वाराणसी: मजहब नहीं सिखाता लाउडस्पीकर बजाना। डिस्क जॉकी (डीजे) और लाउडस्पीकर आने से पहले भी धर्म था और आगे भी पारम्परिक वाद्य यंत्रों के उपयोग से हमारा धर्म और ज्यादा मजबूत होता रहेगा। सुप्रीम कोर्ट ने 2005 में शोर के खिलाफ जो ऐतिहासिक फैसला दिया था, उसके मूल में वह बलात्कार पीड़िता थी जिसके घर के पास बज रहे तेज लाउडस्पीकर के शोर में उस पीड़िता की चीख की आवाज दब गयी थी।
अब कुछ ही दिन बाद पारंपरिक वाद्य यंत्रों जैसे ढोल, शहनाई और मजीरा की बजाय, एक स्पीकर बाक्स वाला डीजे, सावन में पूरे एक महीने तक उत्तर प्रदेश की जनता को 24 घंटे, दिन-रात, प्रताड़ित करेगा। सड़कों के किनारे स्थित घरों और दुकानों के खिड़की-दरवाजे हिलेंगे। शायद आपको न पता हो मगर जब डी.जे. वाला धार्मिक जूलूस सड़क पर चलता है तो सड़कों के किनारे स्थित अस्पतालों के मरीज और उनके परिजनों द्वारा सरकार और सिस्टम के खिलाफ जिन (अप) शब्दों का प्रयोग किया जाता है, उसे यहाँ लिख पाना असंभव है।
सर्वोच्च न्यायालय ने डीजे को जो अनुमति दी है वह सशर्त अनुमति दी है।सर्वोच्च न्यायालय के आदेशानुसार किसी भी मस्जिद-मंदिर या धार्मिक स्थल में रात 10 से सुबह 6 के बीच, लाउडस्पीकर को 100% स्विच आफ करने का कानून है और दिन के दौरान यानी सुबह 6 बजे से रात 10 बजे के बीच भी लाउडस्पीकर की ध्वनि धार्मिक स्थल के अंदर तक ही सीमित रहना चाहिए। दिन के दौरान भी स्पीकर की ध्वनि को धार्मिक स्थल के भीतर सीमित रखने के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय ने जनवरी, 2012 में आदेश दिया है कि लाउडस्पीकर की ऊंचाई जमीन से अधिकतम 8 फ़ीट ही हो सकती है और स्पीकर बॉक्स का मुंह अंदर की तरफ होना चाहिए।
एक निश्चित सीमा से ऊपर वाला डीजे केवल साउंड प्रूफ सभागार में ही बजाया जा सकता है। कानून यह भी कहता है कि दिन हो या रात – आप शांत क्षेत्र यानी अस्पताल, स्कूल, कचहरी और पूजा-इबादत स्थलों के 100 मीटर के दायरे में बैंड-बाजा, पटाखा, डी.जे., लाउडस्पीकर, ट्रक-बस, स्कूटर- मोटरसाईकिल – स्कूटी का हार्न आदि भी नहीं बजा सकते। शांत क्षेत्र में यह सब 100% प्रतिबंधित है और दोषी के खिलाफ पर्यावरण संरक्षण अधिनियम- 1986 के अंतर्गत मुकदमा और एक लाख रूपये तक का जुर्माना या 5 साल तक की जेल या एक साथ दोनों सजा हो सकती है।
परन्तु ये बात समझ से परे है कि जब ध्वनि प्रदूषण कानून में यह बात जोड़ी जा चुकी है कि शोर को रोकने का कार्य पुलिस भी कर सकती है तो सभी थानेदारों और चौकी प्रभारियों को डेसीबल मीटर से लैस क्यों नहीं किया गया है?
