली सीट पर बैठकर मुंबई की सड़कों पर सफ़र का मजा लेता। डिपो पर जाकर बस पकड़ने से एक बात तो थी कि मुझे सामने वाली सीट आराम से मिल जाती थी।
अब तो जब से सुना हूं कि डबल डेकर बस अब से मुंबई की सड़कों पर नहीं होगी और तो और पर्यटकों को आकर्षित करती हुई खुली छतों वाली डबल डेकर बस भी अब कुछ दिनों की ही मेहमान है , ऐसा लग रहा है कि किसी अपने का साथ छूट गया हो। समाचार में देखा मैंने बहुतों को भावूक होते हुए। क्या बोलूं! मेरा सफ़र डबल डेकर बस के साथ बहुत दिनों का नहीं था, पर जब मैं भावुक हो सकता हूं तो उन्हें तो पूरा हक़ है।
सरकार और स्थानीय प्रशासन से गुजारिश है कम से कम विरासत के नाम पर ही सही एक दो बसों को सड़क पर उतरने दिया जाए।
हम भले ही डबल डेकर बस के विकल्प के तौर पर इलेक्ट्रिकल एयर कंडीशन डबल डेकर बस लेकर आ रहे हैं, पर लाल रंग की इस डबल डेकर बस और भीड़भाड़ वाले इलाकों में सफ़र के दौरान, भोंपू की आवाज, क्या कहने थे! इस पर सफ़र करने का आनंद ही कुछ और था।
Too good
Marvellous