रविवारीय: बड़े घाघ हैं आप!
– मनीश वर्मा ‘मनु’
बड़े घाघ हैं आप! पता नहीं किसी ने ऐसा कहा और दिमाग बिल्कुल से घुम जाता है। यह शब्द सुनते ही पता नहीं कानों को क्या हो जाता है। ऐसा लगता है मानो किसी ने पिघला हुआ शीशा कान में डाल दिया हो। नश्तर सा चुभता है यह शब्द। बड़ा ही नकारात्मक प्रभाव है इस शब्द का। यह ऐसा शब्द है जिसे कोई भी अपने नाम के साथ सुनना पसंद नहीं करेगा।
बस यही हमारी कमजोरी है। कान के बड़े कच्चे हैं हम। सुनी सुनाई बातों पर ज्यादा यकीन करते हैं हम। कभी कहीं से कुछ सुन लिया तो यकीन कर बैठे। हमने शब्दों के भावों और उनके प्रसंग को जानना भी उचित नहीं समझा। और चल पड़े अपने उसी अल्प ज्ञान के साथ। अपने उसी ज्ञान का ढोल पीट ज्ञानी बन रहे हैं। इधर-उधर की बातें कर रहे हैं। खुद गुमराह तो हो ही रहे हैं , साथ ही साथ दूसरों को भी सच्चाई से अवगत नहीं कराना चाह रहे हैं। सही है!
यह तो मेरे अल्प ज्ञान की बातें हुई। अब चलिए हम थोड़ा ज्ञान की बातें करते हैं।
आज़ अगर कोई मुझे ‘ घाघ’ कहे तो यकीन मानिए मैं बाद में यह सोचूंगा कि बोलने वाले ने इसका क्या मतलब लगाया। क्या सोच कर उसने कहा। फिलहाल तो मुझे अपने बुद्धिमान होने में कोई शक नहीं रहेगा। मैं चाहता हूं कि आप मुझे ‘ घाघ’ कहें। मुझे गर्व है अपने ‘घाघ’ होने पर।
खैर! पर सही क्या है ? क्या बताना चाहते हैं हम?
सच्चाई तो जनाब यह है कि पुराने समय में ‘घाघ’ नाम के एक व्यक्ति हुआ करते थे। बड़ा ही बुद्धिमान और विलक्षण प्रतिभावान व्यक्ति। बहुत ही अनुभवी। आसपास के वातावरण को देखकर सटीक भविष्यवाणी किया करते थे वो। मूलतः वो एक कृषि वैज्ञानिक थे। ‘घाघ’ का जन्म कब हुआ, हालांकि यह विवादों से ग्रस्त है। कुछ भी स्पष्ट नहीं है। सत्रहवीं सदी उनका जन्म काल माना जाता है। कुछ ने उन्हें अकबर का समकालीन माना है।
‘घाघ’ उनका मूल नाम था या उपनाम इसका भी पता नहीं चलता है। इनकी जाति भी विवादों से परे नहीं है। कुछ विद्वानों ने इन्हें ग्वाला समुदाय का माना है। परंतु कुछ जगहों पर इन्हें ब्राह्मण (देवकली दुबे) भी माना गया है। पर, जाति, कुल और खानदान से भला घाघ के व्यक्तित्व पर कहां असर पड़ने वाला। इन सभी चीजों से परे थे वे। ‘घाघ ‘ थे वे। यही परिचय था उनका।
कहा जाता है कि ये कन्नौज के ‘चौधरी सराय’ के निवासी थे। कहीं कहीं पर यह भी उल्लेख मिलता है कि इनका संबंध मुगल बादशाह अकबर से भी रहा था। उनकी विलक्षण प्रतिभा से प्रभावित होकर अकबर ने प्रचुर धनराशि और कन्नौज के पास की बहुत सी भूमि उन्हें दान में थी। इसी दान पर दी गई भूमि पर ‘ घाघ’ ने एक गांव बसाया था जिसका नाम रखा था ‘अकबराबाद सराय घाघ’ । सरकारी दस्तावेजों में आज भी उस गांव का नाम ‘सराय घाघ’ है। अकबर ने ‘घाघ’ को चौधरी की उपाधि से भी नवाज़ा था। अतएव, इनके कुटुंबी अपने को चौधरी भी कहते हैं।
कुछ लोगों का मानना है कि घाघ बिहार के छपरा के रहने वाले थे। पुत्रवधू से पीड़ित हो आप छपरा से कन्नौज चले गए।
पुराने समय के महापुरुषों की तरह घाघ के संबंध में भी अनेक किंवदंतियां प्रचलित हैं। कहा गया है कि घाघ बचपन से ही कृषि विषयक समस्याओं के समाधान में दक्ष थे। आशु कवि थे शायद इसलिए उनकी कहावतों की कोई पुरानी हस्तलिखित प्रति उपलब्ध नहीं है। स्थान भेद से उनकी कहावतों के विभिन्न प्रचलित रूप देखने को मिलते हैं।
उनकी कहावतों को पढ़ने से पता चलता है कि घाघ ने अपने कहावतों के माध्यम से जनमानस को जो संदेश दिया एवं भविष्यवाणियां की थी, वह आज भी प्रासंगिक हैं।
“आद्रा बरसे पुनर्वास जाए!
