संस्मरण
– डॉ. राजेंद्र सिंह*
पोप जल को मानवाधिकार मानते हैं
मैं 21 फरवरी 2017 से 24 फरवरी 2017 तक इटली व वेटिकन सिटी में रूका था। यहाँ रोम में पूरी दुनिया के जलयोद्धाओं व मुझे भी पोप ने बुलाया था। साथ ही साथ वर्ल्ड वाटर कौंसिल के बहुत मेम्बर भी इसमें उपस्थित थे। हमने जब जल के निजीकरण को रोकने की बात कही तो यह बात सभी सदस्यों को स्वीकार नहीं थी, लेकिन जब पोप ने हम सब की बात सुनकर कहा कि जल पर केवल मानव का ही अधिकार नहीं है, अपितु जीव-जन्तु व सभी का समान अधिकार हैं; तब पोप के भाषण पर किसी भी मेम्बर ने आपत्ति नही की। सभी ने सहमति से स्वीकार कर लिया। मुझे भी बहुत अच्छा लगा।
हम पोप के मेहमान थे और उन्होंने मुझे वेटिकन में रखा था। यह सम्मेलन पोप के संस्थान क्षेत्र में ही हो रहा था। इस सम्मेलन के आरंभ में दुनिया में शांति स्थापित करने के लिए जल पर मानव व प्रकृति का समान हक स्थापित करने की बातें हुइंर्। इस पर किसी ने कोई आपत्ति नहीं की। इन्हें केवल वर्ल्ड वाटर को निजीकरण व व्यापार पर आपत्ति थी। मैंने इस सम्मेलन में चौथी बार बोलते हुए कहा कि अब दुनिया को तीसरे विश्व युद्ध से बचने के लिए जल साक्षरता हेतु दुनिया की सभी सरकारों, संस्थानों व संगठनों को लगने की जरूरत है। मैंने कहा कि, मैंने तो अपनी छोटी-सी औकात से जल नैतिकता, न्याय व जल साक्षरता का काम किया है। इन कार्यों को व्यापक रूप से दुनिया में करने के लिए पोप और आप जैसे लोगों को साथ लगाने की जरूरत है।
इस सम्मेलन के समापन भाषण में पोप का भाषण बहुत अच्छा था। उन्होंने , जो हमने बोला था, उसको समेटकर अच्छा निष्कर्षात्मक भाषण दिया। उनके भाषण का मुख्य आधार जल के निजी व व्यापारीकरण के विरोध में ही था। यह निजीकरण और बाजारीकरण ही प्राकृतिक प्रेम कम करता है। जल सभी को जीवन देता है। यह प्रभु का मानव को दिया उपहार है। इसे खरीदना बेचना उचित नही है। इस पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने रोक लगाई है। जल को मानव अधिकार कहकर, यह केवल मानव अधिकार नही है। यह प्रभु का उपहार सभी के लिए समान है।
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पोप अब जल को मानवाधिकार मानते हैं । यह निजीकरण को तथा जल व्यापारीकरण रोकने की प्रक्रिया है। पोप ने ही मुझे मिलने बुलवाया था। मैंने दो वर्ष पूर्व उन्हें ‘‘जल और दुनिया’’ एक ही है का मन्तव्य का पत्र दिया था । जल ही जलवायु है। जल ही जीवन है। जल के बिना मानवता और प्रकृति का बचना संभव नहीं है। इसे व्यापार की वस्तु मानना प्रकृति और मानवता दोनों के विरूद्ध ही है। इसाईयत ने ही जल को जीवन की वस्तु मानता है। इसी धर्म ने दुनिया में कहा कि, जल मानव के लिए है, इसका अनुशासित होकर उपयोग करें। इसके बिना बाढ़-सुखाड़ दोनों ही बढे़गी। इसलिए इसे ईसा मसीह की देन मानकर सम्मान पूर्वक जल प्रेम से उपयोग करें। आज लोग उपयोग करने के स्थान पर उपभोग करने लगे है। यह बाजारू वस्तु बन गई है। बाजार से बहार लाने की शुरूआत भी ईसाईयत से होगी तो दुनिया का शुभ होगा। दुनिया पानी-प्राकृतिक प्यार से आगे बढ़ जायेगी।
मेरे इस मन्तव्य के पत्र का पोप ने सम्मान किया। मुझे मिलने बुलाया। मैं मिलने गया। वे प्रकृति और मानवता को बराबर सम्मान करते है। उन्होंने मुझे निजी तौर पर प्यार से कहा कि आपकी मंशा का सम्मान करता हूँ। हम आज भी जल को मानवाधिकार रूप् में ही देख रहे है। वही संयुक्त राष्ट्र संघ भी मानता है। दुनिया की जल जरूरत मानव की नही है। पेड़-पौधे, जीव-जन्तु, नदी-समुद्र सभी की जरूरत का ध्यान नहीं रखा जायेगा तो जल व्यापार पूरी दुनिया के जलतंत्र को बाजारू बनाकर एकरूपता प्रदान करेगा। आज ब्रह्माण्ड एकरूपता से नहीं विविधता से समृद्ध बनेगा। दुनिया को एकरूपता देने का काम उद्योग-व्यापार के लाभ हेतु किया जाता हैं। लाभ जीवन की सुरक्षा को कमजोर बनाता है। जब जीवन की सुरक्षा को कमजोर बनाता है।
इटली में पो और टाइइर यही प्रमुख नदियों है। रोम टाइबर नदी पर स्थित है।आज पूरे इटली को आधुनिक किसानों के फलों, तरकारियों तथा अन्य फसलों से भर दिया है, केवल पहाड़ों पर ही जंगली पेड़ तथा झाड़ियाँ पाई जाती है। इटली में खनिज पदार्थ अपर्याप्त है, केवल पारा ही यहाँ से निर्यात किया जाता है। इटली ने जलवायु परिवर्तन के विनाशक रूप को पहचानने के बाद यहाँ जलवायु परिवर्तन की पढ़ाई को अनिवार्य कर दिया है।
*लेखक जलपुरुष के नाम से विख्यात जल संरक्षक हैं। प्रकाशित लेख उनके निजी विचार हैं।