– रमेश चंद शर्मा*
गौ रक्षा के नाम पर दिल्ली में संसद के सामने एक बड़ी भारी संख्या में साधू संतों के नेतृत्व में जुलूस दिल्ली की सड़कों से होता हुआ पहुंचा। संसद के गेट से थोड़ी दूर पर एक बड़ा मंच बनाया गया था जिस पर बड़े बड़े महात्मा, साधु, संत, शंकराचार्य, नेता बैठे थे।करपात्री जी उनमें से एक प्रमुख थे। उस समय संसद मार्ग पर सरदार पटेल चौक से आगे रेडियो स्टेशन के आगे तक सभा की जा सकती थी। मंच के सामने लाखों की संख्या में साधु संत, जनता थी। जुलूस का कोई ओर छोर नजर नहीं आता था। बड़ी तैयारी के साथ यह मांग उठाई गई थी। देश भर से लोग आए थे। महात्माओं में विशेष जोश नजर आ रहा था। जोरदार भाषणों की श्रंखला जारी थी, समझाने, मांग रखने, लोगों में जोश भरने, सरकार को सबक सिखाने, गौ के महत्व, संसद से बिना मांग मनाए यहाँ से नहीं जाएंगे जैसी बातें मंच से चल रही थी। अनेक उत्साह, जोश, उल्लास से भरे साधु संत भी इसमें शामिल थे।विपक्ष का ऐसे माहौल को देखकर खुश होना स्वाभाविक है। विपक्ष ऐसे में अपना उल्लू सीधा करना चाहता ही है। जब बड़ी संख्या में लोग एकत्र हो तो उसमें सभी एक विचार के हो यह संभव ही नहीं है। विभिन्न धारा, विचार, मान्यता, सोच को मानने वाले लोग होते ही है।अचानक मंच तथा उसके सामने कुछ बड़ी हलचल सी नजर आई। अपन भी मंच के समीप खड़े यह सब देख रहे थे, मन में गौ माता के प्रति एक विशेष श्रद्धा रही है। गौ, गंगा, गाँव, गौत्तम, गाँधी के प्रति एक विशेष भाव मन में शुरू से पनपता रहा है। इनके प्रति सम्मान भी है।इसलिए अपन छोटे होते हुए भी वहां मौजूद थे।
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तभी देखा की मंच के पीछे कुछ शोरगुल बढ़ा, कुछ साधु संत महात्मा संसद की और बढे, कुछ तो गेट के पास पहुँच भी गए। गेट पर संख्या बढ़ रही थी। गेट पर धक्का मुक्की चल रही थी। लग रहा था कि मामला बेकाबू होता जा रहा है। गेट को जोर जोर से हिलाया जा रहा था। संसद में प्रवेश करने का प्रयास लग रहा था। जैन मुनि श्री सुशील कुमार जी मंच से उठे और उतरकर एक और चलने लगे। संसद गेट पर पुलिस और प्रदर्शनकारियों की संख्या बढती नजर आ रही थी। मुनि जी के समूह में नए बाज़ार के एक व्यक्ति थे जो अपन को पहचानते थे। उन्होंने अपना हाथ पकड़ा और अपन बिना सोचे उनके साथ हो लिए। यह समूह धीरे धीरे नारे लगाते हुए तेज गति से बढ़ता हुआ गोल मार्केट के पास एक जैन स्थल पर पहुंचा। वहां पहुंचकर चैन की साँस ली। जब हम लोग रास्ते में चल रहे थे, शोरगुल बढ़ रहा था, कुछ अजब सी आवाजें आ रही थी। सभा में खलबली मच चुकी थी। तभी किसी ने कहा लगता है गोलियां चल रही हैं। मगर हम लोग मंच से भीड़ से अलग, दूर होते जा रहे थे। ऐसा याद आ रहा है वह स्थान अहिंसा विहार था। वहां पहुंचकर बैठ गए। हम सुरक्षित स्थान पर पहुँच गए थे। सभी के दिल में भंयकर हलचल मची हुई थी। क्या हुआ होगा? संसद पर क्या चल रहा होगा? सत्ता, सरकार, पुलिस का अत्याचार कितना हुआ होगा? लोगों का क्या हुआ होगा? यह सरकार अब नहीं बच पाएगी। साधु, संतों, महात्माओं पर अत्याचार करने वाली, गोली चलवाने वाली सरकार निक्कमी है। मुनि जी ने आशीर्वचन कहे। बहुत देर तक वहां रहने के बाद हम लोग घर के लिए चले। रास्ते में अनेक लोग मिले, सौ मुंह सौ बात। कोई कुछ कह रहा था, कोई कुछ, सुनते सुनते अपन लाहौरी गेट पहुंचे तो साँस में साँस आई।