रात 10 से सुबह 6 के बीच 100% स्विच आफ का कानून है मगर दिन के लिए भी डेसीबल सीमा है। आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि 1 स्पीकर बाक्स वाला डीजे भी सीमा से बहुत अधिक शोर कर सकता है और ऐसा होने पर बवाल होना तय है और यह सब बातें मीडिया के माध्यम से आये दिन सामने आ रही हैं।
किसी ज़माने में जब उत्तर प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गोरखपुर के सांसद थे तो उन्होंने कहा था कि ये तुष्टीकरण करने वाली सरकारें, ध्वनि प्रदूषण कानून का क्या पालन करायेंगी? फिर एक समय ऐसा आया जब बतौर उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री उन्होंने शोर पर ऐतिहासिक लगाम लगाई और देश के सभी मीडिया में उन के कार्यों की खुल कर सराहना हुई। मगर सनद रहे कि 2017 में सत्ता में आने से लेकर जून 2023 के बीच (बस अप्रैल और मई 2022 के उन कुछ सप्ताहों को छोड़ कर), मस्जिदों और अन्य धार्मिक स्थलों का शोर उत्तर प्रदेश में वैसे ही जारी है और पहले की सरकारों की तरह सड़कों, लानों और गांवों में, कानफाडू शोर जारी है।धार्मिक स्थलों के अंदर लाउडस्पीकर पर नियंत्रण को लेकर उनकी सरकार बिल्कुल गंभीर नहीं दिखती है और कानून की मनमाने ढंग से व्याख्या की जा रही है।
शादी विवाह, धार्मिक कार्यक्रम और धार्मिक जुलूस में तेज ध्वनि प्रदूषण के चलते हिंसा और प्रतिहिंसा में आये दिन होने वाले बवाल और हत्याओं के प्रदेश, उत्तर प्रदेश के लोकप्रिय मुख्यमंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ को कम से कम आम जनता के बीच जाकर लोगों को समझाना चाहिए कि धर्म और परम्परा की आड़ में तेज शोर के चलते धर्म की गरिमा खंडित और धूल धूसरित हो रही है। उनको जनता के बीच जाकर समझाना चाहिए कि कोई भी धर्म, खिड़की-दरवाजे हिलवा कर लोगों में अनिद्रा, बेचैनी, भय, हिंसा-प्रतिहिंसा और हत्या कराने वाले डीजे और स्पीकर की वकालत नहीं कर सकता। यह तो धर्म की आड़ में घोर पाप है जिसे रोक कर पारंपरिक वाद्य यंत्रों जैसे ढोल, शहनाई और मजीरा के साथ बरात या धार्मिक जुलूस निकालने से सनातन धर्म और सनातन संस्कृति का झंडा बेहतर ढंग से पूरे उत्तर प्रदेश में लहराएगा।
*चेतन उपाध्याय वाराणसी स्थित ‘सत्या फाउण्डेशन’ के संस्थापक सचिव हैं। इण्डियन सोसायटी एक्ट, 1860 के तहत पंजीकृत ‘सत्या फाउंडेशन’ द्वारा ध्वनि प्रदूषण के विविध आयामों और कानूनी रोकथाम को लेकर वर्ष 2008 से लगातार अभियान चला रहा है और हिन्दू और मुस्लिम – दोनों ही प्रमुख धर्मों के शोर के खिलाफ ढेरों मुकदमे दर्ज कराये हैं। साथ ही ‘सत्या फाउण्डेशन’ ने ध्वनि प्रदूषण के खिलाफ उत्तर प्रदेश के तमाम जिलों की शिक्षण संस्थाओं, पुलिस लाइन्स और पुलिस प्रशिक्षण केंद्रों में कार्यशालाओं और जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन किया है और शोर से परेशान आम जनता के लिए निःशुल्क हेल्पलाइन नंबर 9212735622 का संचालन भी करता है। यह लेख सड़क पर डी.जे. और मस्जिद-मंदिर के लाउडस्पीकर पर प्रभावी नियंत्रण हेतु उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को आज लिखे एक पत्र का अंश है।