संस्मरण
-डॉ. राजेंद्र सिंह*
जल संकट के समाधान के लिए जल साक्षरता ज़रूरी है
दक्षिण कोरिया ही जल साक्षरता यात्रा विश्व युद्ध से बचने की शुरूआत कराने का केन्द्र बना। यहाँ मैं दुनिया भर के जलकर्मीयों, जल वैज्ञानिकों, प्रबंधकों, इंजीनियरों, नेताओं, व्यापारियों, शिक्षकों, विद्यार्थियों आदि से मिला। सभी ने तीसरे विश्व युद्ध की आशंका प्रकट की। इससे बचने की शुरूआत तत्काल करने का निर्णय यहीं हुआ।
12 अप्रैल 2015 को प्रातः ज्ञानजू पहुँचे । यहाँ हमारा होटल का पैसा जमा था। होटल वाले ने कमरा देने से मना कर दिया। इसके बारे में हमने विश्व जल मंच को सूचित किया, तब उन्होंने होटल वालों से कहा, तब जगह मिली। होटल बहुत सस्ता था, लेकिन जल मंच ने कई गुना ज्यादा ही वसूला था। खैर, एक कमरे में हम दो लोग रहे। यहाँ से रजिस्ट्रेशन हेतु काउंटर पर जाकर कोशिश की। इसके बाद पृथ्वीराज सिंह के साथ शहर भ्रमण किया, नदी दर्षन और विभिन्न लोगों से बातचीत की। जलमंच का उद्देश्य समझा, अपनी भूमिका जानी फिर तैयारी में जुटे। यहाँ उद्घाटन हेतु दुनिया के 11 राष्ट्रपति मौजूद थे। बहुत से देशों और राज्यों के राष्ट्राध्यक्ष व राज्याध्यक्ष मौजूद थे।
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इस जल मंच सम्मेलन से मैं 1997 से मोरक्को से ही जुड़ा था। यह हर तीन वर्ष में आयोजित होता है। अभी तक यह जल मंच मोरक्को – 1997, हेग – 2000, क्वोटो – 2003, टर्की-2006, मैक्सिको – 2009, मासे – 2012, ज्ञानजू – 2015, ब्राजील-2018 में हुआ है। इन सभी सम्मेलनों में पहुँचा हूँ।
मैं देख रहा हूँ कि, पानी का व्यापार करने वाली प्राईवेट कम्पनियाँ दुनिया को किस प्रकार धोखा दे रही हैं। इस सम्मेलन को आयोजित करने वाला विश्व जलमंच प्राईवेट कम्पनियों का ही मंच है; लेकिन यह अपने आपको संयुक्त राष्ट्रसंघ का अंग बताता है। इस सम्मेलन में अभी तक विश्व बैंक, संयुक्त राष्ट्र से संबंधित यूनेस्को, यू. एन. वाटर आदि संस्थाएँ भी भागीदार होती हैं। इसलिए ज्यादातर लोगों को यह समझ आता है कि यह संयुक्त राष्ट्र का अंग है। जिस देश में यह सम्मेलन आयोजित होता है, उसका खर्चा वही देश उठाता है। जैसे- गरीब देश सेनेगल।अब यह भी आर्थिक प्रतियोगिता बन गया है।
इस प्रकार, यह प्राईवेट कम्पनियों का मंच, दुनिया भर से पैसे इकट्ठे करके अपने पानी के व्यापार को ही बढ़ाने का षड्यंत्र करता है। मैंने यह बात विश्व जल समिति के आयोजन मंच पर जाकर स्पष्टता से रखी। यहीं इस सम्मेलन की आयोजक है। मैंने इस मंच पर उन्हें यह भी स्मरण कराया कि विश्व जल मंच का जो उद्देश्य है, वह ‘‘दुनिया में जल सुरक्षा‘‘ सुनिश्चित करना है; लेकिन ऐसा कोई भी काम 1997 से लेकर आज तक इस मंच ने नहीं किया।
यह जल मंच उन्हीं देशों में आयोजित होता है, जो जल का निजीकरण करने के लिए सैद्धांतिक तौर पर तैयार होते हैं और इनके साथ अपने देश के पानी के व्यापार का समझौता करते हैं। इसलिए आज यह मान्य केवल जल के व्यापारिक समझौते वाला मंच बन गया है।
