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– खुशबू
वाराणसी: विश्वनाथ की इस नगरी के मणिकर्णिका घाट के साथ काफी मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। पांच तीर्थों के बीच में पड़ने वाला यह घाट सृजन और विध्वंस का प्रतीक है। यहाँ पवित्र मणिकर्णिका कुंड है जिसे भगवान विष्णु ने सृष्टि का सृजन करते समय खोदा था। साथ ही मिलती है श्मशान की राख मिश्रित बलुई मिट्टी। मणिकर्णिका को महाश्मशान भी कहते हैं। यहां दाह संस्कार की एक अलग ही महत्ता है। कहते हैं यहाँ आने वाले मृत को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
हिंदुओं की मान्यता के अनुसार मणिकर्णिका कुंड धरती पर गंगा के उद्धभव काल से है। परन्तु त्रासदी यह कि कालांतर में काशी की इस पवित्र नगरी के इस मोक्षदायिनी घाट से गुजरने वाली गंगा खुद मैला ढोने वाले नाला बन कर रह गयी है।
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विडम्बना देखिये कि बरसों बाद, आज जब गंगा वाराणसी में स्वच्छ दिख रही है तो इस कि वजह कोरोना वायरस की महामारी की वजह से हुई दो-ढाई महीनों का लॉक डाउन है।
कोई अचरज नहीं जब इस महाश्मशान घाट के स्थानीय पंडित मनोहर लाल हर्षित होते हुए कहते हैं कि वाराणसी में गंगा इतनी स्वच्छ हो गई हैं, मानों गंगा मइया इस दिन का ही इंतजार कर रही थीं – “लॉकडाउन भले ही इंसान खुद को घरों में कैद महसूस कर रहे हैं, लेकिन इस वक्त प्रकृति खिल-खिला रही है , खुली सांस ले रही है। इस दौरान पावन गंगा नदी का जल फिर से निर्मल होने लगा है।”
विश्व प्रसिद्ध कशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ० विनोद मिश्रा के मुताबिक, 15-16 मार्च को हुई बरसात के बाद गंगा के जलस्तर में भी वृद्धि हुई है| वे भी गंगा मैया के स्वच्छ दिखने पर खुश हैं – “अगर हम लॉकडाउन के पहले और बाद के हालात पर नजर डालें तो बदलाव साफतौर पर देखा जा सकता है। घाटों के किनारे होने वाली गतिविधियां बंद हैं इस कारण गंदगी कम हुई है और यह अच्छी बात है।”
आपको बता दें कि लॉकडाउन के दौरान वाराणसी में गंगा 40 प्रतिशत तक शुद्ध हो चुकी हैं। जो मछलियां कभी गंगा प्रदूषण की भेंट चढ़ जाती थीं, वो मछलियां सीढ़ियों के किनारे अटखेलियां ले रही हैं। घाट के पास रह रहे पंडितों की मानें, तो गंगा का पानी अब स्नान करने के योग्य हो गया है।
वारने में उत्तर प्रदेश पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की रिपोर्ट भी गंगा के स्वच्छ होने की पुष्टि करती है। बोर्ड के अधिकारीयों ने नदी के प्रवाह के साथ बहते पानी और उथले पानी का सैम्पल अलग-अलग जगह से इकट्ठा किया था। संगम में मिलने से ठीक पहले गंगा में बायो कैमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) 2.4 मिली ग्राम/ लीटर पाया गया। पहले यह 2.8 था। नदी के पानी का बीओडी जितना कम होता है, पानी उतना बेहतर होता है। ठीक इसी तरह नदी का फीकल कॉलीफार्म (पशू मल की मात्रा) भी घटा पाया गया है। संगम के ठीक पहले गंगा का फीकल कॉलिफार्म 1300एमपीएन/100 एमएल था, वो अब घटकर 820 एमपीएन पर आ गया है।
