संस्मरण
– डॉ. राजेंद्र सिंह*
मालद्वीप का विस्थापन भय के कारण है
मालद्वीप गणराज्य की राजधानी माले है। इस देश का क्षेत्रफल 298 वर्ग किलोमीटर है। मालद्वीप में लगभग 1,190 मुँगिया द्वीप शामिल है, जो उत्तर-दक्षिण दिशा के बराबर 26 प्रवाल द्वीपों की दोहरी चेन में संगठित है। इस देश की जलवायु पर हिन्द महासागर का बड़ा प्रभाव पड़ता है। वह एक गर्मी प्रतिरोधक के रूप में अवचूषण और भंडारण करते है। मालदीप का तापमान पूरे साल 24 सेल्सियस से 33 सेल्सियस तक रहता है।
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2004 में आयी सुनामी से मालद्वीप बूरी तरह से तबाह हो गया था। उस समय इस देश में समुद्र का जल फैल गया था। ऐसा लग रहा था, यह देश जलवायु परिवर्तन के कारण डूबेगा। समुद्र तल ऊपर उठ रहा है। ऊपर उठते जल स्तर का भय 2019 में लोगों के बीच बना हुआ है। बातचीत में यहाँ के जलवायु का डर देखकर मेरे पूछने पर मुझे उत्तर मिला कि, हमारा छोटा सा देश है। फिर कभी वैसी सुनामी आयी तो हमारा अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा। इस देश का विस्थापन भय के कारण है। प्राकृतिक संसाधनों की भरमार है। हरियाली भी है, फिर भी सुनामी का भय यहाँ बना ही रहता है।
डर ने इन्हें अच्छे तापक्रम-मौसम के बावजूद बेघर बनने की लाचारी यहाँ मिटती नही है। इस लाचारी-बेकारी से उबरन के बुनियादी प्रयासों की यहाँ जरूरत है। इस देश में संयुक्त राष्ट्र संघ के जलवायु परिवर्तन शिक्षण कार्यक्रम चलाकर आपदा सहवरण की तैयारी कराने की जरूरत है। यहाँ की राष्ट्रीय सरकार में वैसी कुशलता-दक्षता भी बढ़ाई जा सकती है।
संयुक्त राष्ट्र संघ की भूमिका आपदा सहवरण हेतु छोटे राष्ट्रों की तैयार कराना है। इस दिशा में संयुक्त राष्ट्र संघ की सक्रियता दिखाई नहीं देती है। हमनें अपनी यात्रा के दौरान सम्पर्क करने हेतु बातचीत की है। लेकिन अभी तक कुछ प्रगति नहीं हुई है जिन देशों में जल की अधिकता का विस्थापन है।
मालद्वीप में जल की अधिकता और कमी दोनों ही आपदा है। जलापदा से मुक्ति ही विस्थापन से मुक्ति है। विस्थापन मुक्ति ही संभावित तीसरे विश्व युद्ध से मुक्ति मिलेगी। इस समय बाढ़-सुखाड़ प्राकृतिक आपदा कम मानव निर्मित पूरी दुनिया में अधिक बढ़ती जा रही है। दुनिया के देश इससे बहुत भयभीत है। भयभीत होकर भी लोग अपने देश से उजड़कर एक दूसरे देश में प्रवेश पाने का प्रयास करते है। दूसरे देशों में जलवायु शरणार्थी बनकर रहना भी सुखद नहीं है। फिर भी विस्थापन तो सतत् बढ़ ही रहा है। सतत् बढ़ते विस्थापन ने दुनिया को अब युद्ध के द्वार पर खड़ा कर दिया है। विस्थापितों का पुनर्वास करके कोई भी देश प्रसन्न नहीं है। पुनर्वास करने वाले देश भी उजड़ने वालों से अधिक भयभीत है।
*लेखक जलपुरुष के नाम से विख्यात जल संरक्षक हैं। प्रकाशित लेख उनके निजी विचार हैं।