विश्व जल मंच की कार्यसमिति के पंडाल में अपने वक्तव्य में सामुदायिक विकेन्द्रित जल प्रबंधन के प्रयोगों का अपना अनुभव रखा। कहा कि, सामुदायिक ज्ञान स्थानीय पारिस्थितिकी विविधता के सम्मान से भू-संस्कृति की विविधताओं की उपयोगिता को समझ कर ही काम करता है। इससे जलवायु के विरुद्ध काम कम होते हैं। वैश्विक ज्ञान से जब भी कोई काम होता है, वह विश्वहित में होता है। इस मंच में साउथ अफ्रीका, अमेरिका, यूरोप, पूरी दुनिया के लोग मौजूद रहे हैं।
इसमें दुनिया भर के 145 देशों ने अपनी भागीदारी निभाई। इन सभी देशों ने जल संकट के समाधान के लिए अपने-अपने देश में किये जा रहे प्रयासों को पूरी दुनिया के सामने प्रस्तुत किया। 21वीं सदी जल संकट की सदी है। इसके समाधान के लिए वैश्विक स्तर पर साझी पहल इसमें नही दिखाई दे रही है। जल संकट का मुद्दा वैश्विक मुद्दा है। इसके समाधान के लिए वैश्विक प्रयासों की जरूरत को देखते हुए, कई राष्ट्रों की संवेदनशीलता अधिक दिखाई दे रही है। जल की समस्या से दुनिया के कई देश जूझ रहे हैं, जिनमें भारत भी एक है। सन् 2030 वैश्विक स्तर पर जल संकट के लिए हम सबके ऊपर चुनौती है। जब माँग और आपूर्ति के बीच बड़ा अंतर होगा तो जल के कारण आपसी मतभेदों को समाप्त करने के लिए राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर साझे प्रयास की जरूरत है। विश्व जल सम्मेलन कोरिया में उत्तर-दक्षिण, पूर्व-पश्चिम के बीच वैचारिक दूरी दिखाई दी है। खाद्य सुरक्षा और कृषि की आवश्यकता के लिए पानी जरूरी है। इसके लिए कई देशों ने नवाचार प्रारम्भ किये हैं। ब्राजील, जापान, चीन, ईजराइल, मैक्सिको व फ्रांस जैसे देशोंं ने पूरी दुनिया के सामने अद्भुत् उदाहरण प्रस्तुत किये, लेकिन जल बाजार इन्हें ऊपर नहीं आने देता है।
जलवायु परिवर्तन, पानी और खाद्य सुरक्षा वर्तमान समय की सबसे बड़ी चुनौती है। ग्रीन एनर्जी के लिए भी जल की माँग को कम करना जरुरी है। लगातार बाढ़ और सूखे की बढ़ती प्रवृत्ति पूरी दुनिया के लिए चुनौती है; वहीं बढ़ती आबादी के बोझ के कारण नदियों और जल संरचनाओं का अस्तित्व संकट में है। कई देश अपनी नदियाँ ठीक कर चुके हैं या करने का प्रयास कर रहे हैं। पूरी दुनिया में पवित्र नदी गंगा की स्वच्छता की चिंता है। वहीं नवाचार के नाम पर पूरी दुनिया में पानी का बाजार खड़ा करने के लिए निजी क्षेत्र की कंपनियों की सक्रियता और साजिश भी लगातार बढ़ रही है। नवाचार के नाम पर कम्पनियाँ अपनी तकनीक बेचकर अधिक लाभ कमाना चाहती हैं। दक्षिण कोरिया तकनीकी और औद्योगिक विकास के लिए उभरती अर्थव्यवस्था है। जहाँ इलेक्ट्रॉनिक और ऑटो मोबाइल का बड़ा बाजार है। देगू जैसे शहर में 99 प्रतिशत पानी की सप्लाई निजी क्षेत्र में है। इसी तरह के मॉडल को बढ़ावा दिया जाये इस बात की वकालत कोरिया वाटर नाम की संस्था लगातार कर रही है।
कोरिया वाटर ने मुझे तीन दिन तक, विविध स्थानों पर ले जाकर, अपने बड़े बाँध व जलापूर्ति के काम दिखाये। ये भारत से बहुत पीछे हैं। यहाँ जल का सारा काम कम्पनियाँ ही करती है। मैंने भी इन कंपनियों का षड्यंत्र देखा है। उनके समापन भाषण में मैंने बोल भी दिया कि जल किसी एक व्यक्ति या कम्पनी का नहीं होता; जल तो सभी का साझा होता है। इस पर पूरे जीव-जगत् का अधिकार है।