अपना हाथ पकड़ने वाले सज्जन ने अपन को आचार्य श्री तुलसी के स्थान जो नया बाज़ार में था, वहां देखा था। अपन उनके दर्शनार्थ वहां कभी कभी जाते थेसौ मुंह सौ बात पंडित ओमप्रकाश शर्मा भी सपरिवार वहां रहते थे। जाको राखे साइयां मार सकें ना कोय। नए बाज़ार में ही आर्य समाज का भी स्थान था, स्वामी श्रद्धानंद जी के नाम से।वहां भी जाना होता था। दुसरे दिन समाचार पत्र संसद पर जो कुछ हुआ उससे भरे थे। लोगों में रोष, गुस्सा, क्रोध नजर आ रहा था। लगता था अब सब कुछ बदल जाएगा। जनता सड़क पर आ गई है। धीरे धीरे पहले जैसा ही दिखने लगा। ज्यादातर लोग दिल्ली से वापिस चले गए। छोटी बड़ी बैठकों, सभाओं का सिलसिला जारी था।अपन भी यदाकदा समय, सूचना मिलने पर किसी किसी में भाग लेते। दीवान हॉल भी एक बड़ा, मुख्य स्थान था, जहाँ सभा, गोष्ठी, कार्यक्रम चलते रहते।
दीवान हॉल से गौ रक्षा जत्थे निकलने लगे। रोज रोज कुछ लोगों की टोली बनकर नारे लगाते हुए गलियों, कूचों, छत्तों, मौहल्लों, बाज़ारों से होते हुए गिरफ्तारी के लिए निकलते। शीशगंज गुरूद्वारे से जुडी हुई कोतवाली होती थी, जो अब गुरुद्वारा का हिस्सा बन गई है (और बाद में कोतवाली लाहौरी गेट पर नए भवन में थाने के रूप में बन गई), वहां की पुलिस टोली को पकडकर ले जाती। दूसरी नई टोली फिर से चलती और जब तक गिरफ्तार नहीं होती नारे लगाते हुए घुमती रहती। यह सिलसिला लम्बे समय तक चला। पुलिस टोली को जल्दी पकड़ने की जुगाड़ में रहने लगी। टोली पुलिस से बचकर देर तक नारे लगाते हुए घूमें यह टोली का मन रहता।दिल्ली के बाहर से आए लोगों की टोली को दिल्ली के रास्तों की जानकारी का अभाव था। ऐसे में कुछ स्थानीय दिल्ली को जानने वाले स्वयं सेवक उनकी मदद के लिए तैयार किए गए। अपन भी इसमें शामिल हो गए। इन स्वयं सेवकों का काम होता, पुलिस से बचाकर सत्याग्रही जत्थे को देर तक जगह जगह क्षेत्र में ले जाना। दिल्ली की गलियों के गुप्त, छुपे हुए रास्तों से सभी पुलिस वाले भी परिचित नहीं थे।
स्वयं सेवक स्थानीय ऐसे रास्तों को जानते थे। जनता का भी सहयोग मिलता था। इनमें से कुछ रास्ते तो आज भी हैं। जो किसी घर से होकर दो गलियों को जोड़ते, निकलते हैं। कहीं दुकान से होकर तो कहीं छत्ते से होकर। देखने वाले को मालूम ही नहीं पड़ेगा की यहाँ कोई रास्ता भी है। लुका छिपी का यह खेल लंबे समय तक चलता, साथ ही स्वयं सेवक पर भी आधारित होता, वह किस तरह ले जाता। कई बार पुलिस से बचकर पूरे दिन जत्था नारे लगाता हुआ दीवान हॉल पहुँच जाता और अगले दिन फिर निकलता।
