नील नदी
संस्मरण
– डॉ. राजेंद्र सिंह*
बेपानी होकर उजड़ता इथोपिया
अफ्रीका की प्रमुख नील नदी इथोपिया एवं मध्यवर्ती अफ्रीका से निकलकर, उत्तर सूडान एवं मिश्र में बहती है। यह विश्व की सबसे लम्बी नदी भी है। जिसकी कुल लम्बाई 6650 किलोमीटर है। केन्या सरकार ने स्टॉकहोम वाटर वीक की तर्ज पर अपने यहाँ भी केन्या वाटर वीक आयोजित किया था। सुनीला मलिक के बुलावे पर इस बार मैं केन्या गया था। वैसे मैं केन्या की राजधानी नैरोबी बहुत बार जाता रहा हूँ। लेकिन इस बार यहाँ के प्रेसिडेंट द्वारा आयोजित वाटर वीक में जाना बहुत अच्छा रहा। मैं इनके वाटर वीक का उद्घाटन करके फिर केन्या के अतिशुष्क इलाके से जुडे़ हुए इथोपिया और सोमालिया भी जा सका। वहाँ जमीन पर काम करने वाले बहुत सारे कार्यकर्ताओं के बीच सहयोग बन सका। खासकर जल, ज़मीन, जंगल से जुडे़ अफ्रीकन कार्यकर्ताओं से बड़ी संख्या में मिला।
जंगलों की कटाई और जलवायु परिवर्तन के कारण वहाँ काफी भू-क्षरण हो रहा है। भू-जल का स्तर बहुत नीचे जा चुका है। 24 नवम्बर 2016 को जब पहली बार इथोपिया पहुँचा तो इथोपिया के वीरान गाँव-जंगल देखे, यहाँ पर प्रकृति का भयानक क्रोध दिखता है। वहां के नवासा जाते समय तीन तरह के क्षेत्र- अतिवृष्टि, कम वृष्टि और बहुत कम वृष्टि वाला क्षेत्र देखा। यहाँ बहुत ज्यादा जल संकट है। यहाँ अब भी जंगल कट रहे हैं। विकास के नाम पर बहुत बर्बादी है। यहाँ सूजन और पूवर्टी नामक दो महिलाएँ बहुत अच्छा काम कर रही हैं। इन दोनों ने नवासा में 300 घर गरीबों के लिए बनाकर उनके साथ ही रहती हैं। यह दोनों बेस्ट मैंनेजमेंट का काम करती हैं। 25 को सुनीला मलिक के साथ केन्या में क्या और कैसे काम किया जाये? इस विषय पर अच्छी चर्चा के बाद वापसी प्रस्थान किया। यहाँ आगे काम करने की बहुत जरूरत है। लोगों में काम करने की रुचि भी है। उन्होंने मुझसे सीखने और करने में रुचि दिखाई।
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दूसरी बार भारत से 3 सदस्यीय दल 18 जून 2019 को इथोपिया की राजधानी अदिस अबाबा में पहुँंचा। तब यहाँं बहुत अच्छी वर्षा हो रही थी। वर्षा की उपलब्धता को देखकर लगता है, देश पानीदार है। लेकिन यहाँ की सरकारों ने जल प्रबन्धन में कुशलता नहीं दिखाई, इसीलिए यहाँँ जल पूर्ति हेतु जल कम्पनियों ने काम शुरू किया हैं। यहाँ के समुदायों का भूजल व सतही जल पर अधिकार दिखाई नहीं देता है। यहाँ सामुदायिक जल प्रबंधन वर्तमान में दिखाई नहीं दिया। सरकार भी जल संरक्षण हेतु गंभीर नजर नहीं आयी। कम्पनियाँ पानी की मालिक है। यह पहले किसी भी देश को बेपानी घोषित कराती हैं, फिर जलापूर्ति के नाम पर जल को बेच कर मुनाफा कमाती है।
1990 में यह देश में बेपानी होकर उजड़ना आरम्भ हुआ था। उस वक्त यहाँ की सरकार ने कर्ज़ लेकर जल प्रबन्धन कार्य आरम्भ किया था। उस कर्ज़ की राशि को यहाँ का भ्रष्टाचार डकार गया और यह देश बेपानी बना रहा। तब यहाँ निजी कम्पनियों को बुलाया और उन्हें यहाँ की जलापूर्ति का काम दिया है। इस कम्पनी ने यहाँ के जल को दिन-ब-दिन महँगा बना दिया है। यहाँ के लोग जल की कीमत नहीं चुका पा रहे हैं, इसलिए यहाँ फिर से जल संकट वैसा ही भयानक दिखाई दे रहा हैं।
अदिस अबाबा विश्वविद्यालय के विद्यार्थी और शिक्षक सभी बढ़ती जल किल्लत से दुःखी हैं। हमने इनके साथ बात करके गंगा अविरलता पुस्तक का विमोचन कराया। अनिल पाटिल ने इस पुस्तक के विषय में विद्यार्थियों और शिक्षकों को समझाया। आभा शर्मा ने यहाँ विद्यार्थियों से बातचीत करके भारत के जल संकट और समाधान पर चर्चा की। यहाँ के विद्यार्थियों और शिक्षकों ने अपने इथोपिया के जल संकट के कारण भी बताए। मैंने दुनिया में जल के निजीकरण से पैदा हुए जल संकट पर संक्षिप्त बातचीत करते हुए, इस देश में जल साक्षरता की जरूरत पर प्रकाश डालते हुए कहा की जल व्यापार समाधान नहीं है। उन्होंने जल को समझने, सहेजने और अनुशासित होकर उपयोग करने की जरूरत बताई।
