आरेंज नदी
संस्मरण
– डॉ. राजेंद्र सिंह*
दक्षिण अफ्रीका की सरकार मुझे बुलाकर केवल अपने काम की प्रशंसा ही सुनना चाहती थी
आधुनिक मानव की बसाहट दक्षिण अफ्रीका में एक लाख साल पुरानी है। 1961 में दक्षिण अफ्रीका को गणराज्य का दर्जा मिला। इसके बाद 1994 में भेदभाव वाली नीति के खत्म होने और लोकतांत्रिक चुनाव से हुई। फिर यह देश राष्ट्रकुल देशों में शामिल हो गया। आरेंज नदी दक्षिण अफ्रीका की सबसे लम्बी और मुख्य नदी है। यह लिसूतू देश में द्राखेन्सबर्ग पहाडियों से आरंभ होती है और पश्चिमी दिशा में बहकर अटलांटिक महासागर में विलय हो जाती है।
मैं, 28 फरवरी, 2016 से 4 मार्च, 2016 तक दक्षिण अफ्रीका में रहा था। 28 फरवरी को सुबह जोहन्सबर्ग पहुँचा। यहाँ पर तंजानिया, मंगोलिया व बांग्लादेश के इथोपिया, सैनेगल, रवांडा, फिलिस्तीन, जोर्डन आदि देशों के जल योद्धा और जल कार्यकर्ता बैठक में आये थे। सभी को तरुण भारत संघ का अनुभव प्रस्तुत किया और फिर उनके अनुभव सुने। बहुत व्यवहारिक संवाद रहा। उन्होंने तरुण भारत संघ के जलवायु परिवर्तन, अनुकूलन और उन्मूलन की दिशा में हुए सतत् 32 वर्षां के कार्यां को देख समझकर, अपने देशोंं में भी ऐसे काम करने का आग्रह किया और कहा कि इसी प्रकार के काम हमारे देश में भी करने की जरूरत है। तब मैंने इन्हीं से पूछा कि आपके यहाँ यह काम कैसे किया जा सकता है? इन सभी की राय थी कि (राजस्थान) भारत के अनुभव में वहांँ के समाज के पास जल संरक्षण का ज्ञान बचा था; इसलिए ऐसे कार्य करने के लिए जल साक्षरता की जरूरत है। समुदायों को संसाधन चित्रण करना सिखाना होगा।
यह भी पढ़ें: मेरी विश्व शान्ति जल यात्रायें – 18
दुनिया भर के जलयोद्धाओं को विश्वास नही हो रहा था। वे बोले कि वर्षा जल का संरक्षण करके समुदाय स्वावलंबी बन सकता है। यह विश्वास पैदा करना मुश्किल काम है, लेकिन भारत का अनुभव हमें विश्वास पैदा करता है कि, ऐसे काम किए जा सकते है। इसलिए हम यह करने के लिए तैयार हैं। जोहान्सबर्ग में 5 दिन की सफल कार्यशाला के बाद सूखा ग्रस्त क्षेत्रों को भी देखा। जोहान्सबर्ग से पैलेकवैन जाकर मेंडेविन म्युनिसिपेलटी के प्रतिनिधियों व अधिकारियों के साथ उनकी चल रही तोसांग परियोजना के कार्यकर्ताओं, कृषि, पर्यावरण इंजीनियरों के साथ वहांँ के गाँव में जाकर प्रत्यक्ष कार्य विधि समझायी और तोसांग परियोजना में कमियों पर भी चर्चा हुई। उसमें आगे कैसे काम किया जाये? इस विषय पर विस्तार से विचार-विमर्श हुआ। उन्होंने मेरे सुझावों को क्रियान्वित करने पर अपनी टिप्पणी की और अंत में, मेरे साथ चर्चा करने पर क्रियान्वित करने की सहमति भी बनी।
यह तोसांग परियोजना केवल भू-जल को निकालने की परियोजना है। मैंने कहा कि भू-जल तो जल्दी खाली हो जायेगा और वर्षा का जल बह कर चला जायेगा। भू-जल से पीने व पशुओं के लिए पेयजल की व्यवस्था करना है, क्योंकि यहाँ ६०० मिलीमीटर वार्षिक वर्षा है। जन घनत्व उस क्षेत्र में केवल 132 व्यक्ति प्रति वर्ग कि.मी. हैं। इतने कम घनत्व के लिए यह वर्षा जल पर्याप्त है। हमारे राजस्थान के अलवर जिले में जन घनत्व दो गुना अधिक है, वार्षिक वर्षा कम है, फिर भी हम वहांँ के लोग पानीदार बन गए हैं। इसलिए हमें यह देखना होगा कि यहाँ के जल संरक्षण में जल का वाष्पीकरण कैसे कम करें? इस हेतु मैंने वहां की धरती के फ्रैक्चर और एक्वीफर प्रत्यक्ष रूप से दिखाये और समझाये। जमीन के अंदर जो सीधी और गहरी बड़ी दरारें होती हैं, वे वर्षा-जल को भू-जल के भंडारों के साथ जोड़ती हैं। यह सब मैंने मौके पर ले जाकर कई जगह दिखाया और समझाया। फील्ड की यह दो दिन की कार्यशाला यहाँ सम्पन्न होने के बाद भी यहाँ पानी की कमी, चारे की कमी, बेरोजगारी व पलायन की समस्या पर बार-बार ध्यान आकर्षित कर रहे थे। बहुत सारे गाँव बेपानी होकर उजड़ चुके है।
वहां के जितने भी सरकारी काम देखे थे, उनमें अधिकतर पानी की पूर्ति करने वाली निजी कम्पनियों के द्वारा सरकारी पैसे से किये हुए काम थे। इन सभी कामों में ठेकेदारी ही प्रबल रूप से प्रत्यक्ष दिखाई दे रही थी। इसलिए वहां के कामों की कमियों की प्रत्यक्ष जिम्मेदारी लेने वाला कोई उपस्थित नहीं था। वहां की सरकार मुझे बुलाकर केवल अपने काम की प्रशंसा ही सुनना चाहती थी। मेरे द्वारा प्रत्यक्ष मौके पर दी गई टिप्पणी के कारण फिर मुझसे कोई प्रस्तुति व संस्तुति नहीं माँगी।
मैंने जो बोला उन्होंने कैसे प्रस्तुत किया होगा, मुझे कभी नहीं बताया और मैंने आग्रह भी नहीं किया। इस फील्ड की कार्यशाला के बाद वापस प्रिटोरिआ पहुँचकर वहांँ के विश्वविद्यालय में यहाँ के सरकारी इंजीनियरों व संबंधित विभागों और तीसरी पार्टी मूल्यांकन करने वाले समूहों को एक साथ बुलाया, उस पर मेरी राय सुनकर दक्षिण अफ्रीका की इस पूरी यात्रा का समापन हुआ। यह यात्रा दक्षिण अफ्रीका में जल साक्षरता का अभियान चलाने की रूपरेखा तैयार करने में सफल रही। लेकिन यहाँ की सरकार कितना गंभीरता से काम करेगी, आगे पता चलेगा। यहाँ के लोगों ने मुझे सदैव सम्पर्क में रखा। अपने किये कार्यों की जानकारी मुझे देते रहे है। तीन गाँवों में काम भी हुआ। यह यात्रा सफल परिणामदायी रही।
*लेखक जलपुरुष के नाम से विख्यात पर्यावरणविद हैं। प्रकाशित लेख उनके निजी विचार हैं।