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सप्ताहांत विशेष
जिनका गांव से जीवंत नाता है, आज उनको कहा जा रहा है कि यह पागल, मूर्ख, बेकार, जाहिल लोग हैं जो कुछ समझ ही नहीं रहे हैं।
– रमेश चंद शर्मा*
करुणा जगाओं, कोरोना भगाओं।
खूद समझो, और को समझाओ।।
मेरा गांव मेरा देश है। बाहर दूर से गांव की ओर लौटते समय कहते कि अपने देश जा रहा हूं। “जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी” का भाव इस देश के लिए ही लिखा गया होगा। जहां पैदा हुए वह क्षेत्र, जहां हमारी-आपकी नाल गडी हुई है। बच्चे के जन्म पर नाल काटकर घर के आंगन में दबाई जाती थी। इसी से किसी स्थान पर हक जताने पर पूछा जाता था कि यहां क्या तुम्हारी/ तेरी नाल गडी हुई है। जहां नाल गडी हुई है, वही तो जन्म स्थान है। अब तो अस्पताल में पैदा हुए और नाल काटकर कहां फेंक दी जाती है, मालूम ही नहीं पड़ता। लोगों का अपने जन्म स्थान से अटूट विश्वास वाला संबंध, सरोकार रहता है। उसकी याद टीस उठी कि आदमी बेचैनी महसूस करने लगता। “अ मेरे प्यारे वतन, ऐ मेरे बिछड़े चमन, तुझ पर जां कुर्बान” इस गीत में कहीं वह दर्द झलकता है।
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जब इंसान दुःख, कष्ट, संकट, हारी-बीमारी, भय, भेद, खतरे में पड़ता है तो उसे अपने घर गांव की याद बहुत सताती है। सोचता है मैं उड़कर जल्दी से जल्दी तुरंत किसी भी तरह अपने घर गांव पहुंच जाऊं। जिनकी नाल कहीं गडी हुई ही नहीं है, उनकी बात नहीं की जा रही है। वे इस तड़प, दर्द भाव को कितना समझ सकते हैं, कुछ कहना कठिन है। जो इस भाव, अपनेपन को समझ सकते हैं, संवेदनशील है, भावना शील है, वे अवश्य इसकी तीव्रता का अहसास कर सकते हैं। आखरी समय, मौत के समय भी आम नागरिक, इंसान अपनों के बीच रहना चाहता है। जिनका गांव से जीवंत नाता है, आज उनको कहा जा रहा है कि यह पागल, मूर्ख, बेकार, जाहिल लोग हैं जो कुछ समझ ही नहीं रहे हैं।[the_ad_placement id=”content-placement-after-3rd-paragraph”]
नासमझ, संवेदनहीन, भावना शून्य तो वे लोग हैं जो इस बात, इस भाव को समझ नहीं पा रहे हैं। कुछ योजना बनाते, लागू करते समय इन पहलूओं पर विचार आवश्यक है। इसकी व्यवस्था पहले से ही सोच कर लागू करनी चाहिए। बिना रोजगार, काम धंधे के इतनी बड़ी आबादी कैसे घर, गांव से बाहर रह सकती है? और जब चारों ओर अन्जाना भय व्याप्त हो, अनिश्चितता का माहौल हो, रहने के लिए अपना ठौर ठिकाना भी नहीं हो, एक ही कमरे में अनेक लोग बारी बारी से पारी में रहते हो, बाहर निकलने की इजाजत नहीं हो।
जिनके पास धन दौलत, साधन सुविधा उपलब्ध है, कहीं भी व्यवस्था कर सकने की क्षमता रखते हैं। उन्होंने अपने बच्चों, परिवार के सदस्यों को फटाफट अपने पास बुलाया। ऐसे समाचार व्यापक स्तर पर सुनाई दिए।
इसका समाधान तभी संभव है जब हम अपने को उनकी हालात में रखकर देखने लगें। उनकी असहायता का अहसास मन में तो आंक लें। वे कैसे, किस स्थिति में है। आज भी बड़े पैमाने पर इस बारे में करने की आवश्यकता है। जिन खोजा तिन पाईयां की तर्ज पर काम करने की आवश्यकता है।
कोरोना को करुणा प्रेम सेवा परस्पर सहयोग सहकार सदभावना सक्रियता समझ से भगाया जा सकता है। नियमों का कठोरता से स्वेच्छापूर्वक पालन करें। परस्पर दूरी बनाए रखें। मुंह को साफ कपड़े, गमछे, तौलिया से ढककर रखें। किसी से हाथ नहीं मिलाएं। गले नहीं मिलें। घर या जहां है उसी स्थान पर रहें। सावधानी सतर्कता बरतें। सफाई का विशेष ध्यान रखें। जोश में होश नहीं खोएं। मौके की नजाकत को समझते हुए कदम उठाए। आपकी सुरक्षा में सबकी सुरक्षा छुपी हुई है।
हर बुरा समय पहले भी चला गया। यह भी चला जाएगा। हिम्मत नहीं हारें। एक दूसरे की यथा संभव मदद करें। अपने आस-पड़ोस का ध्यान रखें। सही खाएं, कम खाकर भी इंसान लंबे समय तक जी सकता है।
हिम्मत से पतवार संभालो फिर क्या दूर किनारा।
जन शक्ति कभी नहीं हार सकती।
जन शक्ति बनाओ, कोरोना भगाओ।
आप सतर्क, कोरोना का बेड़ा गर्क।
करुणा जगाओ, कोरोना भगाओ।
*लेखक प्रख्यात गाँधी साधक हैं। [the_ad_placement id=”sidebar-feed”]