– सुरेश भाई*
भूस्खलन के लिहाज से संवेदनशील चमोली जिले में शंकराचार्य की तपस्थली ज्योतिर्मठ (जोशीमठ) के चर्चित भू-धंसाव के विषय पर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने 8 केंद्रीय वैज्ञानिक संस्थानों से अध्ययन और निरीक्षण के उपरांत रिपोर्ट सौंपने के लिए कहा था।लेकिन 3 माह व्यतीत हो गए अभी तक कोई भी जानकारी सामने नहीं आई है।यद्यपि मुख्यमंत्री ने कुछ वैज्ञानिक संस्थानों की प्रारंभिक रिपोर्ट के आधार पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने लगभग 2900 करोड़ का एक बजट प्रस्तुत करके नए जोशीमठ को बसाने की गुहार लगाई है।परंतु प्रभावित लोग तो इस इंतजार में भी है कि यदि तकनीक संस्थानों की रिपोर्ट सार्वजनिक हो हो जाए तो तभी वे सुरक्षित स्थान पर अपने घर बना सकते हैं।सरकारी दृष्टि में जोशीमठ के कुल क्षेत्रफल में से 30 प्रतिशत भू-भाग ही प्रभावित बताया जा रहा है जबकि जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति पूरे हिस्से को प्रभावित मानती है।यहां पर आज भी कई लोग अपने मकानों को छोड़कर बाहर रह रहे हैं।
इस बीच भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के राष्ट्रीय सुदूर संवेदी केंद्र की ओर से मार्च के प्रथम सप्ताह में जारी एक भूस्खलन मानचित्र रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि देश में 147 जिले ऐसे हैं जो भूस्खलन के लिए बेहद संवेदनशील हैं। केरल के 10 जिले हैं जिसमें 4 जिले अत्यंत जोखिमपूर्ण हैं। हिमाचल के 11 जिले जिसमें मंडी, हमीरपुर, बिलासपुर, चंबा, सोलन, किन्नौर, कुल्लू, शिमला, ऊना, सिरमौर, लाहौलस्पीति हैं । जम्मू कश्मीर के 2 जिले राजौरी और पुंछ में भूस्खलन का खतरा बना हुआ है और साथ ही यहां के उधमपुर, पुलवामा, कठुवा, अनंतनाग, बारामूला, डोजा, श्रीनगर, बडगाम, कारगिल, लेह लद्दाख भी शामिल हैं। उत्तराखंड के सभी 13 जिले भूस्खलन मानचित्र में संवेदनशील बताए गए हैं।
कुल 147 जिलों में रुद्रप्रयाग और टिहरी सूची में प्रथम और द्वितीय स्थान पर दर्शाए गए हैं। केदारनाथ रुद्रप्रयाग जिले के अंतर्गत पड़ता है जहां पर 2013 में बहुत भारी जल सैलाब के कारण हजारों लोग मारे गए थे।और पहले भी 1999 में 6 मॅग्नीच्यूड के भूकंप का केंद्र रहा है। जिसके कारण यहां पर दर्जनों लोगों की जिंदगी समाप्त हुई है। यह जिला देश में सबसे अधिक भूस्खलन घनत्व वाला बताया जा रहा है। चमोली और उत्तरकाशी देश के 19वें और 21वें स्थान पर हैं, जहां पहले से ही अनेकों स्थान पर भूस्खलन के खतरे बने हुए हैं।
इस संबंध में वाडिया भूविज्ञान संस्थान के पूर्व वैज्ञानिक डॉ डीपी डोभाल कहते हैं कि इसरो की रिपोर्ट के आधार पर विस्तृत अध्ययन होना चाहिए। जिससे नीति नियंता तय कर सके कि उन्हें किस तरह की योजना हिमालय को ध्यान में रखकर बनानी है।
पिछले एक दशक के दौरान मध्य हिमालय में भागीरथी की सहायक अस्सी गंगा, केदारनाथ, ऋषि गंगा, जोशीमठ में चार बड़ी जानलेवा आपदाएं बाढ़, भूस्खलन,भू-धंसाव के रूप में सामने आई है और 5 मॅग्नीच्यूड तक के 2 दर्जन से अधिक भूकंप भी यहां आये है। यह स्थिति हिमांचल, जम्मू कश्मीर, लद्दाख, उत्तर-पूर्व और दिल्ली जैसे मैदानी राज्यों में भी लगातार बनी हुई है। लेकिन जनवरी 2023 से जब जोशीमठ में एक बड़ा भू-धंसाव प्रारंभ हुआ तो वैज्ञानिक संस्थाओं ने अनेकों तरह के अध्ययन राज- समाज को सचेत रहने के लिए प्रस्तुत किए हैं।
केंद्रीय भूमि जल बोर्ड की टीम ने भी अपनी एक प्रारंभिक रिपोर्ट में आशंका जताई है कि उत्तरकाशी व अल्मोड़ा में भी जोशीमठ जैसा खतरा मंडरा रहा है।वैज्ञानिकों की टीम ने कहा है कि यहां पर सोकपिट में पानी के बहाव के बजाय कि सीधे मिट्टी में प्रवाहित किया जा रहा हैं। और यहां प्रॉपर ड्रेनेज सिस्टम न होना भी खतरा उत्पन्न कर रहा है।उनका कहना है कि जोशीमठ में जिन वजहों से हालात खराब हुए हैं उनमें से एक ऐसा ही कारण जिम्मेदार हैं। जोशीमठ घटना के बाद बोर्ड ने देश के अन्य क्षेत्रों का भी सर्वेक्षण शुरू किया है जिसमें मुख्य रुप से मैक्लौडगंज, अल्मोड़ा, उत्तरकाशी भी शामिल है।इन तीनों जगहों पर जमीन धंसने,पहाड़ दरकने,प्राकृतिक आपदा उत्पन्न होने के आसार नजर आ रहे हैं। इसकी रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंपी गई है। उत्तरकाशी 1991 के भूकंप का केंद्र रहा है जहां सैकड़ों लोगों ने अपनी जान गवाई थी। इसके बाद यहां पर लगातार बाढ़ एवं भूस्खलन गौमुख ग्लेशियर से ही प्रारंभ हो रहा है।आने वाले बरसात के समय इसके कारण विपरीत स्थिति पैदा हो सकती हैं।