अपने को इससे भी बहुत कुछ सीखने को मिला। सत्ता का चरित्र, सरकार की कमजोरी, निक्कमापन, नेताओं का दोहरापन, धर्म के नाम पर चलती राजनीति, ईमानदारी से काम करने वाले लोग, जनता का भोलापन, साधु संतों, महात्माओं की भेड़चाल, वोट की राजनीति, स्थानीय लोगों के अपने स्वार्थ, भावना से लगे लोग ऐसे कितने ही अनुभव धीरे धीरे समझ आने लगे। जो जीवन की धरोहर बन गए। अपने जीवन की दिशा बनाने में इस प्रकार के छोटे बड़े कार्यक्रम, अभियान, आंदोलनों. लोगों की बड़ी भूमिका रही।
गौ रक्षा आन्दोलन के समय हुई हिंसा के विरोध में गाँधी शांति प्रतिष्ठान ने दिल्ली महापौर की अध्यक्षता में दिल्ली नागरिक शांति कमेटी बनाई। स्वतंत्रता सेनानी लाला श्री रूपनारायण ने इसके संयोजक का काम संभाला। लोगों में शांति का माहौल बने इसके प्रयास किये गए। 30 जनवरी गाँधी पुण्य तिथि पर गाँधी मूर्ति, कम्पनी बाग, पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन की ओर से दिल्ली के विभिन्न हिस्सों से होते हुए राजघाट गाँधी समाधि तक एक शांति मार्च का आयोजन किया गया। महापौर सहित अनेक प्रमुख नेताओं, गाँधी संस्थाओं, वरिष्ठ नागरिकों, छात्र छात्राओं, सामाजिक संगठनों ने इसमें प्ले कार्ड, पर्चे, पोस्टर के साथ भागीदारी की। सभी ने शांति शपथ ली, मार्च बहुत ही सफल रहा। शांति मार्च की उपयोगिता, महत्व, सार्थकता को देखते हुए अनेक वर्षों तक शांति मार्च का आयोजन होता रहा। मेरा सौभाग्य है की कई वर्षों तक इसके आयोजन में अपन ने अहम भूमिका निभाई। कुछ वर्षों में तो पूरी की पूरी जिम्मेदारी ही संभाली। इसमें हजारों की संख्या में लोग शामिल होते थे। राजघाट पर किसी प्रमुख व्यक्ति द्वारा शपथ दिलवाई जाती थी। श्री ढेबर भाई, आर्च बिशप फादर एंज्लों फर्नाडिस, मीर मुस्ताक अहमद, श्री गोपीनाथ अमन, डॉ युद्धविर सिंह, डॉ आर आर दिवाकर, श्री जी. रामचन्द्रन, श्री देवेन्द्र भाई, श्री के. एस राधाकृष्ण, श्री जैनेन्द्र कुमार जैन, श्री यशपाल जैन, श्री विष्णु प्रभाकर, श्री हंसराज गुप्ता, श्री राजेद्र कुमार गुप्ता, श्री केदारनाथ साहनी, श्री मदनलाल खुराना, श्री राधारमण, चौधरी हीरा सिंह, वैद्य किशनलाल, श्री एस के डे जैसे लोगों की समय समय पर शांति मार्च में भागीदारी हुई।
दिल्ली अंताक्षरी प्रतियोगिता में अपने विद्यालय का प्रतिनिधित्व तीन सदस्यीय दल के प्रमुख के रूप में करने का मौका आया। इस प्रतियोगिता में हमारी टीम ने प्रथम स्थान पाया। पुरस्कार देने के लिए मुख्यातिथि के रूप में शिक्षा मंत्री श्री जयसुख लाल हाथी कार्यक्रम में उपस्थित थे। उनकी उपस्थिति में ही यह अंतिम सत्र का कार्यक्रम आयोजित हुआ था। उन्होंने हमारी टीम की विशेष सराहना करते हुए टीम को मंच पर बुलाकर करतल ध्वनि से स्वागत करवाया। हमें मिले पुरस्कार पर लगी पर्ची पर अपने हाथ से सदा सच बोलो लिखकर हस्ताक्षर किए।
*लेखक प्रख्यात गाँधी साधक हैं।