रविवारीय: स्वास्थ्य की बातें
आज के बहस का मुद्दा था लोगों का स्वास्थ्य। बातें तो खैर निकल ही जाती हैं! सुबह-सुबह बहस चल पड़ी। सभी अपने अपने तरीके से इसकी व्याख्या कर रहे थे। तरीकों को अगर थोड़ा विस्तार दे पाएं तो यह कहना ज्यादा उचित होगा कि सभी अपनी अपनी सीमाओं के भीतर ही अपने अपने तरीके से इसकी व्याख्या कर रहे थे। अब आप बात करेंगे सीमाओं की, तो भाई लक्ष्मण रेखा को लांघने की कोशिश बिल्कुल ना करें क्योंकि आपकी उम्र आपको इस बात की इजाज़त कतई नहीं देती है। अपनी अपनी लक्ष्मण रेखा में ही रहें।
आपकी टिप्पणी आपके पहने हुए चश्मे से परिलक्षित होती है। कुछ लोगों का कहना था कि आजकल लोग स्वास्थ्य के प्रति कुछ ज्यादा ही जागरूक हो गए हैं। जिम, पार्क में अहले सुबह मेहनत करने वाले और फ़िर जिम जाकर पसीना बहाने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। स्पोर्ट्स क्लब में भी अपेक्षाकृत लोगों की संख्या बढ़ी है। सच्चाई है। पर, आप यह कतई ना सोचें की बढ़ती हुई संख्या सिर्फ और सिर्फ स्वास्थ्य के प्रति लोगों के बीच जागरूकता का असर है। जनाब, बीमारियों की जो मार्केटिंग की जा रही है, आखिर वह भी तो एक सच्चाई है । कहां थे कुछ दिन पहले तक ये जिम और स्पोर्ट्स क्लब में आने वाले लोग? नवधनाढ्यों की तरह इनकी संख्या में भी बढ़ोतरी हुई है।
बीमारियां पहले भी थीं, आज भी हैं, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। पर जागरूक होने के बजाय, हममें डर समाता जा रहा है। कहीं बाजारीकरण हमें जागरूक करने के बजाय, डरा तो नहीं रहा है? खैर! यह तो विवादास्पद है, पर, कहीं न कहीं सच्चाई है इससे इनकार नहीं किया जा सकता है।
अब हम आते हैं मूल विषय पर। पार्क- यह वह जगह है जहां आमतौर पर लोग सुबह -सुबह की सैर पर जाते हैं। सुबह -सुबह की ताज़ी हवा का सेवन करते हैं। वाकई प्रकृति के बीच सुबह सुबह टहलना आपको ताजगी से भर देता है। दिनभर आप तरोताजा रहते हैं। पर, आजकल यहां भी आप पाएंगे कि लोगों की भीड़ बेतहाशा बढ़ती जा रही है। पार्क में सुबह – सुबह की सैर कहीं न कहीं आपके स्टेटस के साथ जुड़ता जा रहा है। और अगर पार्क थोड़ा ‘वीआईपी’ हुआ तो कहना ही क्या। तथाकथित बड़े लोगों से संबंध स्थापित करने का एक जरिया। अहले सुबह महंगी महंगी और बड़ी गाड़ियों से आते हुए लोग। जबतक साहब टहलते हैं बेचारे ड्राइवर और बॉडी गार्ड ???
मेलजोल यानि लायजन की बेहतरीन जगह। घुमते टहलते हुए तमाम तरह के रिश्तों के पनपने की जगह।जनसंपर्क यानि पी.आर.बढ़ाने और बनाने की एक मुफीद जगह। आप वहां आनेवाले लोगों पर बस एक सरसरी निगाह डालें मेरे कहने का मतलब आप समझ जाएंगे।
मुझे माफ करें। शायद मैं गलत होऊं। पर यह मेरी अपनी नजर मेरा अपना नजरिया है। कमोवेश यही बातें जिम के संदर्भ में भी लागू होती है। वैसे हम मनुष्य स्वभाव से ही काफी तार्किक हैं। चीजों के देखने के दृष्टिकोण को तुरंत ही हम बड़े ही त्वरित गति से तर्क की कसौटी पर कस देते हैं।
वैसे एक बात कहना चाहता हूँ । हिम्मत कर रहा हूँ। महानगरों की भीड़ में सुबह-सुबह लंच बॉक्स लेकर घर से काम पर निकले लोगों से या फ़िर आम मेहनतकश इंसान, जो आमतौर पर सुबह सुबह लंचबॉक्स लेकर या बेचारों को कभी वह भी नसीब नहीं होती है। अमुमन सुबह घर से निकलता है और देर रात घर लौटता है। घर भी उनके लिए बहुत मायने नहीं रखती है। दो बाइ दो की खोली जो सिर्फ रात बिताने के लिए होती है। कुछ चंद लोग खुशनसीब होते हैं जिनका परिवार उनके साथ होता है।
ये बातें तो उन बेचारों से पूछनी चाहिए कि स्वास्थ्य के मायने क्या हैं। ये जिम और पार्क क्या बला है। काम ही उनके लिए उनके स्वास्थ्य को बनाए रखने का एक जरिया है और उनकी कर्मस्थली ही उनके लिए उनका जिम और पार्क। कभी उनके बीच जाएं और जाकर जरा उनके डोले शोले को देखें जिम जाने वाले और ना जाने वाले के बीच का फ़र्क समझ में आ जाएगा।