रविवारीय: दुर्गा पूजा और कोलकाता-2
– मनीश वर्मा ‘मनु’
कोलकाता का दुर्गा पूजा — मेरे पिछले लेख में मैंने यहां के सुप्रसिद्ध दुर्गा पूजा की और उनके भव्य पंडालों की एक रूपरेखा आपको बताया था। आखिर क्यों यहां की पूजा इतनी भव्य और शानदार है? आखिर यहां की पूजा को यूनेस्को ने यूं ही प्राचीन और भव्य पूजा की श्रेणी में नहीं रख दिया है? कुछ तो बात है। कोलकाता आने के दौरान जब मैं ट्रेन से आ रहा था सभी यहां के पूजा के बारे में ही बातें करना पसंद कर रहे थे। एक गर्व की अनुभूति उनके चेहरे पर साफ़ झलक रही थी। बहुत मुश्किल से ट्रेन में रिजर्वेशन मिला। पुरी ट्रेन ठसाठस भरी हुई। जिस तरह से तिलक ने महाराष्ट्र में गणेश पूजोत्सव की शुरुआत की थी उसी प्रकार यहां की पूजा को विश्वव्यापी बनाने में रानी रशोमनी का बहुत बड़ा योगदान है। रानी के बारे में बाकी बातें हम बाद में करेंगे और जानेंगे विस्तार से उनके बारे में। फिलहाल हम इतना ही जान लें कि कोलकाता का सुप्रसिद्ध दक्षिणेश्वर काली मंदिर रानी की ही देन है।
ख़ैर! पूजा की शुरुआत हो चुकी है। तो आइए आप सभी ‘मनु’ की नजरों से कोलकाता के पूजा का सचित्र दर्शन करें।भव्य पंडालों और हर पूजा पंडाल की अपनी एक अलग थीम होने की वजह से यहां की पूजा को विश्व में एक अलग ही स्थान प्राप्त है। क्या हिन्दू क्या मुस्लिम सभी जुड़े हुए हैं यहां की पूजा से। मुझे हैरत होती है जब मैं देखता हूं किसी पूजा को और वहां के अधिकारियों में बतौर अध्यक्ष या सचिव कोई मुस्लिम है तो मुझे वाकई अपने देश की संस्कृति में गंगा ज़मुनी तहज़ीब नज़र आती है।
सड़क पर सभी ओर आपको एक रेला सा नजर आता है। लोगों की एक अनुशासित भीड़ चली जा रही है। आप भी उस भीड़ के साथ ही साथ चल रहे हैं। आप हम सभी उस भीड़ का एक हिस्सा हैं। आपको नहीं मालूम कि आप किधर जा रहे हैं।बस एक दिशा में भीड़ के साथ बढ़ते चले जा रहे हैं। बड़े ही अनुशासित तरीके से आप पूजा पंडालों की भव्यता और खूबसूरती के साथ ही साथ श्रद्धापूर्वक मां दुर्गा के दर्शन करते हैं। एक से बढ़कर एक पंडाल। एक से बढ़कर एक पंडाल। अपने पंडालों को दूसरों से बेहतर बनाने की मानों होड़ सी मची है। पूरा कोलकात्ता रोशनी में नहाया हुआ। रात में दिन का अहसास।
रूक रूक कर हो रही बारिश भी लोगों के उत्साह को कम नहीं कर पाती है। लोग बाग़ पुरी तैयारी से आए हुए हैं। बारिश शुरू हुई नहीं कि लोगों ने छतरी निकालना शुरू कर दिया। रात अब गहराने लगी है। पर , भीड़ है कि कम होने का नाम नहीं ले रही है। बढ़ती ही जा रही है। लोगों का उत्साह अपने चरम पर है। तमाम तरह के खाने पीने के स्टाल लगे हुए हैं।
जगह जगह पर कोलकाता पुलिस और वालंटियर सड़कों पर उतर यातायात व्यवस्था सुचारू रूप से चले, लगे हुए हैं। गाड़ियां सड़कों पर निर्बाध रूप से चल रही हैं। लोगों को चलने के लिए फुटपाथ है ना। चुस्त दुरुस्त प्रशासन। जगह जगह पर छोटी छोटी होर्डिंग्स के द्वारा आपको रास्ता बताया जा रहा है साथ में यह भी बताया जा रहा है कि कहां आप अपनी गाड़ियों को पार्क करेंगे।स्वत: अनुशासित लोग। ज्यादा मेहनत मशक्कत करने की जरूरत नहीं।
शहर के विभिन्न साइकिलिस्ट समूह जो ‘स्विच ऑन’ फाउंडेशन से जुड़े हैं वो पूजा पंडालों में घूम घूमकर कर लोगों को इस बात का संदेश देते हुए वो पूजा पंडालों को घूमने के लिए परिवहन की सबसे स्वच्छ व्यवस्था यानि साइकिल को अपनाएं।
वरिष्ठ नागरिकों के पूजा पंडालों को घूमने और मां के दर्शन के लिए कोलकाता की विधाननगर पुलिस आयुक्तालय ने पूजा परिक्रमा की शुरुआत की है। हालांकि यह सीमित है और इसका लाभ सिर्फ ‘सांझ बत्ती’ संस्था के सदस्य ही उठा सकते हैं। सराहनीय पहल है।और लोगों को भी प्रेरित करेगी। हम सभी को ऐसे कदम उठाने की जरूरत है।
यहां के बहुत सारे पूजा पंडालों ने अपने पंडालों को प्लास्टिक मुक्त रखा है। ऑरगैनिक रंगों के इस्तेमाल को बढाया है।
आपने बंगाल के सबसे बड़े उत्सव दुर्गापूजा को अपने शब्दों एवं चित्रों के माध्यम से जीवंत कर दिया । अति सुन्दर अभिव्यक्ति । आपके द्वारा की गई लोगों की आस्था और समरसता का वर्णन हमें बिहार के महापर्व छठ की याद दिला दी जिसे मनाने का वक्त काफी करीब आ चुका है । शुभकामनाओं सहित …..
बहुत हीं अतुल्यनीय लेख है जो वाकई में कोलकाता के दुर्गा पूजा का साक्षात दर्शन करा दिए।
आपने पुजा का जो विवरण किया है वहभाव से ओतप्रोत है।
Beautiful description
सर समय अभाव में मै आपका आलेख नहीं पढ़ पाए थे, आज पढ़ पाएं 🙏🙏
सर कोलकाता और जमशेदपुर की दूरी ज्यादा नहीं है और आवागमन की भी सुविधा उपलब्ध है, पुरे बिहार/ झारखंड में जमशेदपुर (आदित्यपुर) पुजा पंडाल विगत कई वर्षों से प्रथम स्थान की सूची में है !
मैं आशा करता हूँ आगामी वर्ष 2023 में आप जमशेदपुर दुर्गो महोत्सव का आनंद ले और आपका आलेख पढ़ कर गौरवान्वित महसूस करूँ 🙏🙏