विरासत स्वराज यात्रा
– डॉ. राजेंद्र सिंह*
ससुर खदेरी नदी ही सरस्वती नदी है
श्रृंग्वेरपुर धाम प्रयागराज में निषाद राजा का किला और वहां की पुरानी विरासत तालाब यहां की बहुत प्राचीन विरासत है।
प्रयागराज विश्नानदी पहले बरोठी नदी के नाम से जानी जाती थी। यह नदी आज बसना नाला बन गई है। नदी की दोनों तरफ की जमीन में खेती हो रही है।
यह विनाश बहुत ही भयानक है। आज नदियां गंदे नाले कैसे बन गई है? नाले नदियों की हत्या कैसे हो जाती है? यह समझना बहुत जरूरी है।
श्रृंग्वेरपुर, यह पूरा इलाका ऋषि भूमि की तरह रहा होगा। क्योंकि यहाँ पर नदियां आज भी जवानी में बह रही है। यह क्षेत्र हमारी मां गंगा जी का जवानी क्षेत्र है। इस क्षेत्र में मां गंगा अपने पूरे यौवन में होती है। जो गंगा छोटी – छोटी नदियों व धाराओं से बनती थी वह पूरे यौवन के साथ प्रयागराज पहुँचती है। प्रयागराज यमुना और गंगा के योग का स्थान है। इस योग का संगम प्रयागराज कहलाता है। इसके 40 किलोमीटर ऊपर यमुना जी में पहले सरस्वती मिलती है।
मैं इस सरस्वती नदी को जानने-समझने के लिए पिछले 10 सालों से बराबर कोशिश कर रहा था। यह मुझे समझ नहीं आ रहा था कि सरस्वती कहाँ मिलती है। अभी बहुत ही स्पष्ट प्रमाणों के साथ समझ आ गया है। आज कल जो ससुर खरेरी नाम से जो नदी जानी जाती है यह नदी ही सरस्वती नदी है। यह अंतरवाहिनी नदी और सभ्यता है जिसे राजपत्रित करवाना है।
भारत की सबसे प्राचीन सिंधु सभ्यता के बाद, सरस्वती सभ्यता थी। सरस्वती सभ्यता के आर्यों ने नरभक्षियों को नर भक्षण पर रोक लगाने की बहुत कोशिश की, जिसमें भारद्वाज ऋषि के बहुत सारे शिष्य मारे गए। इन नर भक्षियों को रोकने के लिए सरभंग को जिम्मेदारी दी थी। सरभंग एक बहुत कुशल नायक था। सरभंग ने अपने शिष्यों को नरभक्षी को रोकने के लिए बहुत बलिदान दिया। इन्होंने पूरी कोशिश करी कि नरभक्षी रूक सकें। जब इन सभी से नहीं रूके, तब भारद्वाज आश्रम में राम, लक्ष्मण और सीता जी के साथ आए। इन्होंने अपने शिष्यों से पहले आग्रह कर दिया था कि जब राम आएं तो यह यज्ञ कुंड में मुखाग्नि देकर इसको बनाए रखना और मैं श्री राम के सामने ही अग्निमुख हो जाऊंगा। फिर जब राम आएं, तो हमारे शिष्यों के, भक्तों के, नरमुंड नारायण को दिखाएँ।
सरभंग ने अपनें शिष्यों को कहा था कि तुम श्री राम को कहना कि अब हमारे गुरु तो चले गए हैं, अब हमारी कौन रक्षा करेगा। तब श्री राम से करूणामय होकर इनकी रक्षा का संकल्प लेकर, आप सभी उनको अपना नायक मानकर उनके नेतृत्व में काम करना।
भारत में यह सरस्वती सभ्यता कितने स्थानों पर है? कितनी नदियों के किनारे है? 18 नदियाँ है, जो सरस्वती के नाम से जानी जाती है। इनके किनारे की सभ्यता ही सरस्वती सभ्यता कहलाती है।
