संस्मरण
-डॉ. राजेंद्र सिंह*
नदी जल नहीं मिलने से विस्थापित हो रहा जॉर्डन
जॉर्डन नदी के नाम पर बना देश जॉर्डन। यह अपनी नदी का ही पानी नहीं ले पाया था। 26 फरवरी 2015 को इज़राइल समझौते के बाद कुछ जल जॉर्डन नदी व देश को मिला है। ऐसा एक समझौता, इज़राइल व जार्डन सरकार के बीच हुआ।
जॉर्डन, नदी के कारण प्राकृतिक रूप से इज़राइल और फिलिस्तीन की अपेक्षा समृद्ध राष्ट्र था, लेकिन पड़ोसी देश इज़राइल की अनैतिकता और अन्यायकारी प्रौद्योगिकी ने जॉर्डन नदी की हत्या कर दी है। नदी और जार्डन देश को जल नहीं दिया व सारा जल अपने कब्जे में कर लिया। लम्बी लड़ाई के बाद एक आधा-अधूरा समझौता तो हुआ, लेकिन उसके अनुसार ठीक से जलापूर्ति के लिए जार्डन को बहुत कोशिश करनी पड़ रही है। पानी नहीं प्राप्त होने से खेती-उद्योग चलाना संभव नहीं है। इसलिए वहां के लोग बहुत ही तेजी से विस्थापित हो रहे है।
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जॉर्डन देश को अपना ही पानी महंगा खरीदकर पीने, खेती-उद्योग सबके लिए ही लेना पड़ा। यह अनैतिकता और अन्याय की लड़ाई जॉर्डन को उजाड़ रही है। मैं, इज़राइल के साथियों के साथ जॉर्डन कई बार गया। इस देश को देखकर मुझे अजीब लगा, क्योंकि यहाँ जार्डन नदी की सभ्यता और संस्कृति व प्राकृतिक समृद्धि सब लुट सी गई है। यह नदी इस देश के बीचों – बीच से होकर गुजरती है, फिर भी इससे जल न मिले, यह अन्याय अभी तक इस देश को क्यों झेलना पड़ा? इसके जवाब में यहाँ के लोगों में रोष है, लेकिन उस रोष से भी कुछ कर नहीं पाये। अपने देश में बेपानी होकर विस्थापित हुए हैं । यहाँ से यूरोप के देशों में जलवायु परिवर्तन शरणार्थी बनकर लगभग पूरे के पूरे परिवार चले गए हैं।
मैं, वहाँ जिन लोगों को टैक्सी चलाने और होटलों में सेवा करने जैसे छोटे-छोटे काम मिल गए हैं , उनके साथ मिलकर लम्बी बात कर सका हूँ। वे अत्यंत प्रसन्नचित्त और आनंदित है। वे जॉर्डन के दर्द को भूल गए हैं । लेकिन जो लोग जॉर्डन नदी के अनैतिक जल व्यवहार को बिना समझे, अपने भाग्य को प्रकृति के क्रोध का शिकार मानकर बैठे थे, वे ‘मरते सब कुछ करते है। उन्होंने जॉर्डन छोड़कर फ्रांस, स्वीडन, बेल्जियम आदि देशों में जाना अपने लिए सुरक्षित समझा। इन्हें अब अपने देश से विस्थापित होकर यूरोप जाना ही ठीक लगा।
ग्रोव्रियल मेयर इज़राइली हैं। यह मेरे बहुत अच्छे मित्र हैं । यह शोषणकारी प्रौद्योगिकी को छोड़कर पोषणकारी संगीतज्ञ हैं । यह बहुत बार जॉर्डन-फिलिस्तीन, इज़राइल युद्ध में भी काम करते रहे हैं । आज इज़राइल की शोषण कारी प्रौद्योगिकी का डर निकालकर पोषणकारी प्रेम बाँटते रहते हैं। यह कहता है कि, संगीत द्वेष मुक्त निर्माण करता है। पर यह हमारे विविध दिमागों पर निर्भर करता है। जाप और नाम दिमाग़ को विनम्र करके काम में लगा देता है। तीर्थ कैरियर को क्रियेटर बनाता है, संगीत सभी को प्रेम में बदल देता है। मेरे साथ डरे हुए लोग भी काम में लग जाते हैं। आज भी हम युद्ध को प्यार में बदलने का काम संगीत से कर सकते हैं। जो काम बातचीत से नहीं होता, वह संगीत से कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि मैं संगीत से समुदाय बनाता हूँ। संगीत हमें और हमारे समुदाय को बनाने वाला बीज है। मैं संगीत से बीज बोता हूँ। एकांगी को साझा बनाने का काम संगीत ही करता है। स्कूल में जाकर मैं संगीत चेतना से शिक्षा की व्यवस्था बदलना चाहता हूँ, यह मेरा स्वप्न है। मैं बैंक नहीं बनाना चाहता। मैं चाहता हूँ कि सबको सब कुछ मिल सके। दाता – ग्राहता की दुनिया में नहीं रहना चाहता। मैं आनंद देना चाहता