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वाराणसी के स्थानीय लोगों के मुताबिक, लॉकडाउन की वजह से लोग गंगा स्नान नहीं कर रहे हैं और फैक्टरियां भी बंद हैं। भले ही कोरोना वायरस की मार झेलनी पड़ रही हो और लॉक डाउन से तमाम मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा हो, पर इस धर्मनगरी के निवासी खुश हैं कि इसकी वजह से कम से कम गंगा का पानी तो बहुत साफ नजर आ रहा है। लॉकडाउन की वजह से ऐसा बदलाव देखकर खुशी हो रही है।
घाट के किनारे रहने वाले स्थानीय निवासी अशोक कुमार ने बताया कि “गंगा के घाटों में भी सफाई दिखाई देने का यही कारण है कि वहां तीर्थयात्रियों की आवाजाही बंद होने से वहां साफ-सफाई बढ़ी है। वहीं गंगा घाटों के मंदिर भी बंद होने से उनके कचरे में स्वयं रोक लगने से जहां गंगा घाट साफ और सुंदर हो गए, इतना ही नहीं, स्वच्छता का आलम गंगा घाट पर हर कहीं दिखने लगा है।”
कानपुर के लोगों का भी गंगा को लेकर कुछ ऐसा ही मानना है। गंगा प्रदूषण मुक्त अभियान समित भारत के अध्यक्ष राम जी त्रिपाठी का कहना है कि लॉकडाउन में उद्योग धंधे का बंद होना गंगा की निर्मलता का कारण है। हालांकि, सीवर का पानी अभी भी जा रहा है। इसमें करीब 200 एमलडी पानी गंगा में जा रहा है। इससे कुछ अंश साफ देखने को मिला है। अगर सीवर के पानी का बहाव भी कम हो जाता, तो गंगाजल पूरी तरह निर्मल होती।
गंगा आज स्वच्छ और शुद्ध होती दिख रही है। जिस स्वच्छता और निर्मलता के लिए सरकारें करोड़ों रुपए खर्च करके परिणाम नहीं ला सकी, वह परिणाम लॉकडाउन से मिल गया। मछली और अन्य जीव पानी में साफ दिखाई देते हैं। घाट पूरी तरह साफ हैं। वहां रह रहे स्थानीय पुजारी ने कहा कि हम गंगा को इसी तरह साफ देखना चाहते हैं, लॉकडाउन के कारण ऐसा हो सका है लेकिन हमें खुशी होगी अगर श्रद्धालुओं के आने के बाद भी गंगा का पानी इसी तरह स्वच्छ रहे।
जल प्रदूषण सहित वायु और ध्वनि प्रदूषण में सुधार देखने को मिल रहा है। राज्य की हवा शुद्ध हो गई है। उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश समेत विभिन्न जगहों पर गंगा के पानी में काफी सुधार देखा जा रहा है ।
जिस गंगा नदी को सरकारें भी साफ नहीं कर पाई, साधु महात्माओं के प्रदर्शन और बलिदान भी व्यर्थ साबित हुए थे, आज वह काम लॉकडाउन के दौरान सफल हो पाया है। गंगा नदी बिना कुछ किए ही साफ हो गयी है और उसका पानी किसानों की फसल और जीव जंतुओं सहित इंसानों की प्यास बुझाने के काम भी आ रहा है।
यह बेशक महामरी की दहशत की घड़ी है लेकिन इससे हमें सबक भी लेना चाहिए, ताकि प्रकृति भी साफ बनी रहे और हमारा जीवन भी सुरक्षित रहे। प्रकृति ने कोरोना वायरस की मार से ना हमें सिर्फ डराया है, पर अपनी ताकत का एक एहसास भी कराया है कि प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठा कर चलने में ही सबकी भलाई है। प्रकृति के समक्ष मानव अभी भी बौना ही है। आज प्रकृति ने लॉक डाउन के बहाने खुद ही गंगा के साफ़ होने का रास्ता प्रशस्त किया है। हमें प्रकृति का एक वरदान है। कोरोना और उसकी वजह से हुए लॉक डाउन की आड़ में हमारी आस्था की प्रतीक गंगा मैया को निर्मल बना प्रकृति ने हमें एक बार फिर से जीने का मौका दिया है। यह भी एक संयोग है कि मणिकर्णिका घाट की श्मशान भूमि आज इसकी प्रत्यक्ष गवाह है।
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