सरस्वती सभ्यता के बाद गांगेय सभ्यता बनी थी।अब गांगेय सभ्यता पर भी खतरा है। आज हमारे सभ्यता की मां गंगा, गंदा नाला बन कर मर रही है। इसको बचाने के नाम पर चर्चा बहुत हो रही है, लेकिन काम नहीं हो रहा है। इसको बचाने के लिए संतो ने अपने प्राणों का बलिदान दिया है। फिर भी यह सरकारें सुन नहीं रही है। सरस्वती सभ्यता को स्थापित करने में भी बहुत ऋषियों ने अपना बलिदान दिया है। अब गांगेय सभ्यता पर भी संकट है, इसलिए हमें नई आध्यात्मिक शक्ति की आवश्यकता है और यह शक्ति स्थापित करने के लिए यह विरासत स्वराज यात्रा शिक्षा की जगह भारतीय विद्या को स्थापित करने में समाज को तैयार करेंगी।
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आज हमारा कानपुर गंगा का हत्या बन गया है। कानपुर से ही गंगा सबसे ज्यादा दूषित और प्रदूषित होती है। कानपुर के लोग क्या गंगा को गंगा बनाने के बारे में सोच सकते है? आज गंगा की हत्या हमारी आधुनिक शिक्षा ने की है। गंगा सबकी साझी विरासत है। यह राज-समाज संतों की साझी होती है। लेकिन गंगा की खुद की अस्मिता बहुत बड़ी होती है।
गंगा की जमीन उसकी खुद की अपनी जमीन होती है। उसकी देखभाल करने का काम सदियों से निषाद करते आए है। यह बात ऋग्वेद में बहुत अच्छे से मानी जाती है। जब दुर्योधन ने विदुर को देश निकाला दिया, तब सभी जगह यह घोषणा कर दी थी कि विदुर को कोई मदद ना करे। उसे यह देखना था कि कितने समय में, कैसे राज से बाहर निकलेगा? विदुर विद्वान थे। वह हस्तिनापुर में गंगा की जमीन पर चले गए थे। गंगा की जमीन पर राजा का राज नहीं होता। कोई भी नदी हो, नदी अपनी जमीन की खुद मालिक होती है। उस ज़मीन को प्रबंधन करने का राजा निषाद को जिम्मेदारी देता था। निषाद से पुछ कर ही राजा जमीन का उपयोग करता था। लम्बे समय तक नदियों पर अधिकार निषादों का रहा है।
पुराने जमाने में नाशिक की नासर्दी नदी नंदनी नाम से जानी जाती थी। यह पवित्र नदी थी, जिसके तट पर नाशिक में 12 वर्ष तक समर्थ स्वामी ने तपस्या की थी। इन्होंने एक गुफा में नदी के किनारे रह कर, इस नदी में स्नान करना, इसके जल को पीना आदि सभी काम करते थे। आज यह नदी सफेद बदबूदार झागों के साथ बहती है। इस नदी में बहुत सारे रासायनिक जहरीले पानी के स्त्रोत आकर मिलते है। यह अब नदी नाले की तरह दिखती है।
यहाँ समर्थ स्वामी रघुवीर रामदास का बड़ा मठ अभी-अभी नया बना है। ऐसे इस नंदनी माता के किनारे बहुत सारे स्थान है, जहाँ पर संतों की आत्मा ने त्याग-तपस्या की थी। अब यह नदी वैसी नहीं बची है। इस नदी में अब जहरीला सफेद झागों वाला जल प्रवाहित होता है।
आज जरूरत है हमें अपनी नदियों की विरासत को बचा कर रखने का। यदि ये नदियां नहीं रहेंगी तो हमारा खुद का अस्तित्व भी नहीं रहेगा। ये नदियाँ ना सिर्फ हमारे पुरखों की धरोहर हैं , बल्कि इनके साथ हमारी सभ्यता जुड़ी हुई है।
*लेखक जलपुरुष के नाम से विख्यात पर्यावरणविद हैं। प्रस्तुत लेख उनके निजी विचार हैं।