इथोपिया में अब जल का सामुदायिक प्रबन्धन करने हेतु जल साक्षरता की जरूरत है। इस काम को इसी विश्वविद्यालय से शुभारम्भ करना चाहिए। यह सुनकर विद्यार्थियों में अति उत्साह को देखकर मैं आनन्दित हुआ। लम्बी दासता के बाद भी इस देश की युवा पीढ़ी में काम करने का जज्बा दिखाई दिया। यहाँ के नेतृत्व में इसकी स्पष्ट कमी झलकती है। तभी तो वर्षा क्षेत्र होने पर भी देश बेपानी बना हुआ है। विश्वविद्यालय भी साझे भविष्य को बेहतर बनाने वाली शिक्षा नहीं दे रहे हैं। इसीलिए विद्यार्थियों में कम्पनियों में नौकरी ढूँढ़ने की ललक ज्यादा झलकती है।
यहाँ की सरकार कमजोर है, पुलिस भी बहुत ही भ्रष्टाचारी है। हमारी आँखों के सामने सड़क पर फल सब्ज़ी बेचने वाले बैठे तो उनसे पैसा भी लिया और उन्हें वहाँ से हटा भी दिया।
अदिस अबाबा के अफ्रासिंस होटल में हम ठहरे थे। यह होटल एयरपोर्ट से कुल 30 मिनट की दूरी पर था। यह इस शहर का हृदय क्षेत्र है। यहाँ भी चोरी चपटी का बहुत डर है। होटल प्रबन्धन ने हमें पूरा डराने की कोशिश की कि हम शहर मार्केट में या विश्वविद्यालय में अपने बलबूते पर नहीं जाएँ। हम अपने पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार वहाँ का जल प्रबन्धन देखने समझने ही गए थे। विश्वविद्यालय हमारे लिए ख़ास था। यहाँ हम स्वतन्त्र रूप से बहुत कुछ देख व जान सकते थे। इसलिए हमारा मुख्य केन्द्र यहाँ के विद्यार्थी ही रहे। वे बिना लाग लपेट के पूरी बात स्पष्टता से बोलते हैं। यहाँ के रिसर्च पी.एच.डी. छात्र रेवली (उम्र-23) वर्ष ने कहा-‘आप जिस तरह से नदियों और जल के स्वास्थ्य के सम्बन्धों पर बात कर रहे हैं, हमारे विश्वविद्यालय में ऐसी कोई संगोष्ठी, कार्यशाला या बातचीत कभी नहीं होती।’
विश्वविद्यालय से निकलकर यहाँ के बाजार में गए, वहाँ पर जल के विषय में जानने की कोशिश की, तो किसी ने भी हमसे रुचि लेकर बातचीत नहीं की। यहाँ के बाजार से निकलकर सड़क के ओवर ब्रिज के नीचे खड़े होकर अलग-अलग तरह के लोगों से भी बातें की, इनमें अवश्य चिन्ता और रुचि दिखाई दी। किवाड़ ने कहा-‘वर्षा के दिनों में हमारा जल गन्दगी को धोता हुआ बह जाता है। यह बहता हुआ पानी, मिट्टी को काटकर नीचे के गाँवों और शहरों में बाढ़ लाता है और ऊपर से मिट्टी व हरियाली को नष्ट कर देता है। हमारे देश में अब बाढ़ और सुखाड़ दोनों ही संकट हैं। मोला ने कहा पुराने जमाने में हमारे जल का ध्यान हम स्वयं ही रखते थे। अब आधुनिक पढ़ाई वाले वैसा ख्याल नहीं रखते। पुराने जमाने में हम कम पानी में ही अपना जीवन चला लेते थे, अब तो मल-मूत्र बहाने में ही बहुत सारा जल खर्च हो जाता है। ज्यादा पढ़े-लिखे लोग जल की ज्यादा बर्बादी करते हैंं। हमारे साथ अनुवाद करके बताने वाला बोची नामक युवा अच्छा समझदार था। हमने पहले उसे अपने सवाल समझा दिए थे, फिर तो वह स्वयं ही अपनी भाषा में हमारे लक्ष्य के अनुरूप खोद-खोद कर, सवाल पूछकर हमें बताने लग गया था।
यहाँ जल का संकट बढ़ता ही जा रहा है। अब निजी कम्पनियाँ जलापूर्ति करती हैं। इन्होंने जल प्रबन्धन को अच्छा तो किया है, लेकिन वह दिन-ब-दिन महँगा होता जा रहा है। मौलवी अब्बास की राय तो निजी कम्पनियों के विषय में बहुत खराब थी; उसने कहा- ये कम्पनियाँ जल की लूट कर रही हैं। हमारा ही पानी हम ही खरीद कर पी रहे हैं। इस लूट को रोकने का उपाय पूछा तो कहा- हमारी सरकार को चलाने वालों ने कम्पनियों से मिलकर लूट का धन्धा शुरू कराया है। लोगों में क्रोध बढ़ रहा है। एक दिन हम सब मिलकर इन जल कम्पनियों को भगाएँगे हमारी पुरानी जल व्यवस्था ही अच्छी थी।
आजकल दुनिया भर के नेता और ग़रीब, लाचार, बेकार, बीमार देश भी बहुत ही दिखावटी उत्सव-समारोह करके बड़े बन रहे हैं। ऐसा एशिया व अफ्रीका के देश ज्यादा कर रहे हैं। भारत में भी यही देखने को मिल रहा है। माली, इथोपिया में भी यही जाकर देखा और सुना है। राजा का दिखावटीपन खतरनाक होता है। व्यापारी तो यह दिखाकर कमाई करते हैं पर राजा कमाई नहीं कर सकता, वह तो गँवाता ही है।
*लेखक जलपुरुष के नाम से विख्यात पर्यावरणविद हैं। प्रकाशित लेख उनके निजी विचार हैं।