पटना में गंगा का एक विहंगम नज़ारा
– प्रशांत सिन्हा
कोरोना वायरस से उपजी महामारी ने वर्ष 2021 पर इतना व्यापक असर डाला है कि उसकी मिसाल मिलना मुश्किल है। इस वायरस ने पूरी मानवता को झकझोर कर रख दिया है। 2021 बीत चुका है। इतनी तेजी से समय कभी नही बीता होगा । लोग बीते साल को स्मृति पटल से शायद ही मिटा पाएं। बिहार में भी कमोवेश ऐसी ही स्थिति रही। 2021 के मार्च महीने में फिर से शुरू हुए कोरोना संक्रमण ने पूरे देश के साथ बिहार को भी चपेट में ले लिया। 2020 में बिहार पर कोरोना का असर ज्यादा नहीं था। लेकिन 2021 में स्थिति बहुत ही खराब रही। राज्य में मूलभूत स्वास्थ्य सुविधाएं नही मिलने से हजारों लोगों की जान चली गई। अस्पतालों में बेड, ऑक्सीजन, एंबुलेंस की कमी ने स्वास्थ संबंधित व्यवस्था की पोल खोल दिया। सरकार को जनता की आलोचना एवं अदालत की फटकार सुननी पड़ी।
इन सब के बीच बिहार में सियासी गतिविधियां चलती रहीं। 2020 के अंत में हुए विधान सभा चुनाव के नतीजों से 2021 के शुरुआत में यह लगता रहा कि कभी भी नीतीश सरकार बहुमत कम होने के कारण गिर जाएगी। लेकिन किसी प्रकार नीतीश सरकार गिरने से बची रही और साल के अंत में हुए उपचुनाव की जीत ने नीतीश सरकार के लिए आगे की राह आसान हो गयी। तीन वर्ष बाद लालू यादव का राजनीति में लौटना भी प्रभावहीन रहा।
इसी वर्ष देश में जातीय जनगणना की मांग उठी और इसे लेकर मुख्यमंत्री नीतीश मुखर अंदाज में दिखे। इस मांग के लिए नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने भी अपना समर्थन दिया। लेकिन इसका असर केंद्र सरकार पर नही पड़ा। यह देखते हुए नीतीश कुमार ने राज्य सरकार के खर्च से बिहार में जातीय जनगणना कराने का एलान किया।
बिहार में 2021 के अंत में शराबबंदी एक मुद्दा बना। नवंबर में जहरीली शराब से हुई दर्जनों मौत के कारण नीतीश कुमार की शराबबंदी के निर्णय पर बहुत किरकिरी हुई। प्रदेश में शराब की खेप भी बहुत जगह पकड़ी गई। विपक्ष ने शराबबंदी कानून की समीक्षा किए जाने की मांग रखी जिसे नीतीश कुमार ने खारिज कर दिया।
नीतीश सरकार सात निश्चय योजना पार्ट 2 के तहत बिहार के सभी गांवों में सोलर लाइटें लगवाने का काम कर रही है जिससे गावों की गलियां जगमग हो रही हैं। मुख्य मंत्री नीतीश कुमार ने बिजली की खपत को 600 मेगावाट से बढ़ाकर 6200 मेगावाट की आपूर्ति पूरे राज्य में सुनिश्चित करा कर हर घर बिजली आपूर्ति उपलब्ध करा रहे हैं। 2021 में बिहार सरकार ने एक कंपनी बनाई है जो दूसरे राज्यों को बिजली बेचेगी जिससे राज्य की आय बढ़ेगी।
बिहार के पास भारत का 2.9 प्रतिशत भूमि क्षेत्र है जबकि यहां देश की करीब 9 प्रतिशत आबादी है। ऐसे में राज्य के संसाधनों पर ज्यादा दवाब है। बिहार आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक कई आर्थिक चुनौतियों का सामना करते हुए राज्य ने राजस्व अधिशेष (सरप्लस ) 2018 के 6. 897 करोड़ रुपए बरकरार रखा है।
सबसे अहम बात यह है कि बीते दो सालों में महामारी की चुनौतियों के बावजूद बिहार दो अंकों की वृद्धि दर हासिल कर रहा है। एक आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार राज्य की विकास दर 10. 5 प्रतिशत रही जो राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की तुलना में अधिक थी।
बिहार में सितंबर की तुलना में रोजगार के अवसरों में कमी आई है। फिर भी झारखंड की तुलना में यहां रोजगार के अवसर अधिक है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग ऑफ इंडियन इकॉनमी की ताजा रिर्पोट में बताया गया है कि बिहार में अक्टूबर महीने में बेरोजगारी की दर 13.9 प्रतिशत रही। तुलनात्मक अध्ययन में 3 प्रतिशत ज्यादा। इसी अवधि में झारखंड में यह दर 18 प्रतिशत रही। लेकिन देश के अन्य राज्यों में इसी अवधि में हुई बेरोजगारी दर में वृद्धि की तुलना करें तो बिहार की स्थिति अधिक निराशाजनक नही है। अक्टूबर महीने का अध्ययन बताता है कि बेरोजगारी के मामले में हरियाणा (30.7 % ) और राजस्थान ( 29.6 % ) पहले और दूसरे नंबर पर रहे।
बिहार में इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास पर पिछले वर्ष में वृद्धि हुई है। राज्य की राजधानी पटना में मेट्रो परियोजना शुरु की गई। सड़कें, ओवरब्रिज बनाई जा रही हैं। शिक्षा के क्षेत्र में भी काम हो रहा है। लड़कियां पहले से ज्यादा संख्या में शिक्षित हो रही हैं।
बेशक यहां से दूसरे राज्यों में पलायन हो रहा है, उच्च शिक्षा की कमी है, औद्योगीकरण नहीं हो रहा है फिर भी बिहार में प्रगति का पहिया घूम रहा है। यह एक अच्छी बात है।