[the_ad_placement id=”adsense-in-feed”]
विशेष
रमेश चंद शर्मा*
11 जुलाई, 1957 को कोझिक्कोड़ में विनोबा भावे ने शांति सेना बनाने की घोषणा की थी
[the_ad_placement id=”content-placement-after-3rd-paragraph”]
किशोर शांति दल, तरुण शांति सेना, शांति सेना का कार्य भी सर्वोदय की गतिविधियों का एक अभिन्न अंग था। भूदान, ग्रामदान, ग्राम स्वराज्य, ग्रामकोष की खूब बात होती। देश भर में जोरदार हलचल मची हुई थी।भूदान ने जमीन का बड़ा सवाल ही नहीं उठाया था बल्कि उसका शांति पूर्ण, स्वैच्छिक हल भी सबके सामने रख दिया था। बड़े पैमाने पर भूदान में जमीन मिली थी। बे जमीन वालों को जमीन के पट्टे दिए जा रहे थे। ग्राम उद्धार का यह एक उपयोगी रास्ता दिखाई दे रहा था। किसी ने सपने में भी नहीं सोचा होगा की कभी सहजता से बिना दबाव के इतनी अधिक जमीन लोग स्वेच्छा से ख़ुशी ख़ुशी स्वयं आगे बढकर देंगे। बाबा विनोबा भावे ने क्रांति की एक नई राह का द्वार खोल दिया था।
बाबा की भूदान यात्रा केरल में जारी थी। 11 जुलाई, 1957 को कोझिक्कोड़ में बाबा ने शांति सेना बनाने की घोषणा की, विचार रखा। और केरल प्रदेश के भूदान यात्रा के अंतिम पड़ाव मंजेश्वरम में, जो केरल कर्नाटक सीमा पर स्थित है, बाबा ने 23 अगस्त, 1957 को शांति सेना की स्थापना कीI इस क्रम में पहले दौर में आठ लोगों ने शांति सैनिक की शपथ ली। बाबा ने शांति सेना की आवश्यकता पर बल देते हुए शांति सेना के बारे में स्पष्टता दी।
शांति सेना : आज की आवश्यकता है।
शांति सेना का काम दिलों को जोड़ना है, एक करना है।
सत्य, सेवा, सादगी, संवेदना, स्वेच्छा, संवाद, संपर्क, संकल्प, समर्पण, सक्रियता, स्पष्टता, समझ, श्रम शांति सेना की सोच है।
सत्य, अहिंसा, सत्याग्रह आत्मशक्ति प्रधान है, भौतिक प्रधान नहीं। आत्मशक्ति के साथ निर्भय होकर ही हम इनको अपना सकते हैं।
परस्पर विश्वास, प्रेम का भंडार बनेंगे। न डरेंगे, न डराएंगे। निष्पक्ष, निर्वर, निर्भय बनेंगे। दुश्मन कोई नहीं। सभी से प्रेम भाव।
कत्ल, क्रूरता, कायरता कदापि नहीं। यह मानव एवं समाज के लिए घातक है। इनसे बचना है।
कानून से भी ऊपर उठकर अगर हम करुणा का काम करेंगे, कदम उठाएंगे तो नया समाज बन सकता है।
शांति सेना की स्थापना 23 अगस्त,1957 को मंजेश्वरम्, केरल में बाबा विनोबा भावे ने केरल यात्रा के अंतिम दिन करते हुए इस प्रकार के विचार रखें। आठ लोगों ने शांति सैनिक का संकल्प लिया।
शांति सेना की सप्तविध प्रतिज्ञा :
1. सत्य, अहिंसा में निष्ठा,
2. निर्भय, निर्वैर, निष्पक्ष वृत्ति,
3. देश, धर्म, वंश, जाति, भाषा में अभेद दृष्टि,
4. सत्ता, दलिय राजनीति से मुक्तता,
5. युद्ध का समर्थन न करना,
6. अशांति- शमनार्थ जान की जोखिम उठाने
की तैयारी,
7. शांति सेना का अनुशासन पालन।
जय जगत का घोष