दीन अन्न कोऊ नहीं खाए!”
इसका मतलब यह है कि यदि आद्रा नक्षत्र में बरसता पानी पुनर्वास तक बरसता रहे तो ऐसे अनाज को यदि कोई मुफ्त में भी दे तो नहीं खाना चाहिए क्योंकि वह अनाज विषैला हो जाता है।
“अगहन में सखा भर, फिर करवा भर।।”
अगहन माह में यदि फसल को कुल्हड़ भर भी पानी मिल जाए, तो वह अन्य समय के एक घड़े पानी के बराबर लाभदायक होता है।
“आगे मघा पीछे भान। वर्षा होवै ओस समान।।”
यदि मघा नक्षत्र हो और पीछे सूर्य हो, तो वर्षा नगण्य होगी।
“मैदे गेहूं ढेले चना” – गेहूं के खेत की मिट्टी मैदे की तरह बारीक होनी चाहिए एवं चने के खेत में ढेले भी हों तब भी पैदावार अच्छी होगी।
इस प्रकार हम देखते हैं कि घाघ ने कितनी सरल, सहज और सीधी भाषा में बड़ी ही सहजता और ख़ूबसूरती से जिंदगी के गूढ़ प्रश्नों को कितना सरल बना दिया है। हो सकता है, और यह शायद संभव हो कि आज के इस वैज्ञानिक युग में हम और आप इसकी महत्ता को नजरअंदाज कर दें। परंतु, क्या इसे सिरे से नकारा जा सकता है? क्या हम इसे बिल्कुल ही खारिज कर सकते हैं? शायद नहीं।
भारत जैसे देश में जहां कृषि की प्रधानता है हमें घाघ को पढ़ने समझने और इसे लोगों तक पहुंचाने की जरूरत है। उस व्यक्ति की खासियत थी कि वह व्यक्ति समस्याओं का हल यूं चुटकी बजाते हुए कहावतों के माध्यम से कर दिया करता था। वह व्यक्ति इतना अनुभवी था, अपने अंदर इतना ज्ञान समेटे हुए था कि हमारे लिए उसे शब्दों में समेटना शायद बड़ा ही मुश्किल है।
हिंदी के लोक कवियों में घाघ का स्थान बड़ा ही महत्वपूर्ण है। वो लोकजीवन में अपनी कहावतों के लिए प्रसिद्ध थे जिस प्रकार ग्रामीण समाज में ‘इसुरी’ अपनी ‘ फाग’ के लिए ‘विषयक’ अपने ‘विरहों’ के लिए प्रसिद्ध हैं, उसी प्रकार ‘घाघ’ अपनी कहावतों के लिए विख्यात हैं।
खेती-बाड़ी ऋतु काल तथा लग्न मुहूर्त के संदर्भ में इनकी भविष्यवाणियां जनमानस खासकर किसानों के बीच बड़ी प्रचलित है। वे कृषि वैज्ञानिक तो थे ही मौसम विभाग पर भी उनकी अच्छी पकड़ थी। घाघ को अपने ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यह मालूम था कि उनकी मृत्यु तालाब में नहाते समय होगी। इसलिए वह कभी भी नदी या सरोवर में स्नान करने नहीं जाते थे। वाकई उनकी मृत्यु तालाब में नहाने के दौरान हुई थी मरते समय उन्होंने कहा था –
“जानत रहा घाघ निर्बुद्धि।
आवै काल विनासै बुद्धि।”
Beautiful description about Ghagh.
सुंदर ज्ञानवर्धक जानकारी
घाघ दास की कुछ कहावतें जो मैने बचपन में गांव में सुनी थी।
सावन शुक्ला सप्तमी, छुप के उगे भान।
कहे घाघ सुनो घाघिन छप्पर उपजे धान।।
आदि न बरसे आद्रा,अंत न बरसे हस्त ।
आफत में हो खेती,क्या करे गृहस्थ।।
इस रचना से कई रोचक जानकारियों से रूबरू हुआ।
सुंदर प्रस्तुतिकरण !!