कोरिया के राष्ट्रपति पार्क गियूनहे, तुर्कमिस्तान के राष्ट्रपति गुरवन जुउली, तजाकिस्तान के राष्ट्रपति ईमोमाली रहमान, मोनाको के प्रिंस अलवर्टली, हंगरी के राष्ट्रपति, जानोसधर ,मोरक्को के प्रधानमंत्री अब्देलिला बेनकिराने आदि ने प्रमुख रूप से सहभागिता की।
अगले दिन नदी घाटी प्रबंधन में मेकोंग तथा अन्य कई नदियों के अनुभव सुने। ज्ञानजू में यात्रा दल ने तरुण भारत संघ की तरफ से शांति मार्च निकाला और बच्चों के साथ एक रैली निकाली। देगू में गंगा मेकोग डायलाग में भाग लिया। इसमें गंगा की समस्या व समाधान पर विस्तार से चर्चा हुई। इस संवाद के बाद तरुण भारत संघ ने ‘‘जल शांति यात्रा‘‘ आयोजित की। यह यात्रा इस सम्मेलन में भी निकाली तथा शहर के कई विद्यालयों एवं सार्वजनिक स्थानों पर भी आयोजित हुई।
यहाँ से अगले दिन ज्ञानजू में सिटिजन फार्म आयोजित हुआ, जिसमें मैंने अपने कामों का अनुभव रखा और शांति मार्च आयोजित किया। इस शांति मार्च को ‘कोरियन एक्सप्रेस‘ न्यूज ने पहले पृष्ठ पर जगह दी। इस दिन बांग्लादेश, पाकिस्तान, चीन, नेपाल, दक्षिण अफ्रीका, व ब्राजील के लोग साथ रहे। इन यात्राओं के दौरान कामोन चोगू नदी, अन्डोम डेम तथा एन्डोगफोक म्यूजियम, नेकोडेन्ग नदी आदि स्थान भी देखे।
साउथ कोरिया में दुनिया के बहुत से वैज्ञानिकों ने संवाद में माना कि अब जल संकट का समाधान केवल तकनीक और विज्ञान से ही संभव नहीं है। इसके लिए चेतना से जलसंरक्षण संवर्धन करने की आवश्यकता है। इस हेतु माँग की पूर्ति के साथ सामंजस्य बढ़ाना होगा। इसलिए अब सामुदायिक, राज्य और राष्ट्रीय सभी स्तरों पर जल साक्षरता की आवश्यकता है। इसके लिए जलसंरक्षण एवं उपयोग दक्षता में सामुदायिक नेतृत्व करने हेतु अब लोगों को आगे आना ही होगा। इस पर बहुत जोर था।
दुनिया भर के लोगों ने मुझसे से निवेदन किया और मैंने इनकी बातें सुनकर सहज स्वीकृति दे दी। कोरिया की जल कम्पनी इसको अच्छा नहीं मान रही थी। लेकिन दुनिया भर के लोगों ने जब मुझसे कहा, तभी मैंने सभी से पूछा कि कौन कैसे-कैसे और क्या-क्या जिम्मेदारी लेगा? सभी ने अपनी-अपनी जिम्मेदारी लेकर मुझे 20 देशों- एशिया -20, अफ्रीका-20 और यूरोप में जाने का निर्णय हुआ। मैंने इस कार्य को अपनी जिम्मेदारी मानकर बिना धन जुटाये ही इन देशों की यात्रा की। यह यात्राएँ जल नैतिकता न्याय के लिए , जल संरक्षण, उपयोग दक्षता बढ़ाने हेतु जल साक्षरता एवं पारिस्थितिकी अध्ययन हेतु है।
इस कार्य हेतु किसी से कोई धन इकठ्ठा नहीं की और न ही किसी से माँगा। केवल दुनिया के मुझे जानने वाले लोगों ने मेरी यात्रा, भोजन तथा आवास की व्यवस्था की थी। मैंने इस हेतु ज्ञान, समय, शक्ति, साधनों का समर्पण किया और यात्रा उद्देश्य की पूर्ति में मेरे विदेशी मित्रों ने सम्पूर्ण रुप से सहयोग दिया।
*लेखक जलपुरुष के नाम से विख्यात पर्यावरणविद हैं। प्रकाशित लेख उनके निजी विचार हैं।