विश्व जल दिवस: जल संकट की जानकारी जन जन तक पहुंचाना ज़रूरी है
– प्रशांत सिन्हा
आज जल संकट की जानकारी जन जन तक पहुंचाना ज़रूरी हो गया है। प्रकृति ने मनुष्य को अपने मुक्त हाथों से कई चीज़ें दी है। उसमें पानी एक अत्यंत महत्वपूर्ण वरदान है। अनादि काल से ही मनुष्य उस प्रकृति प्रदत्त का उपयोग करता आया है। लेकिन धीरे धीरे इसके दोहन का लालच बढ़ता ही गया है और इस लालच के कारण इसका अमर्याद उपयोग होता जा रहा है। इसके अमर्याद उपयोग तथा इसके क्षेत्र में अतिक्रमण से महासागर को कचरे का डिब्बा तथा जीवनदायिनी नदियों को गंदे नाले का स्वरूप मिल चुका है। यहां तक कि प्राकृतिक तालाब, जलाशय आदि को भी नष्ट किया जा रहा है।
वैसे प्राकृतिक रुप से भी सौ फीसदी शुद्ध पानी नहीं मिलता। उसमें कई प्रकार के क्षार आदि कम अधिक प्रमाण मे घुले रहते हैं। परन्तु इससे पानी दूषित नही होता। लेकिन जब एक या उससे अधिक पदार्थ पानी में भौतिक, रसायनिक तथा जैविक गुण धर्म बदल जाते हैं और पानी पीने के लिए जल तरंग के लिए अनुपयोगी होता है।
औद्योगिक क्रांति के बाद जब विकास का चक्र तेजी से घूमने लगा, उद्योग धंधे, कारखाने आदि में वृद्धि, गांव कस्बों का तेजी से शहरीकरण, कृषि क्षेत्र में हरित क्रांति से अन्न उत्पादन में वृद्धि के साथ साथ दूषित – विषैले रसायनों, उद्योगों से निकला पानी, शहरों का मैला-युक्त पानी, कीटनाशक, रसायन-युक्त पानी का विसर्जन सागर, नदी नालों आदि में आदि में होने से जल प्रदूषण की समस्या दिनों दिन उग्र रुप धारण करती जा रही है।
हरित क्रान्ति से उत्पादन तो बढ़ा है, साथ ही रसायनिक पदार्थों और कीट नाशकों का भी उपयोग बढ़ा है। कीटनाशकों के अनुचित इस्तेमाल से जल प्रदूषण हो रहा है। शहरीकरण, जनसंख्या वृद्धि और औद्योगिक विकास से जहां जल की आवश्यकता बढ़ी है वहीं शुद्ध जल की मात्रा प्रदूषण के कारण कम हो रही है। रसायनिक कारखानों का कचड़ा नदियों में बहाया जा रहा है। इससे नदियों का जल प्रदूषित हो रहा है। कुछ वर्ष पहले राजस्थान के जोधपुर शहर में सन् 1983 में एक औद्योगिक क्षेत्र में लगाए गए हैंड पंप से रंगीन पानी आने लगा। इसका कारण था लघु उद्योग के कपड़ा छपाई केंद्रों से नित्य प्रति लगभग 1.5 करोड़ लीटर गंदा पानी नालियों में बहाना।
दूषित पानी के कारण मनुष्य अनेक प्रकार के रोगों से ग्रस्त हुआ है। जलचरों के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लग रहा है। जिससे पर्यावरणीय समस्याएं गंभीर होती जा रही है। जल प्रदूषण नियन्त्रण कार्यक्रम निष्क्रिय होते जा रहे हैं। सरकारी धन का अपव्यय हो रहा है इसलिए इस दिशा में जन जागृति समय की मांग है। जल प्रदूषण की भीषणता तथा उसके घातक परिणामों की जानकारी को जन जन तक पहुंचाने की आवश्यकता है। इसके विद्यालय, महाविद्यालय स्तर की शिक्षा में इसका समावेश आवश्यक है। केवल कागजी कार्यवाही से कुछ नही होगा। इससे संबंधित कानून का सख्ती से पालन आवश्यक है।
आज जल प्रदूषण पर्यावरण का एक गंभीर समस्या बन गया है। हर साल विश्व भर में सभी देशों में जल के संरक्षण ,उपयोगिता ,महत्त्व को समझने के लिए और बढ़ते जल संकट की और सबका ध्यान आकर्षित करने के लिए विश्व जल दिवस 22 मार्च को मनाया जाता है। पानी शरीर के लिए बहुत आवश्यक तत्व है और यह शरीर के कुल भार का लगभग 60 फीसदी होता है। एक इंसान के दिमाग में 75 फीसदी, हड्डियों में 25 फीसदी और खून में 82 फीसदी पानी होता है। शरीर के प्रत्येक तंत्र की कार्य प्रणाली पानी पर निर्भर रहती है। पानी शरीर से हानिकारक तत्वों को बाहर निकालकर पोषक तत्व व ऑक्सीजन प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
पृथ्वी पर लगभग तीन भाग पानी और एक भाग जमीन है। पृथ्वी पर पानी होना सजीवों के अस्तित्व का प्रमाण है। पानी के अभाव में पृथ्वी की दशा भी अन्य ग्रहों से भिन्न न होती। इसलिए पानी को जीवन कहा गया है। वैसे पृथ्वी पर पानी विपुल मात्रा में है लेकिन उसका स्वरूप ” समुद्र का खारा पानी” अनुपयोगी है। पृथ्वी का लगभग 97 फीसदी पानी खारा होने के कारण मनुष्य के लिए उपयोगी नही है। बचा हुआ लगभग 3 फीसदी पानी ( जो पीने लायक है ) का स्वरूप उत्तर – दक्षिण के ध्रुवों पर बर्फ, हिम नदियां, पर्वतों पर जमी बर्फ, नदी, नाले, तालाब आदि हैं। साथ ही साथ 3 फीसदी पीने लायक पानी का कुछ अंश भूजल के रुप में है।
हमारे पेय जल के स्रोत सीमित है। यह जानते हुए भी हम अपने क्षणिक लाभ के लिए इन स्रोतों को प्रदूषित कर अपने लिए कष्टों को आमंत्रित कर रहे हैं। प्रदूषित जल से मानव जाति की हानि तो होगी ही लेकिन इससे जीव जंतु, पेड़ पौधे और फसलों को भी बराबर का नुकसान होगा।