कर्नाटक के तुमकुर क्षेत्र में बाबा ने एक नवंबर, 1957 को जय जगत का घोष किया। उन्होंने कहा कि अब संकुचित मानसिकता नहीं चलेगी। जय प्रदेश, जय देश से आगे बढ़कर जय जगत का भाव जागृत करना है।
इस प्रकार समय के साथ साथ युवकों और किशोरों के लिए तरुण शांति सेना, किशोर शांति दल भी बनेI 12 से 18 वर्ष की आयु के किशोरों के लिए किशोर शांति दल तथा 18 वर्ष से उपर के युवकों के लिए तरुण शांति सेना बनी। इनसे जुड़ने के कारण नारायण भाई देसाई/ बाबू भाई, दीदी निर्मला देशपांडे, भगवान काका, अमरनाथ भाई, विनय भाई जैसे अनेक वरिष्ठ जनों से संपर्क बनाI कई शिविरों, गतिविधियों से जुड़ने के द्वार खुले। देश के अनेक साथियों से संपर्क, संवाद बनाI तरुण शांति सेना के अनेक साथियों से आज भी संपर्क, संवाद ही नहीं बल्कि परिवार के सदस्य जैसा माहौल बना हुआ है। बिहार आन्दोलन, संपूर्ण क्रांति आन्दोलन के समय बिहार प्रदेश तरुण शांति सेना ने अपने को छात्र युवा संघर्ष वाहिनी में शामिल कर दिया। अन्य प्रदेश या कहे राष्ट्रीय तरुण शांति सेना ने अपने को समाप्त नहीं किया, याद आता है की फ्रिज शब्द का प्रयोग किया था। आज भी उज्जैन कार्यक्रम की याद आती है, जिसमें लोकनायक जयप्रकाश नारायण का आशीर्वाद मिला था। इसे तरुण शांति सेना का अंतिम कार्यक्रम कह सकते है।
तरुण शांति सेना का अपना एक अनुशासन, या कहे स्वानुशासन विकसित हुआ, जो आज भी कार्य कर रहा है। अनेक साथियों के जीवन में आज भी स्पष्टतौर पर नजर आता है। एक वैचारिक परिवार बना। साथियों द्वारा अलग अलग कार्य क्षेत्र चुनने के बावजूद विचार की धारा आज भी लहलहाती हुई बढ़ रही है। परस्पर सहयोग, सहकार, सदभावना, संपर्क, संवाद बना हुआ है।
बाबा विनोबा अमृत महोत्सव/ ग्राम स्वराज्य कोष
बाबा विनोबा जी के 75वें जन्म दिन के अवसर पर अमृत महोत्सव के लिए ग्राम स्वराज्य कोष एकत्र किया गया था। इसका एक कार्यालय गाँधी स्मारक निधि परिसर, राजघाट कालोनी में था। यहाँ सिद्धराज ढड्ढा जी की देखरेख में काम चलता था, उनके सहयोगी मेहताजी मुख्य रूप से कार्यालय का काम सँभालते थे। संग्रह करने वाले यहाँ से कूपन लेकर उनके माध्यम से रकम एकत्र कर कार्यालय में जमा करवाते थे। रकम एकत्र करने का कार्य कभी अकेले तो कभी समूह में किया जाता था। दिल्ली एवं आसपास हरियाणा, उत्तर प्रदेश से भी संग्रह करने में अपन ने भागीदारी की। संत बाबा विनोबा भावे को भूदान के कारण लगभग सभी जानने लग गए थे। यह राशि सेवाग्राम में हुए कार्यक्रम में बाबा को सौंपी गई।
*लेखक प्रख्यात गाँधी साधक हैं।
[the_ad_placement id=”sidebar-feed”]
I like this website very much, Its a very nice office to read and incur information.
Very good article! We are linking to this particularly great content on our site. Keep up the great writing.