– रमेश चंद शर्मा*
दिल्ली पब्लिक लायब्रेरी आम जनता के लिए उपलब्ध दिल्ली का एक बड़ा पुस्तकालय है। इसकी कई शाखाएं है। सचल पुस्तकालय की भी इसकी योजना रही। इसके लिए विशेष वाहन की व्यवस्था रहती जो निश्चित स्थान पर तय समय अनुसार पहुँच कर अपनी सेवाएं प्रदान करता था। दिल्ली में सचल डाक एवं तार घर भी चलते थे। उनका भी स्थान और समय तय रहता। समय से पहले की लोग पंक्तिबद्ध होकर इन सेवाओं का लाभ उठाते थे। यह सेवा अलग अलग क्षेत्र में पहुँचती।दिल्ली पब्लिक पुस्तकालय के लिए कोई शुल्क नहीं था, निशुल्क सेवाएं मिलती थी। वाचनालय, अध्ययन कक्ष, सभागार में चलने वाले कार्यक्रम में कोई भी आ जा सकता था। उसका लाभ उठा सकता था। वाचनालय, अध्ययन कक्ष में समाचार पत्र, पत्रिका, पुस्तक पढने की सुविधा उपलब्ध थी। घर पर पुस्तक ले जाने के लिए फार्म भरकर पंजीकरण करवाकर कार्ड लेना होता। इसके लिए किसी भी निर्धारित व्यक्ति से पहचान करवाकर लानी होती।
पुस्तकालय में पाठकों के क्लब, समितियां भी बनी हुई थी, जो समय समय पर कार्यक्रम आयोजित करती। कुछ कार्यक्रम साप्ताहिक चलते थे। इनमें नाटक, संगीत, गीत, कविता, अंताक्षरी, कहानी, साहित्य चर्चा शामिल थी। क्लब, समिति की जिम्मेदारी संभालने के लिए संयोजक, प्रभारी, इंचार्ज, टीम बनाई जाती, जो कार्यक्रम के संचालन, आयोजन का कार्यभार संभालते। इसमें नए नए साथियों को बोलने, गाने, सुनाने की हिम्मत आती। कार्यक्रम आयोजन का अवसर सीखने, समझने, जानने, करने का अनुभव देता।
यह भी पढ़ें: शहरी जीवन: दिल्ली की गलियों के गुप्त, छुपे हुए रास्तों से सभी पुलिस वाले भी परिचित नहीं थे
कार्यक्रम की सूचि बनाना कब, कौन बोलेगा, किसी विशेष अतिथि को बुलाना है क्या? उसके लिए जाकर मिलना, बातचीत कर तय करना। कभी प्रतियोगिता आयोजित की जाती तो उसके पुरस्कारों की व्यवस्था कैसे होगी। पुरस्कार कौन देगा, किसे बुलाया जाए। तय करने से पहले पुस्तकालय के सम्बंधित व्यक्ति से सलाह करना, उनकी राय जानना। नौजवान साथियों के लिए यह एक अच्छा अवसर बनता। इसका लाभ अपन ने स्वयं लिया।
दिल्ली में और भी अनेक पुस्तकालय चलते थे। गली, मोहल्लों के अपने वाचनालय, छोटे छोटे पुस्तकालय भी अनेक थे। मारवाड़ी पुस्तकालय, महावीर जैन पुस्तकालय, हार्डिंग लायब्रेरी, सप्रू हाउस का पुस्तकालय, साहित्य अकादमी का पुस्तकालय, ब्रिटिश काउन्सिल लायब्रेरी, अमरीकन लायब्रेरी, मैक्स मुलर भवन की लायब्रेरी, दयाल सिंह लायब्रेरी, इंडिया इंटरनेशनल सेंटर की लायब्रेरी, बी सी राय चिल्ड्रन लायब्रेरी, बाल भवन की लायब्रेरी, राष्ट्रीय गाँधी संग्रहालय के साथ साथ अनेक संस्थाओं, संगठनों, समूहों, विभागों, शिक्षा संस्थाओं की अपनी विशेष लायब्रेरी तो थी ही। संसद का पुस्तकालय तो दिल्ली का सबसे बड़ा पुस्तकालय है, जिसमें विशेष आज्ञा लेकर ही जाया जा सकता है।
बाद में तो और भी पुस्तकालय बनते गए। नेहरु संग्रहालय का पुस्तकालय, इंडिया हैबिटेट का पुस्तकालय, लगभग सभी संग्रहालयों, गैलरियों, कला केन्द्रों के तो अपने पुस्तकालय है ही जिनमें उनसे सम्बंधित साहित्य उपलब्ध है। पुस्तकालयों का सही, सार्थक उपयोग किया जाए, वे आसानी से जन जन के लिए उपलब्ध हो। लोगों को इनकी जानकारी दी जाए, रूचि पैदा की जाए। यह बहुत ही जरूरी कदम है। गाँव गाँव शहर शहर में पुस्तकालय बनने चाहिए।दिल्ली जैसे बड़े नगरों में तो पढने के स्थान के लिए नई लायब्रेरी बनी है जहाँ भुगतान कर आप बैठकर पढ़ सकते है। जमना पार शक्करपुर, लक्ष्मी नगर में तो इनका जाल ही बिछा हुआ है।
*लेखक प्रख्यात गाँधी साधक हैं।