मनीला
संस्मरण
– डॉ. राजेंद्र सिंह*
पश्चिमी प्रशांत महासागर में स्थित 7107 द्वीपों से मिलकर फ़िलिपींस बना है। फ़िलिपींस द्वीप-समूह पूर्व में फ़िलिपींस सागर से, पश्चिम में दक्षिण चीन सागर से और दक्षिण में सेलेबस सागर से घिरा हुआ है। 6 करोड़ से अधिक की आबादी वाला यह विश्व की 12 वीं सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है। इस देश का क्षेत्रफल 299764 वर्ग किलो मीटर है। इसके द्वीप समूहों में से अधिकतर पहाड़ी द्वीप ज्वालामुखी मूल के है और उष्णकटिबंधीय वर्षा वनों से ढके हुए हैं ।
यहां की सबसे बड़ी नदी कैगयान है। इस देश में ज्वालामुखीय प्रकृति के कारण यहाँ खनिज भंडार बहुतायत में है। भू-तापीय ऊर्जा , जो ज्वालामुखी गतिविधियों का एक अन्य उत्पाद है, यहाँ अच्छी तरह से उपयोग किया जाता है। यहां की अर्थव्यवस्था खेती पर आधारित अर्थव्यवस्था से सेवा और विनिर्माण पर आधारित अर्थव्यवस्था में परिवर्तित हो रही है। यहाँ के 65 प्रतिशत लोग खेती, 20 प्रतिशत लोग औद्योगिक व अन्य श्रम एवं सेवा क्षेत्र में लगे हुए है।
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जनसंख्या, शहरीकरण और औद्योगिकरण में तेजी से वृद्धि के साथ, फ़िलिपींस जल की गुणवत्ता विशेष रूप से घनी आबादी वाले क्षेत्रों, औद्योगिक और कृषि गतिविधियों के क्षेत्रों में कम हो जाती है। यहाँ पानी आपूर्ति स्थापित पंप और पाइप लाइनों के माध्यम पानी प्रदान किया जाता है। यहां की सरकारी एजेंसी, स्थानीय संस्थान, गैर-सरकारी संगठन और अन्य निगम मुख्य रूप से देश में जल आपूर्ति और स्वच्छता के संचालन व प्रशासन में प्रभारी है। यहाँ पानी की गुणवत्ता एक महत्वपूर्ण समस्या बन कर उभर रही है। यहां के जल की गुणवत्ता निर्धारित मानकों को पूरा नहीं करती है। नतीजन, देश में पानी की बीमारियाँ गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता बनी हुई है। दूषित पेयजल के कारण हर साल लगभग 4200 लोग मर जाते है।
फ़िलिपींस की मेरी सबसे पहली यात्रा अगस्त 2001 में मैग्सेसे पुरस्कार लेने गया, तब हुई थी। उसके बाद वहाँ मुझे कई बार बुलाया। जब में पहली बार फ़िलिपींस गया था, तब वहाँ की राष्ट्रपति ग्लोरिया मैकापगल अरोयो ने मुझसे बहुत निजी तौर पर और वही भारत पुरस्कार समारोह के भाषण में मुझे संबोधित करते हुए कहा कि, आपने भारत में मरी हुई नदियां को पुनर्जीवित किया है। हमारी राजधानी मनीला शहर के बीचों-बीच पासिग नदी बहती है, वह बहुत ही प्रदूषित हो गयी है। उसके किनारे खड़ा होना भी संभव नहीं है। यह नदी हमारी राजधानी को दो भागों में बाँटती है। मेरे बचपन में यह नदी बड़ी स्वर्णिम थी, लेकिन अब गंदे नाले के रूप में बहती है। आप हमारी इस नदी के निर्मल बनाने में मदद करिए। मैंने उनका यह प्रस्ताव स्वीकार किया। उन्होंने इस काम के लिए वहाँ कई बार बुलाया। कुछ बहुत अच्छे काम इस नदी में शुरू हुए।
