संस्मरण
– डॉ. राजेंद्र सिंह*
जिम्मेदारी और हकदारी को समझकर काम करें तो एशिया में बढ़ती बाढ़ व सुखाड़ से मुक्ति पाई जा सकती है
थाईलैंड में 28 नंवम्बर 2016 से 2 दिसम्बर 2016 तक मैं रहा था।इस देश का प्राचीन नाम श्यामदेश या स्याम है। यहां का कुल क्षेत्रफल 513225 वर्ग किलोमीटर है। इस देश का मौसम उष्णकटिबंधीय गीला और शुष्क जलवायु से प्रभावित है। ‘चाओ फ्रया’ नदी इस देश की प्रमुख नदी है। जिसके आस-पास थाईलैंड के मध्यवर्ती मैदान विस्तृत है।
बैंकॉक में कार्यक्रम के आयोजक श्री मुकुन्द बाबल ने विश्व शांति यात्रा दल का स्वागत किया। एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, बैंकॉक में एशिया के सभी देशों के सरकारी व गैर सरकारी प्रतिनिधि इस कन्वेंशन में शामिल हुए थे। इसका शुभारंभ मेरी बातचीत से कराया था। यहाँ पर मैंने तरुण भारत संघ के अनुभव बताते हुए कहा कि, एशिया के सभी देशों में जल संरक्षण एवं प्रबंधन का ज्ञान अभी भी बचा हुआ है; लेकिन सरकारें उस ज्ञान का उपयोग नहीं कर रहीं। इसलिए पिछले 100 वर्षों में बाढ़, सुखाड़ बहुत तेजी से बढ़ा है। हमें इससे मुक्ति की जरूरत है। इस हेतु राज और समाज की सभी संस्थाओं की जिम्मेदारी और हकदारी को समझकर काम करें तो एशिया में बढ़ती बाढ़ व सुखाड़ से मुक्ति पाई जा सकती है। इस भाषण के साथ तरुण भारत संघ की प्रस्तुति की, जिसमें बाढ़ व सुखाड़ मुक्ति के साथ जलवायु अनुकूलन और उन्मूलन के भी अनुभव बताये।
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दक्षिण पूर्व एशिया में स्थित थाईलैंड के इतिहास में देखें तो सन् 1767 में बर्मा द्वारा अयुध्या के पतन के बाद थोम्बुरी राजधानी बनी। सन् 1782 में बैंकॉक में चक्री राजवंश की स्थापना हुई उसी को इसका आरंभ माना जाता है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका में 1992 में सत्ता पलट के बाद नया संवैधानिक राजतंत्र घोषित कर दिया गया।
तथापि थाईलैंड के हवाई अड्डे पर उतरते ही भारतीय शास्त्रों में समुद्र मंथन के चित्रण से लेकर अनेक चित्र बैंकॉक हवाई अड्डे पर दृष्टिगत होने लगते है। वैसे तो यह राष्ट्र एशिया का ही हिस्सा है तो मुझे लगा ही नहीं कि, मैं, भारत से दूसरे देश में हूँ। मुझे यहाँ हिन्दी में बात करने वाले बहुत से लोग मिल गए और तौर-तरीका भारतीय जैसा ही था। इस देश में अब दुनिया भर से पर्यटक बढ़ी संख्या में जाते है। उनमें सबसे अधिक भारतीयों की संख्या होती है।
*लेखक जलपुरुष के नाम से विख्यात पर्यावरणविद हैं। प्रकाशित लेख उनके निजी विचार हैं।