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ज़िन्दगी न जाने कितने रूपों में आपके सामने आती है। इस बार मैं 28 फरवरी को अपने गृह जिला पटना पहुंचा एक शादी में शामिल होना था।मेरे पुराने किरायेदार घर छोड़ कर गए थे। थोड़ा घर ठीक ठाक करवा कर उसे नए किरायेदार को सौपना था। इन जैसी कुछ छोटी मोटी बातें और फिर अपना शहर अपना शहर होता है, यह सब सोच कर मैं गया था दस पन्द्रह दिनों के लिए। इत्तेफ़ाक़ कुछ यूं था कि होली का समय भी नज़दीक था और बहुत लम्बे अरसे बाद मैंने सोचा चलो इस बार होली भी अपने पुराने शहर में मनाएंगे।
अब यही सारी बातें मैं आपको थोड़ा विस्तार में बताता हूँ। शादी बेहद अच्छे से संपन्न हो गया और हमने काफी मजे किए ।आखिर लंबे समय के बाद यह मौका मिला था। वहीँ इसी बीच मैं अपने किरायदार को ढूंढने और अपने मकान को दुरुस्त बनवाने के बारे में आगे सोच कर बढ़ा ही था तभी होली की बंदी हो गई। मजदूर ही न मिले।
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10 मार्च को थी होली !! मैने सोचा की चलो होली के बाद घर को ठीक ठाक करने का काम शुरू करेंगे। लेकिन 15 मार्च आते-आते परिस्थितियां कुछ अलग होने लगी।
देश को एक नयी महामारी से परिचय करवाने के लिये- “सेल्फ मुनादी” और- “सेल्फ कर्फ्यू” से परिचय करवाया गया। 22 मार्च को सेल्फ कर्फ्यू की अद्भुत सफलता के बाद
पूरे देश में “लॉक-डाउन” घोषित कर दिया गया। 21 दिनों के लिए!
कुछ लोगों को छोड़ दे तो किसी को भी समझ नहीं था कि क्या हो रहा है और क्या होने वाला है ! ज्यादातर लोगों के लिऐ ये अनुभव आनंदमय था ।‘नो वर्क, आल प्ले ना काम,ना धाम’। अपना पुराना शहर ,खाने की वही लज़ीज़ चीजे, पुराने दोस्त, लॉकडाउन की पहली घोषणा के बाद ही “दिल के अरमान आंसू बन गए!”
अपने ही शहर में ऐसे अजनबी से रहने लगे जिसकी कभी कल्पना ही न की थी।
जैसे-जैसे लॉकडाउन बढ़ने लगा तो काफी परेशानियां और चिन्ताएं भी बढ़ने लगीं। जिस किरायेदार को हमने फाइनल किया था वो लॉक-डाउन के अनाउंसमेंट की वजह से मेरे पास आया नहीं और न ही अब उसके आने का कोई इरादा लग रहा था। मेरे अंदर जो उत्साह था अपने ही गृह जिले में रहने का वो अब खत्म होते जा रहा था। वही इस सम्पूर्ण लॉकडौन के दौरान मुझे अपने छोटे से रसोई घर वाले मकान में ही रहना था। सोचा चलो लॉकडाउन के दौरान छोटे से रसोई में कुछ बनाएँगे खाएँगे और बहूत समय बाद अपनी कुकिंग स्किल्स को बेहतर बनाएंगे। पर फिर एक ही आदमी के लिए कुकिंग में मात्रा तय करना और अच्छा खाना पकाने के बाद भी अकेले ही खा लेना दुश्कर लगने लगा।
जब लॉक-डाउन लगातार बढ़ता ही चला गया तब खुशी कि चीज़ें भी दुःख और परेशानी का सबब हो गई। मेरा परिवार मुंबई में, मेरी दो बेटियां, धर्मपत्नी और मेरे वृद्ध सास-ससुर सारे लोग मुंबई में और मैं अकेला पटना में था। आस-पास के पड़ोसी रिश्तेदार सब मिलने से घबराते थे।
पटना में मैने देखा कि लोगो का व पूरे हिंदुस्तान का स्वभाव है कि बनाए हुए कानून को तोड़ने में हम अपनी तारीफ़ और बहादुरी लगती हैं । लेकिन इस बार पुलिस ने “डॉक्टर लाठी” का सटीक इस्तेमाल करते हुए ज्यादातर सबको कानून के दायरे में रखा।
खैर! अनलॉक शुरू हुआ मजदूर मिलने लगे- घर दुरुस्ती और रंग-रोगन करवाया। अब फ्लाइट्स भी शुरू हो गई। हेल्थ सेफ्टी और सिक्योरिटी के पुख्ता इंतज़ामों को पटना में देखकर बड़ी तसल्ली मिली। जीवन की सबसे अच्छी उड़ान रही। विमान में यात्रियों की संख्या बहुत ही कम थी ! नो इन-फ्लाइट फ़ूड, नो पर्सनल फ़ूड। मुंबई में एयरपोर्ट पर हेल्थ चेकअप और बाएं हाथ पर 14 दिन होम-क्वारंटाइन का स्टाम्प लगा दिया गया। अच्छे से सेनिटाइज और टैक्सी लेकर घर पहुंच गया। म्युनिसिपेलिटी हॉस्पिटल जाकर एक सूचना दी। फिर से चेकउप करने के बाद मुझे एक सरकारी दस्तावेज दिया गया। उसी की एक कॉपी को हमारी कोआपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी ने लेकर 14 दिन घर से बाहर ना निकलने की हिदायत दी।
लग रहा है यह दौर कब गुजरेगा। ख़ुशी बस इसी बात की है कि अब मैं अपने परिवार के साथ हूँ।
*लेखक मुंबई स्थित सामाजिक कार्यकर्ता हैं और भारत विकास परिषद् के कोषाध्यक्ष है।
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