2023 में भी गंगा किनारे वानिकी का लक्ष्य पूरा नहीं हो पाया है। गंगा न केवल एक नदी है बल्कि अरबों भारतीयों की जीवन रेखा है तथा भारतीय संस्कृति, आस्था, और आर्थिक विकास की धुरी भी है जो भारतीय कृषि प्रणाली का पोषण करती है।
गंगा के किनारे वानिकी (रिपेरियन फॉरेस्ट्री) का विचार इसी महत्व को ध्यान में रखकर शुरू किया गया था, जिसका लक्ष्य था पर्यावरणीय स्थिरता और नदी के जल की गुणवत्ता को बढ़ाना। नदियों की सेहत सुधारने के उद्देश्य से साल 2016 में केंद्र सरकार की तरफ़ से गंगा और उसकी सहायक नदियों के किनारे वानिकी का एक महत्वाकांक्षी कार्यक्रम शुरू हुआ। 2021 में इस कार्यक्रम की मियाद पुरी हो चुकी है लेकिन लक्ष्य का करीब एक तिहाई ही अभी तक पूरा हुआ है। इस कार्यक्रम के लिए प्रधान मंत्री से सहमति भी ली गईं थी। इसके सफल होने के बाद देश की अन्य 13 नदियों के किनारे इस कार्यक्रम की पुनरावृति होनी थी लेकिन यह परियोजना लक्ष्य से बहुत दूर हो गई और अन्य नदियों के किनारे वानिकी कार्यक्रम अंधेरे में चला गया।
गंगा किनारे वानिकी की योजना में नदी के दोनों ओर वृक्षारोपण करना, भूमि क्षरण को रोकना, जल संरक्षण बढ़ाना, और बायोडायवर्सिटी को संरक्षित करना शामिल है। इसके अतिरिक्त, यह योजना स्थानीय समुदायों को आजीविका प्रदान करने और उनके जीवन स्तर में सुधार करने के लिए भी महत्वपूर्ण है।
परंतु विगत वर्षों की भांति, इस वर्ष भी भारत ने गंगा किनारे वानिकी के अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया है। यह विफलता विभिन्न कारणों से हुई है। प्रमुख कारणों में शामिल हैं नीतिगत चुनौतियां, धन की कमी, और भूमि अधिग्रहण से जुड़ी समस्याएं। वृक्षारोपण के लिए उचित भूमि का चयन और उसे विकसित करना एक बड़ी चुनौती है, विशेषकर जब भूमि पर अधिकारों की बात आती है। केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिर्वतन मंत्री अश्वनी चौबे 8 अगस्त 2022 को लोक सभा में एक जवाब में कहा था कि मंत्रालय ने देहरादून स्थित इंडियन काउंसिल ऑफ फॉरेस्ट्री रिसर्च एंड एजुकेशन ( आई सी एफ आर आई ) के जरिए मार्च 2022 में 13 प्रमुख नदियों के कैचमेंट में वानिकी हस्तक्षेप के लिए डिटेल प्रोजेक्ट रिर्पोट ( डी पी आर ) तैयार की थी। इनमें सतलज, व्यास, रावी, चेनाब, झेलम, लूनी, यमुना, महानदी, ब्रह्मपुत्र, नर्मदा, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी का नाम शामिल था। इसके लिए 19,342,63 करोड़ रूपए की रूपरेखा तैयार की गई थी। गंगा वानिकी हस्तक्षेप के तर्ज़ पर ही इन नदियों में वानिकी हस्तक्षेप की योजना बनी थी।
स्थानीय समुदायों की भागीदारी और उनकी सहमति बिना किसी वानिकी परियोजना की सफलता संभव नहीं है। अक्सर, समुदायों को इन परियोजनाओं के दीर्घकालिक लाभों के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं होती, या फिर वे तत्काल आर्थिक लाभ के लिए अपनी भूमि का उपयोग अन्य उद्देश्यों के लिए करने को अधिक महत्व देते हैं। प्रदूषण, जल स्तर में गिरावट, और जलजीवों की संख्या में कमी जैसी समस्याएं भी गंगा के आस-पास के पर्यावरण को गंभीर रूप से प्रभावित कर रही हैं। इस परिस्थिति में, वानिकी कार्यक्रमों का महत्व और भी बढ़ जाता है, क्योंकि वे नदी की नैसर्गिक शुद्धता और स्वास्थ्य को पुनःस्थापित करने में मदद कर सकते हैं। फिर भी, सफलता के लिए निरंतर प्रयास, समुदायों के साथ संवाद, और सामूहिक जिम्मेदारी की भावना की आवश्यकता होती है। नीति निर्माताओं, विशेषज्ञों, और समुदाय के सदस्यों को मिलकर एक समग्र और यथार्थवादी योजना बनानी होगी जो वानिकी कार्यक्रमों को प्रभावी और स्थायी बना सके।
अंत में, गंगा किनारे वानिकी के लक्ष्य को प्राप्त करना केवल एक सरकारी उपक्रम नहीं है; यह एक सामाजिक और पारिस्थितिक आवश्यकता है। इसे सफल बनाने के लिए हर स्तर पर नागरिकों, संगठनों, और सरकार की सक्रिय भागीदारी और समर्पण आवश्यक है। यदि हम इस लक्ष्य की ओर काम करते हैं, तो निश्चित रूप से हम गंगा के किनारे एक हरित और समृद्ध परिवेश की स्थापना कर सकेंगे, जो न केवल आज के लिए बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी फायदेमंद होगा।