भूस्खलन के लिहाज से संवेदनशील चमोली जिले में शंकराचार्य की तपस्थली ज्योतिर्मठ (जोशीमठ) के चर्चित भू-धंसाव के विषय पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने 8 केंद्रीय वैज्ञानिक संस्थानों से अध्ययन और निरीक्षण के उपरांत रिपोर्ट सौंपने के लिए कहा था।लेकिन 3 माह व्यतीत हो गए अभी तक कोई भी जानकारी सामने नहीं आई है।यद्यपि मुख्यमंत्री जी ने कुछ वैज्ञानिक संस्थानों की प्रारंभिक रिपोर्ट के आधार पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने लगभग 2900 करोड़ का एक बजट प्रस्तुत करके नए जोशीमठ को बसाने की गुहार लगाई है।परंतु प्रभावित लोग तो इस इंतजार में भी है कि यदि तकनीक संस्थानों की रिपोर्ट सार्वजनिक हो हो जाए तो तभी वे सुरक्षित स्थान पर अपने घर बना सकते हैं।सरकारी दृष्टि में जोशीमठ के कुल क्षेत्रफल में से 30 प्रतिशत भू-भाग ही प्रभावित बताया जा रहा है जबकि जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति पूरे हिस्से को प्रभावित मानती है।यहां पर आज भी कई लोग अपने मकानों को छोड़कर बाहर रह रहे हैं।
राज्य सरकार ने जिन संस्थानों को अध्ययन करने की जिम्मेदारी दी है उसमें से केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान को भवनों की जांच और ध्वस्तीकरण करने की कार्यवाही करनी है।वाडिया भू-विज्ञान संस्थान का काम है कि वह यहां की भू-भौतिकी अन्वेषण के साथ ही जियोफिजिकल सर्वेक्षण की जानकारी प्रस्तुत करेगा।आईआईटी रुड़की के द्वारा यहां की मिट्टी और पत्थरों की स्थिति में क्या बदलाव हो रहा है।उसकी भार क्षमता कितनी है।इसका अध्ययन कर रिपोर्ट देगी।भारतीय सुदूर संवेदन संस्थान को इस क्षेत्र के ग्राउंड मूवमेंट पर निरीक्षण करना हैं। इन्होंने अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट प्रस्तुत की है। भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण के द्वारा पुनर्वास के लिए चयनित भूमि का भूगर्भीय अध्ययन किया जाना था। प्रभावित क्षेत्र की जमीन के भीतर का जल और उसके बहने की दिशा और दशा का पता करने की जिम्मेदारी सेंट्रल वाटर बोर्ड को दी गई है इनके द्वारा भी एक प्रारंभिक रिपोर्ट मीडिया के माध्यम से सामने आई है।नेशनल जियोफिजिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट के द्वारा 30-50 मीटर गहराई तक का भूगर्भ मैप को तैयार करना है। राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान ने भी जमीन और भूगर्भ में बहने वाले जल का मैप तैयार करना था। इसमें से अधिकांश अध्ययन रिपोर्टों को अप्रैल के मध्य तक आना चाहिए था।
प्रभावित लोगों का धरना प्रदर्शन 3 महीने से जारी है और वे मानते हैं कि जोशीमठ के नीचे बन रही तपोवन-विष्णुगाड परियोजना (520 मेवा) की सुरंग निर्माण के कारण भू-धंसाव हो रहा हैं। जिस पर स्वतंत्र वैज्ञानिकों ने भी अपनी सहमति दी हैं। लेकिन इन सवालों का जवाब तकनीकी संस्थानों की रिपोर्ट सार्वजनिक होने पर ही पता चल सकती है। वैसे अनुमान तो यह भी है कि यदि रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं भी की जा रही है तो राज्य ने जोशीमठ के प्रभावितों के पुनर्वास हेतु बजट का निर्धारण तो कर ही दिया है है।
यह भी गौर करना है कि रिपोर्ट आने तक लोग तो यही समझेंगे कि जोशीमठ का दर्द स्थानीय लोग जिस तरह से उठा रहे हैं उसी को सत्य समझा जाएगा। फिर भी इसरो की रिपोर्ट के अनुसार भूस्खलन के लिए संवेदनशील क्षेत्रों के बारे में अध्ययन एवं निरीक्षण करके प्रभावित समाज को बताने की आवश्यकता है।ताकि स्वयं भी लोग अपनी सुरक्षा के प्रति जिम्मेदार रहे। सरकार उनकी मदद करें।
*लेखक सामाजिक कार्यकर्ता हैं।प्रस्तुत लेख उनके निजी विचार हैं।