इस नदी को अतिक्रमण मुक्त करना सबसे कठिन काम था। यह कार्य अच्छे से राष्ट्रपति की दखल से सरकार द्वारा हुआ और नदी को पुनर्जीवित करने के लिए प्राकृतिक तौर पर कई तरह की वनस्पतियाँ काम में ली गयी। फिर धीरे-धीरे नदी में मिलने वाले गंदे जल के नालों को भी इस नदी में पड़ने से रोका। मुझे यहाँ के समुदाय के साथ संवाद करने में कठिनाई हुई लेकिन सरकारी कर्मचारियों की मदद से नदी का सांस्कृतिक पहलू समझाने में उन्हें में सफल हुआ।
फ़िलिपींस में धान आदि की कई अंतरराष्ट्रीय संस्थान है, जिनमें अच्छी पढ़ाई होती है। लेकिन यह पढ़ाई प्रकृति के पोषण की नहीं है। प्रकृति का शोषण ही यहाँ पढ़ाया व लिखाया जाता है। इसलिए यहाँ की अंतरराष्ट्रीय व राष्ट्रीय संस्थानों के शिक्षण में सामलात देह (सार्वजनिक सम्पदा) पर अतिक्रमण और उनके प्रदूषण मुक्ति के कोई स्थाई उपाय यहाँ पढ़ाये व सिखाये नहीं जाते। इस कारण इस नदी को 20 सालों के बाद भी समग्र जल का शोधन नहीं कर पाये। हाँ आंशिक तौर पर वर्ष 2001 की अपेक्षा 2017 में बहुत सुधार हुआ है। अभी इस नदी के जल सुधार हेतु राष्ट्रपति ग्लोरिया मैकापगल अरोयो के काम जैसी तीव्रता नजर नहीं आती।
इस देश की राजधानी मनीला को सतही जल व भू-जल के प्रदूषण के लिए दुनिया में जाना है। लेकिन यहाँ जल का निजीकरण ही प्रदूषण को बढ़ावा दे रहा है। यहाँ का जल प्रदूषित होने के कारण लोगों को खरीदकर पीना पड़ता है। इसलिए कम्पनियाँ जल शोधन के विरूद्ध खेल खेलती रहती है। इसलिए यह शहर प्रदूषित होता जा रहा है। यहाँ की जल कम्पनियों का सरकारों पर बड़ा असर है। इसलिए यहाँ के जल अधिकार को कानून से कम्पनियों ने खरीद लिए है। इस देश की एक भी नदी शुद्ध-सदानीरा नहीं है। पेयजल का भयंकर संकट है। पेयजल संकट से उभरने के सरकारी साधन, जल बाजार को ही बढ़ावा दे रहे है। फ़िलिपींस में बहुत अच्छी वर्षा होती है। मेरा यहाँ के कई आइलैंड में जाना हुआ। यहाँ जब तक प्राकृतिक खेती थी, तब तक वो सब क्षेत्र समृद्ध थे। यहाँ की आधुनिक खेती ने यहाँ के जीवन में कई तरह के कष्ट पैदा कर दिए है।
मैनें यहाँ की सरकार को सामुदायिक जल प्रबंधन सिखाने के जितने प्रयास किये है, उतनी सफलता नहीं मिली है। लेकिन मुझे विश्वास है कि, आगे चलकर यहाँ के जल का निजीकरण रोककर सामुदायिकरण होगा। इस देश की सभी सरकारें नया करने की इच्छुक रहती है। इसीलिए निजीकरण करके देखा है। यह देश विकास के लालच में परिवर्तनशील प्रगति का पक्षधर है। विकास के लिए वैचारिक क्रांति से परिवर्तन करने वाला देश है।
*लेखक जलपुरुष के नाम से विख्यात पर्यावरणविद हैं। प्रकाशित लेख उनके निजी विचार हैं।