रविवारीय: श्रद्धांजलि!
कभी किसी बच्चे से आपने यह जानने की कोशिश की है कि श्रद्धांजलि क्या होती है? उसने तो यह शब्द ही नहीं सुना होगा। सुना भी होगा तो क्या समझा होगा?
चलिए, आज हम और आप इसी किरदार के बारे में बातें करते हैं।और बातें करते हैं श्रद्धांजलि की।
मृत्योपरांत , दिवंगत व्यक्ति की आत्मा को श्रद्धांजलि अर्पित करना भी इस किरदार को निभाना ही तो है। पर कब किसे, कौन सा किरदार निभाना है, सब तय रहता है। निर्माता-निर्देशक कोई और है, कंसेप्ट किसी और का है, पटकथा किसी और ने लिख रखी है। सब की भूमिका तय है।अभी निर्देशक ने उस बच्चे को इस किरदार के निभाने लायक नहीं समझा ही कहाँ है? अभी तो उसे सिर्फ और सिर्फ अपने बचपन को जीना है। अपने बचपन के किरदार को जीवंत करना है।
पर क्या हम भी श्रद्धांजलि का सही अर्थ समझते हैं? श्रद्धांजलि ! आमतौर पर मृत्युपरांत दिवंगत व्यक्ति को दिया जाने वाला एक सामाजिक सम्मान है। दिवंगत व्यक्ति के प्रति संवेदनशील होना और उसके परिवार के साथ जुड़कर दुःख की इस घड़ी में सहानुभूति व्यक्त करने का एक सशक्त माध्यम है। दिवंगत व्यक्ति की स्मृति में कहा गया एक आदरपूर्ण कथन।
दिवंगत व्यक्ति के घर हम सभी जाते हैं। भाव भंगिमा थोड़ी गंभीर होती है। पर, जरा हम अपने-अपने दिल पर हाथ रखें और बताएं। क्या वाकई हम इतने संवेदनशील हैं? शायद नहीं। हमारी संवेदनाएं तो अब महज औपचारिकता रह गई हैं।
चेहरे पर दुःख के भाव लाने की कोशिश। पहनावा चटख न होकर सादगीपूर्ण। अभी-अभी अलमारी से निकली हुई बढ़िया से इस्त्री की हुई उक्त अवसर पर पहना जाने वाला ड्रेस जो अमुमन सफेद या हल्के रंग का होता है।अब हम सभी तैयार होते हैं , मंच पर एक किरदार को निभाने के लिए।
यह दुनिया एक रंगमंच है मेरे दोस्त! हम सभी मंजे हुए कलाकार हैं। अपने-अपने किरदारों को निभाना बखूबी जानते हैं। सब कुछ तय रहता है। बस हमें तो सिर्फ अपनी अपनी भूमिका अदा करनी है। हम सभी सिर्फ और सिर्फ माध्यम हैं। एक निमित्त मात्र हैं। कठपुतलियां हैं हम। डोर से बंधी हुई कठपुतलियां।डोर तो किसी और के हाथ में है। जन्म से लेकर मृत्यु तक हम एक किरदार ही तो निभाते चले जाते हैं।
क्या मैं गलत कह रहा हूँ? मैंने तो बस अपनी दिल की बात कहने की कोशिश की है। श्रद्धांजलि है तो एक औपचारिक शब्द ही। और यदि हम मृतक के प्रति उनके परिजनों के समक्ष थोड़े शब्दों के साथ अगर अपनी संवेदना व्यक्त कर रहे हैं, तो इसमें बुराई क्या है? हर व्यक्ति यही कर रहा हैं हम क्यों, कुछ हटकर अलग करें। हमारे थोड़ा अलग हटने से मृतक और उनके आश्रितों एवं परिजनों पर क्या फर्क पड़ता है?
…पर शायद नहीं। कुछ काम ऐसे होते हैं, जो दिखाने के लिए नहीं होते हैं बल्कि खुद की संतुष्टि के लिए होते हैं। यह आपके अपने संस्कार, आपकी परवरिश और तो और आपके सामाजिक सरोकार और इन सबसे बढ़कर मृतक के प्रति आपके संबंध को परिलक्षित करता है। अंजान व्यक्तियों के प्रति संवेदनाएं भला कहां व्यक्त की जाती हैं?
पर, बड़े ही अफसोस की बात है। आज के इस भागदौड़ और आभासी दुनिया में संवेदनाएं कहीं खोकर रह गई हैं। बस, दो शब्द ओम शांति या विनम्र श्रद्धांजलि या फिर कुछ और एक दो फोटो या इमोजी के साथ डाला और अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों से अपने आप को मुक्त कर लिया।
औपचारिकताओं में सिमट कर रह गए हैं हम सभी। आभासी दुनिया को ही सच मान बैठे हैं। हम इतने औपचारिक हो चुके हैं कि अनौपचारिकता तो अनपढ़ों और जाहिलों की बात लगने लगी है।
Very correct
शानदार जबरदस्त जिंदाबाद
Thanks