हूँ और जीवन ही केन्द्र में रहे। सभी को जोड़कर चलना व तीर्थ जीवन की जरूरत समग्रता से मिले और समग्रता से जीने की जरूरत पूरी कर ले। माया मुक्त जीवन चाहिए। प्रत्येक को सब कुछ मिले, सभी आनंद ले सकें और सभी समग्रता से जुड़ सकें, वैसा भविष्य देखना चाहता हूँ। सबको सब सुनने वाले बनें। हमें हमेशा तैयार रहना है, जीवन के घाव सुनाने लगता है। काम बचपन-जन्म के समय घाव दिखाता है। पैदा होते ही कान सुनने का काम करने लगता है। हम सब इस धरती पर आकर सुनें और सुनाएँ, समझें और समझायें, आगे बढ़ें और बढ़ाएँ। 2014 में इज़राइल में युद्ध हो रहा था और हम युद्ध के बीच वृक्षारोपण कर रहे थे; यह मेरे जीवन का सबसे अच्छा पल था। प्रेम और विश्वास के साथ युद्ध के दौरान इज़राइली और फिलिस्तीनी, जॉर्डन द्वारा मिलकर वृक्ष लगाना आनंददायक था। हमारे समाचार प्रेम पैदा करते थे; बुरे समाचार को हम अच्छे समाचार में बदलते थे। युद्ध के बीच शांति शिविर आनंद दे रहा था। यही मेरा सबसे खास पल है।
यूरोप के सभी शहर जॉर्डनवासियों को सेवा काम के लिए उपयोग तो करते हैं, लेकिन जलवायु शरणार्थी कहकर घृणा भी करते हैं। उनकी सेवा भी चाहते है, सम्मान से नहीं घृणा-लाचारों की तरह और गुलामों की तरह ही उपयोग भी करना चाहते है। लाचार तो बेचारा बनकर सभी कुछ करता है।
आज जॉर्डन की स्थिति विस्थापितों जैसी ही इज़राइल ने बना दी है। उसे बदलना कठिन तो है। ये अपने देश को छोड़कर बड़ी संख्या में विस्थापित हो रहे है। पलायन तो बेहतर आर्थिकी हेतु होता है। इस हेतु प्रायः युवा ही बाहर जाते है। जॉर्डन से पूरे परिवार के परिवार उजड़कर जा रहे है। इसलिए इन्हें जलवायु परिवर्तन शरणार्थी कहा जाता है।
बेहतर आर्थिकी सभी को पसंद है। वह सभी देशों में कर देकर ही संभव है। इसलिए भारतीय कर देकर अपने श्रम की कमाई से दूसरों की भी कमाई करते है। जॉर्डनवासियों के हालात भारतीयों से अभी भिन्न है। ये लाचार, बेकार होकर विदेश गये है। जीवन हेतु जीविका के लिए गये है।
भविष्य में भारतीयों को जॉर्डन जैसा ही विस्थापन का रास्ता पकड़ना पड़ सकता है। हमारी प्रौद्योगिकी शिक्षा ने हमें भूजल का शोषण सिखाया है। उसी से हमारा भू-जल भंडार दो तिहाई खाली है। हमें भी भविष्य में खेती उद्योग-पेय जल हेतु जल संकट का सामना करना ही पड़ेगा। हमारे हालात भी जॉर्डन जैसे ही बने भी हैं।
156 मील लंबी जॉर्डन नदी के प्रवाह पर इज़राइल बांध बनाकर नियंत्रण करता है। इस कारण जॉर्डन देश में पानी की कमी है। जॉर्डन बारिश के पानी का प्रबंधन करने में भी असमर्थ है। मुझे लगता है कि यहाँ सामुदायिक विकेन्द्रित जल प्रबंधन की आवश्यकता है। लोगों में जल के प्रति जागरूक करने की जरूरत है। इस देश को व्यापक जल नीति बनाने के साथ-साथ देश के लोगों को साथ लेकर रचनात्मक कार्य करने की जरूरत है।
जॉर्डन को प्राकृतिक पोषण की प्रौद्योगिकी काम लेनी होगी, जॉर्डन नदी में इस देश का जल भी बह जाता है। जॉर्डन भूमि पर वर्षा जल को नीचे नदी में जाने से रोक कर यह देश पानीदार बन सकता है। उस जल पर जॉर्डन का सम्पूर्ण प्राकृतिक अधिकार है। उस दिशा में इसे आगे बढ़ाना होगा। इस देश को अपने वर्षा जल को फसल चक्र में बदलकर खेती हो सकती है।
जॉर्डन समृद्ध राष्ट्र था। पुनः समृद्धि प्राकृतिक प्रौद्योगिकी से आयेगी। इज़राइली प्रौद्योगिकी प्राकृतिक नहीं है। यह शोषणकारी प्रदूषण-अतिक्रमण ही सिखाती है। इससे जॉर्डन को मुक्त होना है, तो स्वयं को ही प्राकृतिक पोषणकारी प्रौद्योगिकी अपनानी होगी।
*लेखक जलपुरुष के नाम से विख्यात पर्यावरणविद हैं। प्रकाशित लेख उनके निजी विचार हैं।